Mohit

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परशुराम गम्भीर हो गये सोच न जानें क्या मन में, फिर सहसा क्रोधाग्नि भयानक भभक उठी उनके तन में। दाँत पीस, आँखें तरेरकर बोले-“कौन छली है तू? ब्राह्मण है या और किसी अभिजन का पुत्र बली है तू? “सहनशीलता को अपनाकर ब्राह्मण कभी न जीता है, किसी लक्ष्य के लिए नहीं अपमान-हलाहल पीता है। सह सकता जो कठिन वेदना, पी सकता अपमान वही, बुद्धि चलाती जिसे, तेज का कर सकता बलिदान वही।
रश्मिरथी
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