विश्वारूप : एक शानदार फिल्म
पृथ्वीराज रोड के हमारे निवास पर चंदन की लकड़ी में ऊकेरी गई एक अत्यन्त मनोहारी शिल्पाकृति रखी हुई है जिसमें श्री कृष्ण कुरूक्षेत्र में अर्जुन को गीताज्ञान दे रहे हैं, और इस प्रक्रिया में वह उन्हें अपने विश्वारूप दर्शन दे रहे हैं।
इस मूर्ति, जिसे चिकमंगलूर (कर्नाटक) के कलाकार ने बनाया है, की ज्यादा महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस विश्वारूप के पार्श्व भाग में द्रोपदी चीरहरण, और बाण शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह पाण्डवों को उपदेश देने जैसे महाभारत के अनेक दृश्य न केवल ऊकेरे गए हैं। मत्स्यावतार और कुरूमावतार के सभी दशावतारों से लेकर कृष्ण और काल्की तक शामिल हैं।
एक पखवाड़े या उससे कुछ समय पूर्व मुझे कुछ मीडिया रिपोर्ट देखने को मिलीं जिसमें बताया गया था कि तमिलनाडु के उत्कृष्ट फिल्म निर्माता और निदेशक कमल हासन द्वारा विश्वरूपम (तमिल में) और विश्वारूप (हिन्दी) शीर्षक से बनाई गई फिल्म सम्बन्धी कुछ विवाद पैदा हुआ है। नतीजा यह हुआ कि तमिलनाडू सरकार ने पहले फिल्म को प्रतिबंधित किया, और बाद में कुछ दृश्यों को हटाकर इसके प्रदर्शन की अनुमति दी। जबसे मैंने यह समाचार पढ़ा तब से मुझे इस फिल्म को देखने की इच्छा हुई।
पिछले सप्ताह, मुझे कमल हासन का फोन आया जिसमें उन्होंने स्वयं मुझे सूचित किया कि वह कुछ दिनों के लिए दिल्ली आ रहे हैं और जब वह यहां होंगे तब किसी भी दिन आप मेरी फिल्म देखना चाहें, तो मुझे अच्छा लगेगा।
इसलिए, 3 जून को अपने परिवार और कुछ मित्रों के साथ मुझे इस शानदार फिल्म को देखने का मौका मिला, फिल्म की विषयवस्तु और तकनीकी विशेषता को लेकर मैं मानता हूं कि पिछले कुछ वर्षों में मैंने जो फिल्में देखी हैं, उनमें यह एक सर्वोत्तम फिल्म है।
फिल्म एक जासूसी थ्रिलर है जिसे लिखा भी है कमल हासन ने, और यह मुख्य रुप से तीन देशों-अमेरिका, भारत और जार्डन में इसे फिल्माया गया है।
फिल्म की स्क्रीनिंग के दो दिन बाद कमल हासन सिंधी कड़ी और चावल का स्वाद लेने के लिए हमारे घर आए। रात्रिभोज के पश्चात् मैंने उन्हें कराची में अपने स्कूली दिनों की रोचक घटना सुनाई।
यह कहानी दूसरे विश्व युध्द के दौरान एडॉल्फ हिटलर और बेंटिओ मुसोलिनी की भेंट के बारे में है, जिसमें हिटलर, इटली के सुप्रीमो को बताते हैं कि दोनों द्वारा किए गए पापों की उन्हें मृत्यु के बाद काफी कीमत चुकानी होगी। जब मुसोलिनी ने अपने मित्र को बताया कि जब उनका अंतिम समय आएगा तो वह वेटिकन जाकर पोप से सहायता मांगेगे, जिनके पास स्वर्ग जाने का पास माना जाता है। हिटलर ने उन्हें कहा कि वे पोप को उनका भी नाम प्रस्तावित करें। इस किस्से के साथ कैंची का एक जोड़ा और कागज का टुकड़ा भी दिखाया जाता था जिसमें कहानी के अंत में होता यह था कि दोनों फासिस्ट नेता नरक में पहुंच गए हैं और सिर्फ पोप ही स्वर्ग पहुंचते हैं।
कमल हासन ने इस किस्से और कागज के दिखाए गए प्रदर्शन का आनन्द लिया और मुझसे पूछा: क्या आपने ”ग्रे वॉल्फ: दि एस्केप ऑफ एडोल्फ हिटलर” पुस्तक पढ़ी है। पुस्तक के सह लेखक हैं साइमन डूंस्टान जोकि प्रसिध्द लेखक, फिल्म निर्माता और सैन्य इतिहास के क्षेत्र के जाने माने फोटोग्राफर; और तीस वर्षों से अधिक बीबीसी, स्काई न्यूज और रॉयटर के प्रसिध्द टेलीविज़न पत्रकार गेर्राड विलियम्स।
टेलपीस (पश्च्यलेख)
कमल हासन ने जिस पुस्तक का वायदा किया था, वह उन्होंने मुझे भेजी। 350 पृष्ठों वाली यह पुस्तक काफी शोधपरक है। दोनों लेखकों ने मिलकर सत्रह बार अर्जेन्टीना का दौरा किया, जहां माना जाता है कि 1962 तक वह वहां रहा।
इस पुस्तक का पिछला आवरण इस रुप में सार प्रस्तुत करता है:
शोधपरक पत्रकार गेर्राड विलियम्स तथा सैन्य इतिहासकार साइमन डूंस्टान ने वर्षों के अपने शोध पर यह निष्कर्ष निकाला कि बर्लिन से एडॉल्फ हिटलर का पलायन-ऑपरेशन फ्यूरलैण्ड-को नाजियों ने 1943 से ही अत्यन्त गोपनीयता से तैयार किया था। इस सम्बन्ध में काफी प्रत्यक्षदर्शियों और साक्ष्यों के अनुसार यह आपरेशन सफल रहा और हिटलर दक्षिण अमेरिका को पलायन कर गया जहां वह 1962 में अपनी वास्तविक मृत्यु तक रहा।
लालकृष्ण आडवाणी
नई दिल्ली
9 जून, 2013

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