गुआंतानामो बे बंदीगृह सम्बन्धी ओबामा की दुविधा

indira-gandhiश्रीमती इंदिरा गांधी देश की एक प्रमुख प्रधानमंत्री रहीं जिनके नेतृत्व में सन् 1971 के युध्द में भारत ने पाकिस्तान पर निर्णायक विजय हासिल की, और इसी के चलते पाकिस्तान का विभाजन हुआ और एक नए राष्ट्र बंगलादेश का जन्म हुआ। देश के विभिन्न प्रधानमंत्रियों की बैलेंसशीट की चर्चा करते हुए कुछ समय पूर्व के अपने ब्लॉग में मैंने लिखा था कि हालांकि बंगलादेश का निर्माण श्रीमती गांधी के कार्यकाल की एक सकारात्मक घटना थी परन्तु 1975-77 के दौरान आपातकालीन शक्तियों का खुला दुरुपयोग जिसके चलते स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् से देश की महानतम उपलब्धि - लोकतंत्र, समाप्ति के कगार पर पहुंचा, श्रीमती गांधी की बैंलेसशीट को प्रशंसायोग्य नहीं ठहराता।


 


मैं इसका स्मरण इसलिए करा रहा हूं कि ‘टाइम‘ पत्रिका के ताजा अंक (10 जून, 2013) की आवरण कथा में राष्ट्रपति ओबामा की दु:खदायी दुविधा का उल्लेख किया गया है कि अमेरिका के बदनाम हो चुके बंदी कैंप-गुआंतानामो बे - जहां बुश प्रशासन ने सन् 2001 से चलाए गए आतंकवाद विरोधी अभियानों के तहत गिरफ्तार किए गए हजारों बंदियों को रखा गया है, का क्या किया जाए।


 


michael-crowley‘टाइम‘ का लेख, वाशिंगटन ब्यूरो के डिप्टी चीफ माइकल क्राउले द्वारा लिखा गया है जिसकी शुरुआत इस वक्तव्य से होती है ”बराक ओबामा सिर्फ एक पूरे दिन के राष्ट्रपति रहे हैं और वह 22 जनवरी, 2009 को जब उन्होंने केंद्रीय अभियान वायदे पर अमल किया।” यह तर्क देते हुए कि अमेरिका के संस्थापक भी इस पर सहमत होंगे कि अमेरिका अवश्य ही ”व्यवहार के उन मूल स्तरों का पालन तभी नहीं करेंगे जब आसनी हो अपितु उस समय भी करेंगे जब इन पर अमल करना कठिन हो,” राष्ट्रपति ने गुआंतानामो बे बंदीगृह को बंद करने के एक सरकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए और कहा कि इन्हें बंद करना अमेरिका के उन ‘नैतिक उच्च आधारों‘ को पुनर्स्थापित करेगा जोकि बुश कार्यकाल के दौरान अल-कायदा के विरुध्द चलाए गए अभियान में तिरोहित हो गए थे।


 


लेख में ओबामा द्वारा मई, 2009 में कहे गए वाक्यों को उदृत किया गया है: ”मैं आपको बता सकता हूं कि ऐसी समस्या के बहाने का गलत उत्तर समाप्त हो जाएगा। मैं इसका निर्णय किसी और के लिए नहीं टालूंगा। इसके समाधान की जिम्मेदारी मेरी है।” लेख कहता है: ”चार वर्ष बाद भी गुआंतानामो बे अभी भी है-और इसके 166 कैदियों द्वारा व्यापक भूख हड़ताल और असहयोग-ओबामा फिर से अपनी वह जिम्मेदारी पूरी करने का प्रयास कर रहे हैं।


 


ड्रोन हमलों सहित आतंकवाद विरोधी नीतियों सम्बन्धी 23 मई के अपने सम्बोधन में ओबामा ने घोषणा की कि 9/11 के बाद के आतंकवाद विरोधी युध्द के पश्चात् अमेरिका के बदनाम हुए प्रतीक को बंद करने के पहले प्रयास में आने वाली राजनीतिक बाधाओं के पश्चात् वह एक नयी शुरुआत करेंगे। ओबामा ने कहा: ”(इतिहास) आतंकवाद के विरुध्द हमारे संघर्ष के इस पहलू पर कठोर निर्णय देगा और हम उन सबके प्रति जो इसे समाप्त करने में असफल रहे हैं।”


 


obamaटाइम‘ में लेख आगे लिखा गया है:


 


लेकिन ओबामा को अपनी प्रसिध्द वाकपटुता के अनुरुप कड़ाई से आगे बढ़ना होगा। इन्हें रिहा करने या अमेरिकी बंदीगृहों में उन दर्जनों लोगों जिन्हें खतरनाक आतंकवादी समझा जाता है चाहे वे न हों - को लाने का विरोध अभी भी काफी है। यह संभावना पूछे जाने पर कि क्या राष्ट्रपति पद से निवृत होने से पहले ओबामा गुआंतानामो को बंद कर सकेंगे, इस पर डेविड रेमेज़ जोकि 18 गुआंतानामो कैदियों के वकील हैं, का कहना है, ”जीरो”। 


 


गुआंतानामो मे बंदी रखे गए आतंकवादियों या संदिग्ध आतंकवादियों के वकील द्वारा प्रकट किए गए विचारों को मैं खुलकर अपनाने को तैयार नहीं हूं। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि ओबामा अपने चुनावी वादे को तभी पूरा कर सकते हैं जब यदि उन्हें इसके लिए पर्याप्त जनसमर्थन मिले। आज के परिदृश्य में अमेरिकी सरकार ऐसा करती प्रतीत नहीं होती।


 


भारत मे, हमने देखा है कि सन् 1977 के चुनावी नतीजों, जिन्होंने श्रीमती गांधी को यह अहसास कराया कि अदालत के एक फैसले के गंभीर आयामों से अपने को बचाने के लिए उन्होंने जब संविधान के आपातकाल प्रावधानों का ढिठाई से दुरूपयोग किया, तो वे कितनी गलत थीं। दूसरी ओर ओबामा के संदर्भ में, 9/11 की पृष्ठभूमि में उनकी दुविधा वास्तव में सत्य है और समझ में आने वाली भी है। दूसरी ओर वह गंभीरता से इस पर विचार कर रहे हैं कि आतंकवाद के ऊपर उनके देश द्वारा विजय पाने के संकल्प में कोई कमी न आने देते हुए कैसे इसे सुलझाया जाए - यह उनकी ईमानदारी को प्रकट करता है।


 


इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि माइकल क्राऊले के आवरण पृष्ठ पर शीर्षक है: ”व्हाई गिटमो विल नेवर क्लोज” और साथ में एक उपशीर्षक है: ”राष्ट्रपति ओबामा विवादास्पद बंदीगृह को बंद करना चाहते हैं लेकिन उन नीतियों को नहीं जिनका वह प्रतिनिधित्व करते हैं।”


 


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


4 जून, 2013


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Published on June 04, 2013 19:12
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