ओसामा बिन लादेन सम्बन्धी पाकिस्तान का न्यायिक आयोग

वह मई, 2011 की शुरुआत थी जब सील टीम सिक्स (SEAL TEAM SIX) के रेड स्क्वाड्रन के चुनींदा 24 जवानों ने पाकिस्तान के एबटावाद स्थित ठिकाने पर धावा बोला था जहां अनेक वर्षों से ओसामा बिन लादेन छुपा हुआ था।


 


उपरोक्त घटना को, पाकिस्तान में सन् 1971, जब न केवल पाकिस्तान को प्रमुख युध्द में औपचारिक रुप से पराजय झेलनी पड़ी अपितु पाकिस्तान के विघटन से एक नए स्वतंत्र देश-बंगलादेश का भी जन्म हुआ था-के बाद सर्वाधिक बुरे राष्ट्रीय अपमान के रुप में वर्णित किया गया।


 


ladenअमेरिकी सैनिकों द्वारा ओबामा को मारे जाने के बाद पाकिस्तान सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ति जावेद इकबाल की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय जांच आयोग गठित किया। अन्य तीन सदस्यों में अशरफ जहांगीर काजी भी शामिल थे जो कुछ वर्ष पूर्व नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायुक्त थे।


 


आयोग ने 336 पृष्ठों वाली अपनी रिपोर्ट पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को 4 जनवरी, 2013 को सौंपी। उन्होंने तुरंत रिपोर्ट को ‘गुप्त‘ करार दे दिया। लेकिन 8 जुलाई को अंग्रेजी टेलीविजन अल जजीरा ने किसी प्रकार इस रिपोर्ट की एक प्रति हासिल कर प्रकाशित कर दिया। स्पष्टतया, अल जजीरा की रिपोर्ट के आधार पर दि न्यूयार्क टाइम्स, दि गार्डियन, और कुछ दूसरे पश्चिमी समाचार पत्रों ने भी रिपोर्ट का एक सारांश प्रकाशित किया। अपने ब्लॉग के नियमित पाठकों के लिए मैं दि न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। दि सन्डे गार्डियन की रेजिडेंट सम्पादक सीमा मुस्तफा द्वारा, स्टेटस्मैन (भारत) में इस रिपोर्ट को दो किश्तों में जुलाई 20 और 21 में प्रकाशित किया।


 


न्यूयार्क टाइम्स के लंदन स्थित डेक्लान वाल्स की यह रिपोर्ट निम्न है:


 


लंदन - सोमवार ( 8 जुलाई) को मीडिया को ‘लीक‘ की गई एक हानिकारक पाकिस्तानी सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक ”सामूहिक अक्षमता और उपेक्षा” के चलते लगभग एक दशक तक ओसामा बिन लादेन निर्बाध रुप से पाकिस्तान में रहा।


 


सर्वोच्च न्यायालय के एक जज की अध्यक्षता वाले चार सदस्यीय एबटाबाद कमीशन ने देश के शीर्ष गुप्तचर अधिकारियों सहित 201 लोगों से बातचीत की और 2 मई, 2011 को अमेरिकी धावे से जुड़ी घटनाओं को जोड़ने की कोशिश की है, जिसमें अलकायदा का सरगना बिन लादेन मारा गया और पाकिस्तानी सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी।


 


हालांकि कमीशन की रिपोर्ट 6 मास पूर्व पूरी हो गई थी परन्तु पाकिस्तानी सरकार ने इसे दबा दिया था और पहली ‘लीक‘ प्रति सोमवार को अल जजीरा ने सार्वजनिक की।


 


इस प्रसारण संस्था ने 336 पृष्ठों की रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया, इसमें यह भी स्वीकारा गया कि पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी के मुखिया की गवाही वाला एक पृष्ठ इसमें नहीं है जिसमें प्रतीत होता है कि अमेरिका के साथ पाकिस्तान के सुरक्षा सहयोग के तत्वों को समाहित किया गया है।


 


कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तान के टेलीकॉम रेग्यूलेटर ने पाकिस्तान के भीतर अल जजीरा की बेवसाइट को देखने से बचाने हेतु ठप्प कर दिया।


 


कुछ मामलों में कमीशन अपेक्षाओं के अनुरुप दिखा। अपनी रिपोर्ट में इसने अफगानिस्तान के टोरा बोरा में अमेरिकी हमले के बाद 2002 के मध्य में पाकिस्तान न आए बिन लादेन को पकड़ने में पाकिस्तान की असफलता के लिए षडयंत्र के बजाय अक्षमता का सहारा लिया है।


 


लेकिन अन्य संदर्भों में रिपोर्ट आश्चर्यजनक रही। इसमें प्रमुख सरकारी अधिकारियों के भावात्मक संशयवाद सम्बन्धी झलक है , जो कुछ सुरक्षा अधिकारियों द्वारा चोरी-छिपे मदद करने की संभावनाओं की बात कहती है।


 


यह कहती है कि ”कुछ स्तरों पर मिली भगत, सहयोग और संबंध को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है”।


 


रिपोर्ट , बिन लादेन जिसने अमेरिकी सैनिकों के हाथों में पड़ने से पूर्व सन् 2002-2011 के बीच 6 ठिकाने बदले थे, के दौर के उसके जीवन की ललचाने वाले नये खुलासे करती है। बताया जाता है कि अनेक बार अलकायदा के मुखिया ने अपनी दाढ़ी साफ करा रखी थी और पाकिस्तान या अमेरिकी सेना के हाथों में आने से बचने के लिए ‘काऊ ब्याय हैट‘ भी पहनना जारी किया था।


 


एक बार उस वाहन को तेजी से चलाने के जुर्म में रोका गया था जिसमें वह बैठा था मगर पुलिस अधिकारी उसे पहचानने में असमर्थ रहे और उसे जाने दिया।


 


रिपोर्ट ने पाकिस्तानी अधिकारियों की खिंचाई की है कि उन्होंने देश में सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी के ऑपरेशन्स करना बंद कर दिए हैं और नाना प्रकार से अमेरिकी कार्रवाई को गैर कानूनी या अनैतिक ठहराया है। इसके अनुसार सी.आई.ए. ने प्रमुख सहायक एजेंसियों की कायदा के मुखिया की जासूसी के लिए उपयोग किया , ‘किराए के ठगों‘ को साधा और पाकिस्तानी सरकार में अपने सहयोगियों को पूरी तरह से धोखा दिया।


 


रिपोर्ट कहती है: ”अमेरिका ने एक अपराधिक ठग की तरह काम किया है।”


 


अपनी अनियंत्रित भाषा और संस्थागत दवाबों के चलते रिपोर्ट पाकिस्तान में बिन लादेन के इधर-उधर छुपने की अवधि का सर्वाधिक सम्पूर्ण अधिकारिक वर्णन और अमेरिकी नेवी सील के हमले जिसने उसकी जान ली , को प्रस्तुत करती है।


 


चार सदस्यीय कमीशन में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जावेद इकबाल , एक सेवानिवृत पुलिस अधिकारी, एक सेवानिवृत कूटनीतिक और एक सेवानिवृत सैन्य जनरल हैं। इसकी पहली बैठक अमेरिकी हमले के दो महीने बाद जुलाई, 2011 में हुई और इसकी 52 सुनवाई हुई तथा सात बार यह इलाके में गए।


 


अमेरिकी अधिकारियों ने कमीशन के साथ कोई सहयोग नहीं किया और सोमवार को विदेश विभाग के प्रवक्ता जेन पास्की ने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। पाकिस्तान के घटनाक्रम पर नजर रखने वाले एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि यद्यपि कमीशन की भारी भरकम रिपोर्ट पढ़ने को नहीं मिली है परन्तु उन्होंने कहा कि प्रकाशित सारांशों से प्रतीत होता है कि दस्तावेज बताते हैं कि ”पाकिस्तानी कुछ तो जानते हैं कि कैसे बिन लादेन का वहां अंत हुआ।”


 


