लगभग पचास वर्ष पूर्व पढ़ी एक अद्वितीय पुस्तक

प्रत्येक वर्ष मेरी सुपुत्री प्रतिभा अपने माता-पिता की वैवाहिक वर्षगांठ (जोकि फरवरी में आती है) किसी न किसी प्रकार के अनोखे ढंग से मनाती है।


 


kamla-advanipratibhaइस महीने की शुरुआत में वह मेरे पास आकर बोली ”इस बार की वर्षगांठ आप दोनों के लिए बहुत अहम है। दादा आप और मां का विवाह 1965 में हुआ था, इसलिए सन् 2014 पचास वर्षों से एकसाथ जीवन गुजारने के वर्ष का शुभारम्भ है! तो क्यों न इस मौके पर ऐसा पारिवारिक सम्मिलन कार्यक्रम आयोजित किया जाए, जैसा अभी तक नहीं हुआ है। मेरी पत्नी कमला की एक बहन और चार भाई हैं। इन चार में से दो मुंबई में रहते हैं, तो एक न्यूजर्सी तथा एक अन्य सेंट मार्टिन (वेस्टइंडीज) में रहता है। मेरी एक बहन है जिसके दो पुत्र और एक पुत्री है, वह मुंबई में रहती है। इस प्रकार हमारा वृहत परिवार देश के मुंबई और दिल्ली में रहता है। अत: इस वर्ष के कार्यक्रम में प्रतिभा ने भारत तथा देश के बाहर रहने वाले सभी परिजनों को कुछ अन्य चुनींदा मित्रों तथा रिश्तेदारों के साथ दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया। दोपहर के भोजन पर मेहमानों का मनोरंजन करने के लिए दिल्ली स्थित सुप्रसिध्द पियानो वादक ब्रायन सिलास ने पियानो की धुन पर पुराने हिंदी फिल्मी गीतों को सुर दिया।


 


brian-silasयह संयोग ही है कि कमला का छोटा भाई माणिक हिन्दी फिल्म संगीत का काफी जानकार है और सिध्दहस्त मंच संचालक भी। ब्रायन के पियानों बजाने की कम्पीयरिंग करने हेतु वह प्रतिभा के सुझाव पर तुरंत तैयार हो गए। साथ ही उपस्थित मेहमानों के लिए एक अनोखी संगीत पहेली खेलने के लिए भी - जिसमें फिल्म उद्योग  से सम्बन्धित गीतों, गीतकारों, संगीत निर्देशकों से जुड़े सवाल श्रोताओं से पूछे जाने थे।


 


यह पहेली वाला कार्यक्रम अत्यन्त दिलचस्प साबित हुआ। हालांकि उसदिन फिल्म जगत से आए शत्रुघ्न सिन्हा, अनू मलिक, प्रसून जोशी, विवेक ओबराय जैसों को इससे अलग रखा गया था।


* * *


manikमेरा साला माणिक इस बार मेरे लिए एक पुस्तक लेकर आया जो मैंने दशकों पूर्व पढ़ी थी लेकिन इसका एकदम नया पचासवां संस्करण वास्तव में मेरे लिए एक आनन्ददायी उपहार रहा। माणिक ने स्मरण कराया कि साठ के दशक में मैंने उन्हें विटटेकर चेम्बर्स की प्रसिध्द पुस्तक ‘विट्नस‘ पढ़ने के लिए कहा था।


 


चेम्बर्स ने 1954 में विट्नस प्रकाशित की थी। साठ के दशक में मैंने यह पुस्तक पढ़ी और इसे अत्यन्त पसंद किया था। पचासवीं वर्षगांठ वाले संस्करण के अंतिम कॅवर पृष्ठ पर इस प्रभावशाली पुस्तक को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है:


 


दि विट्नस एन्डयूर


इसके असली प्रकाशन के पचास वर्ष बाद, विट्नस ने अपने अत्यन्त कड़े असरों को बनाए रखा है। विटटेकर चेम्बर्स की नरक और वापसी की खौफनाक यात्रा का लेखा जोखा - जासूसी, देशद्रोह और आतंक के माध्यम से अंतत: विश्वास की एक कहानी है।


 


chambersbook-witnessविट्नस कुछ आध्यात्मिक आत्मकथा, कुछ जासूसी थ्रिलर, कुछ परीक्षण नाटक हैं जो एक बांधने वाली वाकपटुता है जो दोस्तायेवस्किन शक्ति की अत्यन्त बुझी आवाज में है।


 


