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कफन में जेब नहीं होती

मैं नियमित रुप से स्कूल जाने वाला विद्यार्थी रहा हूं जिसने शायद ही कभी-कभार छुट्टी ली होगी। लेकिन मुझे याद है कि रणजी ट्राफी क्रिकेट मैच देखने के लिए एक बार मैंने स्कूल से छुट्टी मारी और जहां तक मैं स्मरण कर पा रहा हूं कि उसमें या तो विजय हजारे अथवा वीनू मांकड़ खेल रहे थे।


 


तब से मैं क्रिकेट का शौकीन हूं। उन दिनों टेलीविजन नहीं था; अत: क्रिकेट प्रेमी कहीं भी खेले जा रहे महत्वपूर्ण मैचों का आनन्द आल इण्डिया रेडियो पर कमेंटरी सुनकर उठाया करते थे। मुझे स्मरण आता है कि कुछ वर्ष पूर्व बीबीसी ने मेरा एक इंटरव्यू किया था जिसमें मेरे गैर-राजनीतिक रूचियां जैसे फिल्में, पुस्तकें और क्रिकेट के बारे में पूछा गया था, इस दौरान मैंने उस युग के उत्कृष्ट कमेंटेटर एएफएस तल्यारखान की कमेंटरी की नकल करने का प्रयास किया था।


 


lao-tzuइसलिए इन दिनों क्रिकेटरों को मुखपृष्ठ की सुर्खियां बनती देख मुझे गुस्सा आता है क्योंकि यह सुर्खियां उनके द्वारा कोई रिकार्ड तोड़ने, या बल्लेबाजी अथवा गेंदबाजी  में कीर्तिमान बनाने के चलते नहीं अपितु मैच फिक्सिंग, या स्पॉट-फिक्सिंग से दौलत बटोरने तथा इसी प्रक्रिया में सट्टेबाजों और जुआरियों के और अमीर बनने के कारण बन रही हैं!


 


लाओ त्जु ईसा पूर्व छठी शताब्दी के एक महान चीनी दार्शनिक थे। उनकी सभी सीखें इस पर जोर देती हैं कि ठाठदार इच्छाओं से बढ़कर कोई बड़ी विपत्ति नहीं है। ‘वे ऑफ लाओ त्जू‘ शीर्षक वाली पुस्तक में उनको उदृत किया गया है: ”लालच से बढ़ी कोई विपदा नहीं है।”


 


shekharहालैण्ड के एक दार्शनिक वेडेंडिक्ट स्पिनोझा ने धनलोलुपता और लिप्सा को न केवल पाप अपितु उसे ‘पागलपन‘ ठहराया है! मैं चाहता हूं कि प्रत्येक मनुष्य को यह अहसास रहना चाहिए कि अंतिम समय में कोई कुछ अपने साथ नहीं ले जाता।


 


इण्डियन एक्सप्रेस में शेखर गुप्ता के ‘वॉक दि टॉक‘ साक्षात्कार सदैव पाठकों को काफी समृध्द सामग्री उपलब्ध कराते हैं। इस महीने की शुरुआत में उन्होंने कभी भारत की क्रिकेट टीम के विकेट कीपर रहे फारुख इंजीनियर से एक सजीव साक्षात्कार किया है।


 


इस पूर्व विकेट कीपर से किया गया साक्षात्कार पूर्ण पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ है, जिसका बैनर शीर्षक एक पूर्व तेज गेंदबाज का यह वाक्य है: ‘यदि आप तेज गेंदबाजी से डरते हो, तो बैंकिंग जैसे अन्य व्यवसाय में जाओ।‘


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आज की भारतीय क्रिकेट में, वीरेन्द्र सहवाग की छवि शुरुआती तेज रन लेने वालों की है; उन दिनों में इंजीनियर एकमात्र ऐसे बल्लेबाज थे जिन्होंने 46 गेंदों में एक सेंचुरी बनाई थी! समूचे साक्षात्कार में पूर्व और वर्तमान युग के क्रिकेट मैचों की तुलना करते हुए इसका भी उल्लेख हुआ कि आज कल कितने बेहतरीन बल्ले बनाए जाते हैं जबकि फारुख के समय में ”हमारा तो ब्रुक बांड चाय का डब्बा था; कोई मिडिल था ही नहीं; आपको ही इसे तेल लगाना पड़ता था और यही सब वो जमाना था!”


