कदम पे कदम यूँ मिलाते रहे
तेरे शान खुब हम बढाते रहे
हमे रात दिन याद आते रहे
जिन्हे उम्र भर हम भुलाते रहे
मेरा जिक्र जब भी हुवा बज्म में
मजाकों में हमे उडाते रहे
मुकद्दर में खुसियाँ न थी वस्ल की
सदमा-ए-हिज्र ही उठाते रहे
सिकस्ती के बाद किया काम नयाँ
मुकद्दर को यूँ हम जगाते रहे
देता रहा दिल तुम उन को सुमन !
जो जलाते रहे, बुझाते रहे
Suman Pokhrel
Published on August 28, 2013 07:35