कई स्थानों पर पाकिस्तानी रिपोर्ट अमेरिकीयों द्वारा लादेन को पकड़े जाने से पहले पाकिस्तानी अधिकारियों की असफलता पर कुपित होती और हताशा प्रकट करती है।


 


इसमें उन सीमा अधिकारियों की अकुशलता को रेखांकित किया गया है जिन्होंने उसकी एक पत्नी को ईरान जाने दिया , म्युनिसिपल अधिकारी जो उसके घर पर हो रहे असामान्य निर्माण पहचानने में असफल रहे, वे गुप्तचर अधिकारी जिन्होंने सूचनाओं को अपने पास ही रखा और उन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की अकुशलता का उल्लेख किया है जो ‘कर्तव्य पालन करने से वंचित रहने के गंभीर दोषी‘ पाए गए।


 


कमीशन ने उन सैन्य अधिकरियों से बातचीत की है जो पाकिस्तानी वायुसीमा में अमेरिकी विमानों के घुसने से बेखबर रहे और पाया कि 2 मई की रात को अमेरिकीयों द्वारा बिन लादेन के शव को विमान में ले जाने के 24 मिनट के भीतर पहले पाकिस्तानी लड़ाकू जेट फौरन रवाना हुआ।


 


रिपोर्ट कहती है यदि इसे विनम्रता से कहा जाए तो यह यदि अविश्वसनीय नहीं अपितु अकुशलता की स्थिति ज्यादा है तो विस्मयकारक है।


 


रिपोर्ट में उल्लेख है कि सेना की शक्तिशाली इंटर-सर्विस इंटेलीजेंस निदेशालय ”ओबीएल को पकड़ने में पूर्णतया असफल” रहा है और इसमें तत्कालीन खुफिया एजेंसी के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शुजा पाशा की विस्तृत गवाही भी है।


 


osama-compoundकमीशन रेखांकित करता है कि कैसे आई.एस.आई. अधिकांशतया नागरिक नियंत्रण से बाहर ही ऑपरेट करती है। बदले में जनरल पाशा उत्तर देते हैं कि सी.आई.ए. ने सन् 2001 के बाद बिन लादेन के बारे में सिर्फ असंबध्द गुप्तचर सूचनाएं ही सांझा की। रिपोर्ट में लिखा है कि एबटाबाद पर धावा करने से पूर्व अमेरिकीयों ने बिन लादेन के चार शहरों-सरगोधा, लाहौर, सियालकोट और गिलगिट में होने की गलत सूचना दी।


 


जनरल पाशा को उदृत किया गया है कि ”अमेरिकी अहंकार की कोई सीमा नहीं है”। साथ ही साथ यह कि ”पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र था, यहां तक कि हम अभी भी एक असफल राष्ट्र नहीं हैं”। अल जजीरा द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में गायब गवाही सम्बन्धी पृष्ठ जनरल पाशा की गवाही से सम्बन्धित हैं। अपनी बेवसाइट पर अल जजीरा लिखता है कि संदर्भ की जांच से यह लगता है कि गायब सामग्री देश के सैन्य नेता जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा ”सितम्बर 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका से की गई सात मांगों की सूची है।


 


पाकिस्तानी सरकारी अधिकारियों ने अल जजीरा की रिपोर्ट की सत्यता पर कोई टिप्पणी नहीं की है।


 


सोमवार को भी , दि एसोसिएटिड प्रेस ने प्रकाशित किया है कि अमेरिका के स्टेट्स स्पेशल ऑपरेशन के शीर्ष कमांडर ने आदेश दिए कि बिन लादेन पर हमले सम्बन्धी सैन्य फाईलें रक्षा विभाग के कम्प्यूटरों से साफ कर दी जाएं और सी.आई.ए. को भेज दीं जहां उन्हें ज्यादा आसानी से जनता की नजरों से बचाया जा सकता है।


 


वाशिंगटन से इरिक सम्मिट ने इस हेतु सहयोग किया


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


21 जुलाई, 2013


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Published on July 21, 2013 19:36
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