 


निस्संदेह सर्वाधिक बड़ी बात तुलनात्मक रुप से यह उभर कर सामने आती है कि उन वर्षों में कभी किसी टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी पर ऐसे सवाल नहीं उठे कि उसने अपनी प्रतिभा का दुरूपयोग कर पैसा कमाया। वास्तव में, फारुख इंजीनियर का टीवी दर्शकों से परिचय कराते समय शेखर गुप्ता ने बताया: ”क्या आप जानते हैं कि एम.एस. धोनी से काफी पहले एक ऐसा भारतीय विकेट कीपर था जिसके बालों का स्टाइल और जिसके जोरदार तरीके पूरे भारत को दीवाना बना देते थे?”


 


इंजीनियर के बालों के स्टाइल का संदर्भ देते हुए शेखर गुप्ता ने कहा: ”आप अपने स्टाइल से प्रसिध्द हो गए थे। आप एक बड़े ब्रिलक्रीम मॉडल थे।”


 


आज कल के क्रिकेटरों की कमाई की पृष्ठभूमि में यह ब्रिलक्रीम का संदर्भ समूचे साक्षात्कार में बार-बार आया। शेखर की टिप्पणी थी: ”लोग नहीं जानते होंगे कि ब्रिलक्रीम के बारे में।” फारुख का उत्तर था:


 


”ब्रिलक्रीम वास्तव में एक चीज थी, यदि ब्रिलक्रीम ने आपको ‘एप्रोच‘ किया तो आपकी जिंदगी बन गई। तब आप अच्छे दिखने वाले सुअर हो या कुछ भी। और ब्रिलकी्रम ने वास्तव में मुझे 500 पौंड से ज्यादा किए बशर्ते मैं बगैर ‘कैप‘ के बल्लेबाजी करुं!”


 


साक्षात्कार में आगे चलकर वह स्मरण करते हैं कि कैसे आस्ट्रेलियाई और अन्य विदेशी हमें ‘ब्लडी इण्डियन‘ कहकर पुकारा करते थे। फारुख  कहते हैं: इससे मुझे नाराजगी होती थी, इससे मैं दु:खी होता था क्योंकि मैं अपने भारतीय होने पर सोत्साहपूर्वक गर्व करता था। और अभी आइपीएल के सब पैसे हैं, वे सब यहां पैसा कमाने आए हैं।” साक्षात्कार के अंतिम पैराग्राफ निम्न हैं:


 


शेखर गुप्ता:        फारुख यदि टीम ने क्रिकेट के खेल में शानदार मोड़ लाया था तो मैं देख सकता हूं कि यह कैसे सम्भव हुआ। यह आप जैसे लोगों की खेल में वह भावना और आनन्द था।


 


फारूख इंजीनियर%   खेल में कोई पैंसे के बगैर।


 


शेखर गुप्ता:       बिलक्रीम से मिले कुछ हजार पौण्ड के सिवाय, और वह भी कपिल देव द्वारा पॉलमोलिव के लिए किए जाने से काफी पहले।


 


फारुख इंजीनियर: ब्रिलक्रीम अंतराष्ट्रीय स्तर पर थी। पॉलमोलिव स्थानीय। जब आप ब्रिलक्रीम मॉडल हो तो यह ऐसा था कि आप ‘वोग‘ पत्रिका के मुखपृष्ठ पर छप रहे हों जो पूरी दुनिया में जाती है। इसलिए यह ब्रिलक्रीम जैसी थी।


 


शेखर गुप्ता:        अनेक दशकों से भारतीय क्रिकेट में एक महान अंतराष्ट्रीय नागरिक आप जैसा है ही नहीं। अत: एक बार फिर से इस बातचीत की क्या विशेषता है।


 


फारुख इंजीनियर: पूर्णतया आनन्द।


 


देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार के बारे में सन 2008 के राष्ट्रमंडल खेलों से सुना जा रहा है जिसके चलते हमारे राष्ट्र की काफी बदनामी हुई है। परन्तु वर्तमान के दौर में अलग श्रेणी के नायकों के शामिल होने से यही तथ्य उभरता है कि इस सभी गिरावट की जड़ में पैसा मुख्य है।


 


किसी ने सही ही कहा है: धन रखना बहुत अच्छा है ; यह एक मूल्यवान चाकर हो सकता है। लेकिन धन आपको रखे तो यह ऐसा है जैसे कोई शैतान आपको पाल रहा है, और यह सर्वाधिक स्वार्थी और खराब किस्म का शैतान है!


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


26 मई, 2013


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Published on June 01, 2013 23:00
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