प्रकाशक ने लेखक के शब्दों ”नरक तथा उससे वापसी की उसकी यात्रा का खौफनाक लेखा-जोखा” जो वर्णित किया है वह वास्तव में पहले उनके कम्युनिस्ट खेमे का हिसा बनने और बाद में माक्र्सवादी दर्शन से उनके मोहभंग होने, न केवल खेमे को छोड़ने अपितु अमेरिकी सरकार के विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी अल्गेर हिस जो अपने देश से द्रोह कर सोवियत सैनिक गुप्तचर विभाग के गुप्त एजेंट बन गए थे, के विरूध्द प्रमुख गवाह बनने की कहानी है।


 


पुस्तकप्रेमी जिनके पास चेम्बर्स के 800 पृष्ठों के वृहत ग्रंथ को पढ़ने का समय नहीं है उन्हें 20 पृष्ठों की यह प्रस्तावना ”ए लेटर टू माई चिल्ड्रन” मात्र पढ़ लेनी चाहिए। मैं, अपने ब्लॉग में इस प्रस्तावना के मात्र कुछ पैराग्राफ पुन: प्रस्तुत कर रहा हूं जो पूरी तरह से सिध्द करेंगे कि क्यों इस पुस्तक के प्रकाशक रिजेनरी पब्लिशिंग इनकॉरपोरेशन, वाशिंगटन डी.सी. ने वर्णित किया है कि यह एक आध्यात्मिक आत्मकथा है। उस पत्र के शुरूआती सात पैराग्राफ निम्न हैं:


 


प्रिय बच्चो ]


 


मैं मिडफील्ड में छोटे से मकान के किचन में बैठा हूँ। आप जहाँ हैं, वहाँ से हमारा दूसरा फॉर्म हमारे स्थान से करीब चौथाई मील के मैदान की मेड़ से अलग है। मैं किताब लिख रहा हूँ। इसमें मैं आपसे बात कर रहा हूँ। हालाँकि, मैं दुनिया से बात भी कर रहा हूँ। यह लेखा-जोखा देना मेरा दायित्व बनता है।


 


यह एक भयानक किताब है। भयानक उसमें है, जो पुरुषों के बारे में इसमें कहा गया है। इसके अलावा, जिस दुनिया में आप रहते हैं, उसके बारे में जो कहा गया है, उस हिसाब से भी यह भयानक है। यह उसके बारे में है जिसे दुनिया हिस-चैंबर्स केस या हिस केस कहती है। यह जासूसी के मामले के बारे में है। किसी जासूसी के मामले के जुड़े सारे तार इसमें हैं विदेशी एजेंट, घर के भेदिये, चोरी किए दस्तावेज़, माइक्रो फिल्म, गुप्त मीटिंग, चोर-दरवाजे, नकली नाम, मुखबिर, जाँच, मुकदमे, औपचारिक न्याय।


 


hissहालाँकि, अगर ये हिस केस मात्र होता, तो न तो मेरे लिखने लायक होता, न आपके पढ़ने लायक। यह पुलिस की भारी फाइलों में दबा होता, एक ऐसा आपराधिक नाटक होता, जिसमें मुख्य पात्र गलत समझे जाते (जिस तरह कि अनेक लोग गलत समझे जाते हैं)।   यह वही नहीं होगा जो इसका अर्थ है, जो सामान्य महिला-पुरुष इसका अर्थ समझते हैं, वो भी इसका कारण जाने बिना। यह वो नहीं होगा जो बिलकुल शुरुआत में मैंने कहा था : “ इतिहास की त्रासदी।


 


यह मानवीय त्रासदी से कुछ अधिक है। एल्गर हिस या विटटेकर चैंबर्स इस एल्गर हिस की कसौटियों में कसौटी था। दोनों विश्वास कसौटी पर थे। मानव समाज, मानवों की तरह अपने विश्वास के साथ जीता है और अपने विश्वास के साथ मर जाता है। हिस के मामले में प्रश्न यह था कि क्या यह बीमार समाज, जिसे हम पश्चिमी सभ्यता कहते हैं, परम संकट में किसी मनुष्य को अब भी भूमिका दे सकता है, जिसका उसमें विश्वास इतना गहरा हो कि वह उसके बचाव के लिए स्वेच्छा से जीवन समेत वे सारी चीज़ें त्याग सकता हो, जो मनुष्य के पास होती हैं। इसमें प्रश्न यह था कि क्या मनुष्य का विश्वास उस मनुष्य के विरुद्ध भी प्रचलित रह सकता है, जिसका समान विश्वास यह है कि यह समाज इतना बीमार है कि उसे बचाया नहीं जा सकता और इस पर यही कृपा की जानी चाहिए कि इसे तेजी से विलुप्त होने दिया जाए और इसकी जगह किसी दूसरे को दी जाए। प्रश्न यह था कि बेहद विभाजित समाज में क्या अब भी इच्छा बची है कि वह समय पर मुद्दों की पहचान करे और तथ्यों को विकृत करने और गुमराह करने के लिए एकजुट जनशक्ति का सामना कर सके।


