Mohit

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‘जाति! हाय री जाति!’ कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला, कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला— “जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल प़ाषण्ड, मैं क्या जानूँ जाति? जाति हैं ये मेरे भुजदण्ड।
रश्मिरथी
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