डा. श्यामा प्रसाद की जयंती
आज 6 जुलाई, हमारी पार्टी भारतीय जनसंघ जो अब भारतीय जनता पार्टी के रुप में सक्रिय है, के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुकर्जी की जयंती है। यह ब्लॉग कल जारी होना है।
मैंने स्मरण दिलाया था कि कैसे 1953 की 23 जून को कानपुर में सम्पन्न भारतीय जनसंघ के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन में डा. मुकर्जी ने, देश के सभी भागों से आए जनसंघ के प्रतिनिधियों को जम्मू एवं कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण के बारे में अपने आव्हान से प्रेरित किया था। आखिर क्यों इस प्रदेश की स्थिति उन अन्य 563 देसी रियासतों से अलग होनी चाहिए जिन्होंने स्वतंत्र भारत में पूरी तरह से एकीकरण करना स्वीकार किया।
जनसंघ के सम्मेलन ने जम्मू एवं कश्मीर सरकार द्वारा लागू किए गए परमिट सिस्टम के विरुध्द एक आन्दोलन छेड़ने का फैसला किया। डा. मुकर्जी ने घोषणा की कि वे इस सिस्टम की अवज्ञा करने वाले पहले नागरिक होंगे और बगैर परमिट के प्रदेश में प्रवेश करेंगे। उनको बंदी बनाया जाना और तत्पश्चात् उनका बलिदान अब इतिहास का अंग है।
जैसाकि मैंने एक अन्य ब्लॉग में उल्लेखित किया था कि कांग्रेस संसदीय दल ने भी गोपालास्वामी आयंगर को यही बात कही थी, जिन्हें पण्डित नेहरु ने अपनी अनुपस्थिति में अनुच्छेद 370 को संविधान सभा में प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
सन् 1947 से संसद में यह सुदृढ़ परम्परा रही है कि जिन नेताओं के चित्र सेंट्रल हॉल में लगाए गए हैं, उनके जयंती पर उन्हें फूलों से श्रध्दांजलि देने हेतु सभी सांसदों को निमंत्रित किया जाता है।
आज सुबह भी दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष - श्रीमती सुषमा स्वराज और श्री अरुण जेटली सहित बड़ी संख्या में सांसद सेंट्रल हॉल में उपस्थित थे। परन्तु सबसे ज्यादा मुझे यह अखरा कि न तो कोई कांग्रेसी सांसद और नही कोई मंत्री वहां उपस्थित था। मैं जानता हूं कि कुछ वर्ष पूर्व वीर सावरकर, के चित्र अनावरण कार्यक्रम, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम द्वारा किया गया था, का कांग्रेस पार्टी ने बहिष्कार का औपचारिक निर्णय किया और उसके पश्चात् से वह उनके जन्म दिवस के कार्यक्रम से दूर ही रहते हैं। आज कांग्रेसजनों की अनुपस्थिति जानबूझकर लिया गया निर्णय नहीं लगता। चाहे यह अनजाने में हुआ हो, मगर यह स्वाभाविक पूर्वाग्रह ग्रसित सोच को प्रकट करता है।
यहां पर मैं यह उल्लेख करना चाहूंगा कि श्री ज्योति बसु के नेतृत्व वाली माक्र्सवादी सरकार ने कोलकाता के मैदान में डा. श्यामा प्रसाद की शानदार प्रतिमा लगाने का निर्णय किया था। मैंने तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमणन से इसके अनावरण का अनुरोध किया। वह सहर्ष तैयार हुए और समारोह की गरिमा बढ़ाई।
आज यह सब मैंने वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व को स्मरण कराने के लिए उल्लेख किया है कि देश संभवतया यह निष्कर्ष निकालने को बाध्य होगा कि जहां तक कांग्रेस पार्टी का सम्बन्ध है, उसकी नई पीढ़ी अपने ही पूवजों की परम्परा से दूर हो रही!
टेलपीस (पश्च्यलेख)
मैंने अपने जीवन के प्रारम्भिक बीस वर्ष कराची (सिंध) में बिताए। 1947 में मैंने कराची छोड़ा और अगले दस वर्ष राजस्थान में रहा।
मुझे याद आता है कि जब मैं पहली बार जोधपुर गया तो वहां किसी से मैंने पूछा ”समय क्या है?” उसने जो जवाब दिया वह कुछ ऐसा था जिसे मैं समझ नहीं पाया। जब मैंने दोबारा यह सवाल पूछा तो उसने साफ-साफ जवाब दिया ”साढ़े सात”! मैंने उन्हें कहा कि पहले आपने जो हिन्दी में बताया था वह मेरी समझ में नहीं आया।
बाद में मेरे एक मित्र ने मुझे एक किस्सा दोहराया। उसने बताया कि राजस्थान बीस से ज्यादा रियासतों से बना है। प्रत्येक रियासत के लोग स्वाभाविक रुप से अपनी रियासत पर गर्व करते थे। उसने यह भी कहा कि सामान्य तौर पर महाराणा प्रताप के राज्य मेवाड़ को लोग, वहां के योध्दाओं के शौर्य एवं वीरता के चलते समूचे राजस्थान में गर्व से देखा जाता है।
यह भी समान रुप से दृष्टव्य था कि जयपुर राज्य सदैव दिल्ली के मुगल सुल्तानों के सामने झुकने को तैयार रहता था, जिसके फलस्वरुप उनका सम्मान नहीं था।
उस समय एक दौर ऐसा आया जब दिल्ली के शासकों ने जयसिंह और मान सिंह को बुलाकर कहा कि मुगल सल्तनत जयपुर के महाराजा को सवाई उपाधि से विभूषित करना चाहती है, जिसका अर्थ होता था कि जबकि अन्य राजाओं की हैसियत एक के बराबर होगी परन्तु जयपुर के राजा की सवाई - यानी एक और चौथाईA
मुझे यह किस्सा सुना रहे मेरे मित्र ने बताया कि इस घटना के बाद से सभी अन्य रियासतों के लोगों ने तय किया कि वे स के बजाय ह सम्बोधन बुलाएंगे। वे जयपुर के राजा को सवाई नहीं हवाई बुलाएंगे। अत: उसने निष्कर्ष रुप में कहा कि जब आपने मुझसे समय पूछा तो ”साढ़े सात” कहने के बजाय मैंने ”हाडे हाथ” कहा जिसे आप समझ नहीं पाए।
(स का ह में रुपान्तरण एक सामान्य भाषायी परिवर्तन है। सप्ताह बना हफ्ता ( हिन्दू भी सिन्धु से उत्पन्न हुआ है। लेकिन इस मामले में मुगलों के प्रति नाराजगी इस किस्से में प्रकट होती है।)
लालकृष्ण आडवाणी
नई दिल्ली
7 जुलाई, 2013

L.K. Advani's Blog
- L.K. Advani's profile
- 10 followers