 


हृदय से कहें तो ग्रेट केस विश्वासों के टकराव का है ; यही बात है कि यह मामला बड़ा है। किसी पैमाने पर व्यक्तिगत रूप से यह सभी को महसूस होता है, लेकिन बड़े रूप में यह प्रतीकात्मक होने लायक है, यानी हमारे समय के दो अनमेल विश्वास साम्यवाद और स्वतंत्रता- दो सचेत और कृतसंकल्प मनुष्यों की पकड़ में आए हैं। वास्तव में, इतनी स्पष्टता से जानने वाले दो अन्य लोगों को ढूँढ़ पाना ऐसे जगत में कठिन ही होगा जो अब भी इस बात को लेकर बहुत कम जागरूक है कि वास्तव में संघर्ष या टकराव है क्या। दोनों की पढ़ाई इतिहास के समान दृष्टिकोण (मार्क्सवादी विचार) में हुई। दोनों का प्रशिक्षण एक ही पार्टी में समान निस्वार्थ, समान सैन्य अनुशासन में हुआ है। स्वयं से ही नहीं, बल्कि अपने विश्वास के साथ विश्वासघात किए बिना न तो पाया जा सकता है, और न ही किया जा सकता है ; और इन विश्वासों की विभिन्न प्रकृति दोनों मनुष्यों के अलग-अलग आचरण पूरे संघर्ष के दौरान एकदूसरे की ओर दिखाई जाती है।  चूँकि, अस्पष्ट निश्चितता के साथ, दोनों ही तकरीबन शुरू से ही जानते हैं कि ग्रेट केस दोनों प्रतिद्वंद्वी व्यक्तियों में से एक या दोनों के नष्ट होने से ही समाप्त हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे कि हमारे समय का इतिहास (दोनों मनुष्यों को  वह पढ़ाया गया है) भी एक या दोनों प्रतिद्वंद्वी शक्तियों में से एक या दोनों के नष्ट होने से समाप्त होगा।


 


हालांकि यह विनाश कोई त्रासदी नहीं है। त्रासदी की प्रकृति को अपने आप में गलत समझा गया है। दुनिया का एक हिस्सा समझता है कि हिस केस की त्रासदी उजागर हुए द्रोह के कार्य में निहित है। एक हिस्सा विश्वास करता है कि त्रासदी इस तथ्य में निहित है कि एक योग्य, बुद्धिमान व्यक्ति एलगर हिस मात्र प्रतिभाशाली जनवाहक के रूप में सीमित कर दिए गए। कुछ लोग इसे ही त्रासद पाते हैं कि विटटेकर चैंबर्स अपनी ओर से सालाना 30,000 हजार अमेरिकी डॉलर की नौकरी और सुरक्षित भविष्य का त्याग कर दिया ताकि वे अपनी जिंदगी के बाकी दिन बेकार कर सकें। ये स्तब्धकारी तथ्य हैं।


 


आपराधिक तथ्य हैं, विघ्नकारी तथ्य हैं : वे त्रासद नहीं हैं। अपराध, हिंसा, अपयश त्रासदी नहीं हैं। त्रासदी तब होती है, जब मानव की आत्मा जागती है और दर्द तथा पीड़ा से मुक्ति चाहती है, अपराध, हिंसा, अपयश से जीवन की कीमत पर भी मुक्ति चाहती है। त्रासदी संघर्ष है-हार या मौत त्रासदी नहीं है। यही कारण है कि त्रासदी का दृश्य लोगों को निराशा से नहीं, बल्कि आशा और उल्लास की भावना से भर देते हैं। यही कारण है कि यह भयानक पुस्तक आशा की पुस्तक भी है, क्योंकि यह एक मानव की आत्मा के बजाय मानवीय चेतना के संघर्ष के बारे में हैं। यह इस अर्थ में है कि हिस केस एक त्रासदी है। इसमें शामिल लोगों की सुर्खियों, खुलासों, लाज से परे, यही इसका अर्थ है। हालाँकि अगर इस त्रासदी को लोग सही तरह से न समझें तो यह किसी काम की नहीं होगी और इससे दुनिया आशा हासिल करती है और अगर वह इस तथ्य का सामना नहीं करता है कि समूचा जगत मृत्यु की हद तक बीमार है, और अन्य चीजों के बीच, यह मामला अचानक खुले और दुर्गंधयुक्त समय में  तेज रौशनी में बदलता है तो उसके अपने अंदर और बाहर मौजूद बुराई से इसका त्रासद संघर्ष शुरू हो जाता है।


