रश्मिरथी
Rate it:
Kindle Notes & Highlights
Read between January 8 - January 10, 2020
5%
Flag icon
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग, सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
7%
Flag icon
‘जाति! हाय री जाति!’ कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला, कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला— “जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल प़ाषण्ड, मैं क्या जानूँ जाति? जाति हैं ये मेरे भुजदण्ड।
14%
Flag icon
रोक-टोक से नहीं सुनेगा, नृप-समाज अविचारी है, ग्रीवाहर, निष्ठुर कुठार का यह मदान्ध अधिकारी है। इसीलिए तो में कहता हूँ, अरे ज्ञानियो! खड्ग धरो, हर न सका जिसको कोई भी, भू का वह तुम त्रास हरो।‘ “नित्य कहा करते हैं गुरुवर, ‘खड्ग महाभयकारी है, इसे उठाने का जग में हर एक नहीं अधिकारी है। वही उठा सकता है इसको, जो कठोर हो, कोमल भी, जिसमें हो धीरता, वीरता और तपस्या का बल भी।
16%
Flag icon
परशुराम गम्भीर हो गये सोच न जानें क्या मन में, फिर सहसा क्रोधाग्नि भयानक भभक उठी उनके तन में। दाँत पीस, आँखें तरेरकर बोले-“कौन छली है तू? ब्राह्मण है या और किसी अभिजन का पुत्र बली है तू? “सहनशीलता को अपनाकर ब्राह्मण कभी न जीता है, किसी लक्ष्य के लिए नहीं अपमान-हलाहल पीता है। सह सकता जो कठिन वेदना, पी सकता अपमान वही, बुद्धि चलाती जिसे, तेज का कर सकता बलिदान वही।
27%
Flag icon
“पा पाँच तनय फूली-फूली, दिन-रात बड़े सुख में भूली, कुन्ती गौरव में चूर रही, मुझ पतित पुत्र से दूर रही। क्या हुआ कि अब अकुलाती है? किस कारण मुझे बुलाती है? “क्या पाँच पुत्र हो जाने पर, सुत के धन-धाम गँवाने पर, या महानाश के छाने पर, अथवा मन के घबराने पर। नारियाँ सदय हो जाती हैं? बिछुड़े को गले लगाती हैं?
33%
Flag icon
यह न स्वत्व का त्याग, दान तो जीवन का झरना है, रखना उसको रोक मृत्यु के पहले ही मरना है। किस पर करते कृपा वृक्ष‍़ यदि अपना फल देते हैं? गिरने से उसको सँभाल क्यों रोक नहीं लेते हैं? ऋतु के बाद फलों का रुकना डालों का सड़ना है, मोह दिखाना देय वस्तु पर आत्मघात करना है। देते तरु इसलिए कि रेशों में मत कीट समायें, रहें डालियाँ स्वस्थ और फिर नये-नये फल आयें।
34%
Flag icon
जो नर आत्मदान से अपना जीवन-घट भरता है, वही मृत्यु के मुख में भी पड़कर न कभी मरता है। जहाँ कहीं है ज्योति जगत् में, जहाँ कहीं उजियाला, वहाँ खड़ा है कोई अन्तिम मोल चुकानेवाला। व्रत का अन्तिम मोल राम ने दिया, त्याग सीता को, जीवन की संगिनी, प्राण की मणि को, सुपुनीता को, दिया अस्थि देकर दधीचि ने, शिवि ने अंग कतर कर, हरिश्चन्द्र ने कफ़न माँगते हुए सत्य पर अड़ कर। ईसा ने संसार-हेतु शूली पर प्राण गँवा कर, अन्तिम मूल्य दिया गांधी ने तीन गोलियाँ खाकर। सुन अन्तिम ललकार मोल माँगते हुए जीवन की, सरमद ने हँसकर उतार दी त्वचा समूचे तन की।
45%
Flag icon
देवराज बोले कि “कर्ण! यदि धर्म तुझे छोड़ेगा, निज रक्षा के लिए नया सम्बन्ध कहाँ जोड़ेगा? और धर्म को तू छोड़ेगा भला पुत्र! किस भय से, अभी-अभी रक्खा जब इतना ऊपर उसे विजय से?
77%
Flag icon
हारी हुई पाण्डव-चमू में हँस रहे भगवान् थे, पर जीत कर भी कर्ण के हारे हुए-से प्राण थे क्या, सत्य ही, जय के लिए केवल नहीं बल चाहिए कुछ बुद्धि का भी घात; कुछ छल-छद्म-कौशल चाहिए