 


अपने बच्चों को लिखा गया चेम्बर्स का पत्र वास्तव में साम्यवाद की एक शक्तिशाली भर्त्सना है। एक बिन्दु पर वह कहता है ”मैं कम्युनिज्म में हमारे समय की सभी बुराइयों के केंद्रित होने को देखता हूं।”


 


विडम्बना यह कि वह साथ ही इस मत का था कि कम्युनिस्ट पार्टी इतिहास में सर्वाधिक क्रांतिकारी पार्टी है। चेम्बर्स के मुताबिक उनके इस आग्रह के आधार का यह तथ्य था कि पार्टी ने इतिहास में सर्वाधिक क्रांतिकारी प्रश्न एक व्यवहारिक रूप में उपस्थित किया था: ईश्वर या मनुष्य? पार्टी का अपना उत्तर था: मनुष्य। यही वह बिन्दु था जिसने इस पुस्तक के लेखक को हिस केस में एक गवाह की अपनी भूमिका को उनके इस विश्वास और धारणा को प्रबल बनाया कि उनकी गवाही समाज को ईश्वर के पास लौटने में भूमिका निभाएगी। यही कारण है कि इस उत्कृष्ट पुस्तक के प्रकाशक ने इस पुस्तक को एक आध्यात्मिक आत्मकथा वर्णित किया है। इसके 50वीं वर्षगांठ संस्करण के प्रकाशन के बाद राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने कहा ”जब तक मानवता स्वतंत्रता के नैतिक गुणों तथा स्वप्नों के बारे में बोलेगी, तब तक विटटेकर चेम्बर्स का जीवन और लेखन  उदस्त और प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।”


 


टेलपीस (पश्च्य लेख)


 


चेम्बर्स ने अपनी आत्मकथा को एक ‘भयंकर पुस्तक‘ के रूप में वर्णित किया है। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि यह आशा की पुस्तक है।


 


पचासवीं वर्षगांठ संस्करण में राबर्ट डी नोवाक ने एक नईं प्रस्तावना लिखी है कि चेम्बर्स वास्तव में अपने समूचे जीवन में निराशावादी रहे। राबर्ट डी0नोवाक रीडर्स डाइजेस्ट के सहायक सम्पादक हैं। नोवाक लिखते हैं:


 


वह विधाता ही था जिसने अंतत: चेम्बर्स को हिस केस में इतने निजी दाम पर ‘जीतने‘ दिया। उसे निडर थामस मरफी के फेडरल थामस मरफी के फेडरल प्रॉसीक्यूटर का चयन होने में ईश्वर का हाथ दिखा और वह भी तब जब ट्रूमैन प्रशासन का अधिभावी रवैया, राष्ट्रपति से लेकर नीचे तक अपनान और उपहास से भरा था। यदि तैंतीस वर्षीय कांग्रेस सदस्य केलिफोर्निया से रिचर्ड एम. निक्सन यदि नहीं होते जिसने चेम्बर्स केस को आगे बढ़ाया, तो यह हिस के झूठों और छल के तले दब गया होता। वस्तुत: अपने देश के लिए अपना जीवन त्यागने जैसी मजबूती और शक्ति जो चेम्बर्स में थी, को ईश्वरीय विधान कहा जा सकता है।


 


लेकिन वह दुनिया के संघर्ष के बारे में इतने निराशावादी क्यों थे? दि स्कूल फॉर डिकटेट्रस में इगना जिया साइलोन की भांति, चेम्बर्स एक ऐसे नागरिक की भूमिका को नहीं धारण कर पाए जो बीसवीं सदी के देश में आधुनिक पुलिस और सैन्य शक्ति पर पार पा सके। यह संशयवाद 1953 में पूर्वी जर्मनी, 1956 में हंगरी और 1968 में चेकोस्लोवाकिया में कम्युनिस्ट शासन के परकोटे एक आंधी में गिरने लगे जो अंतत: क्रेमलिन तक पहुंचा।


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


4 मार्च, 2014


 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on March 09, 2014 01:42
No comments have been added yet.


L.K. Advani's Blog

L.K. Advani
L.K. Advani isn't a Goodreads Author (yet), but they do have a blog, so here are some recent posts imported from their feed.
Follow L.K. Advani's blog with rss.