अद्भुत लेखक: विचारप्रेरक पुस्तक

पिछले महीने मुझे ‘खुशवंतनामा : दि लेसन्स ऑफ माई लाइफ‘ की एक प्रति प्राप्त हुई। 188 पृष्ठों की इस पुस्तक को मैं लगभग एक बार में ही पढ़ गया। पुस्तक पढ़ने के पश्चात् मुझे पहला काम यह लगा कि मैंने अपने कार्यालय से खुशवंत सिंह से सम्पर्क करने को कहा ताकि पेंगइन विंकिंग द्वारा प्रकाशित इस शानदार पुस्तक के लिए मैं उनको बधाई दे सकूं।


 


khushwant-singhखुशवंत सिंह के घर पर फोन उठाने वाले व्यक्ति ने मेरे कार्यालय को सूचित किया कि वे फोन पर नहीं आ सकेंगे। एक संदेश यह दिया गया कि यदि आडवाणी खुशवंत सिंह ही को मिलना चाहते हैं तो शाम को आ सकते हैं। मैंने तुरंत उत्तर दिया कि आज शाम को मेरा अन्यत्र कार्यक्रम है लेकिन अगले दिन में निश्चित ही उनसे मिलने आऊंगा।


 


खुशवंत सिंह का जन्म 2 फरवरी, 1915 को हुआ। इसलिए जब फरवरी, 2013 में यह पुस्तक प्राप्त हुई तो मैं जानता था कि उन्होंने अपने जीवन के 98 वर्ष पूरे कर 99वें में प्रवेश किया है!


 


मैंने किसी और अन्य लेखक को नहीं पढ़ा जो सुबोधगम्यता के साथ-साथ इतना सुन्दर लिख सकता है, और वह भी इस उम्र में। इसलिए इस ब्लॉग के शीर्षक में मैंने न केवल पुस्तक अपितु लेखक की भी प्रशंसा की है।


 


पुस्तक की शुरुआत में शेक्सपियर की पंक्तियों को उदृत किया गया है:


 


      दिस एवव ऑल, टू थाइन ऑन सेल्फ बी टू्र


      एण्ड इट मस्ट फॉलो, एज दि नाइट दि डे,


      थाऊ कांस्ट नॉट दैन बी फाल्स टू एनी मैन।


                        हेमलेट एक्ट-1, सीन III


 


(भावार्थ: जो व्यक्ति अपने बारे में ईमानदार होगा वही दूसरों के बारे में झूठा नहीं हो सकता।)


 


मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि यह पुस्तक मन को हरने वाले प्रमाण का तथ्य है कि खुशवंत सिंह ने अपने बारे में लिखते समय भी उन्होंने असाधारण साफदिली के साथ लिखा है। उनके परिचय के पहले दो पैराग्राफ उदाहरण के लिए यहां प्रस्तुत हैं:


 


”परम्परागत हिन्दू मान्यता के अनुसार अब मैं जीवन के चौथे और अंतिम चरण संन्यास में हूं। मैं कहीं एकांत में ध्यान लगा रहा होऊंगा, मैंने इस दुनिया की सभी चीजों से लगाव और अनुराग छोड़ दिया होगा। गुरु नानक के अनुसार, नब्बे की आयु में पहुंचने वाला व्यक्ति कमजोरी महसूस करने लगता है, इस कमजोरी के कारणों को नहीं समझ पाता और निढाल सा पड़ा रहता है। अपने जीवन के इस मोड़ पर मैं अभी इनमें से किसी भी अवस्था में नहीं पहुंचा हूं।


 


अठानवें वर्ष में, मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं कि हर शाम को सात बजे मैं अभी भी माल्ट व्हिस्की के एक पैग का आनन्द लेता हूं। मैं स्वादिष्ट खाना चखता हूं, और ताजा गपशप तथा घोटालों के बारे में सुनने को उत्सुक रहता हूं। मुझसे मिलने आने वाले लोगों को मैं कहता हूं कि यदि किसी के बारे में आपके पास अच्छा कहने के लिए नहीं है, तो आओ और मेरे पास बैठो। मेरे आस-पास की दुनिया के बारे में जानने की उत्सुकता मैंने बनाए रखी है; मैं सुंदर महिलाओं के साथ का आनन्द लेता हूं; मैं कविताओं और साहित्य तथा प्रकृति को निहारने का आनंद उठाता हूं।”


 


प्रस्तावना के अलावा पुस्तक में सोलह अध्याय हैं। एक पूर्व पत्रकार होने के नाते यह तीन विशेष मुझे ज्यादा पसंद आए:


 


1-  दि बिजनेस ऑफ राइटिंग


2-  व्हाट इट टेक्स टू बी ए राइटर


3-  जर्नलिज्म दैन एण्ड नाऊ


***


 


‘डीलिंग विथ डेथ‘ शीर्षक वाले अध्याय में लेखक लिखता है :


वास्तव में मृत्यु के बारे में, मैं जैन दर्शन में विश्वास करता हूं कि इसका जश्न मनाना चाहिए। सन् 1943 में जब मैं बीसवें वर्ष में था तभी मैंने अपनी स्वयं की श्रध्दांजलि लिखी थी। बाद में यह लघु कहानियों के मेरे संस्करण में ‘पास्चुमस‘ (मरणोपरांत) शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। इसमें मैंने कल्पना की कि दि ट्रिब्यून ने अपने मुखपृष्ठ पर एक छोटे चित्र के साथ मेरी मृत्यु का समाचार प्रकाशित किया है। शीर्षक इस तरह पढ़ा जाएगा: ‘सरदार खुशवंत सिंह डेड; और आगे छोटे अक्षरों में प्रकाशित होगा: गत् शाम 6 बजे सरदार खुशवंत सिंह की अचानक मृत्यु की घोषणा करते हुए खेद है। वह अपने पीछे एक युवा विधवा, दो छोटे बच्चे और बड़ी संख्या में मित्रों और प्रशंसकों…. को छोड़ गए हैं। दिवगंत सरदार के निवास पर आने वालों में मुख्य न्यायाधीश के निजि सचिव, अनेक मंत्री और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।‘


 


पुस्तक के अंत में एक अध्याय ”ट्वेल्व टिप्स टू लिव लॉन्ग एण्ड बी हैप्पी” (लंबे और प्रसन्न जीवन के बारह टिप्स) शीर्षक से इसमें है। मेरी सुपुत्री प्रतिभा ने मुझे कहा: ”इस पुस्तक को पढ़े बगैर ऐसा लगता है कि खुशवंत सिंह द्वारा बताए गए टिप्स में से अधिकांश का आप पालन कर रहे हैं। इस पुस्तक में बताए गए टिप्स में से दो अत्यन्त मूल्यवान यह हैं: अपना संयम बनाए रखें, और झूठ न बोलें! और आप लगभग सहज भाव से दोनों का पालन करते हैं।”


 


पुस्तक का अंतिम अध्याय स्मृतिलेख (एपटैफ) है जोकि निम्न है:


 


जब मैं नहीं रहूंगा तब मुझे कैसे स्मरण किया जाएगा? मुझे एक ऐसे व्यक्ति के रुप में स्मरण किया जाएगा जो लोगों को हंसाता था। कुछ वर्ष पूर्व मैंने अपना ‘स्मृति लेख‘ लिखा था:


 


यहां एक ऐसा शख्श लेटा है जिसने न तो मनुष्य और न ही भगवान को बख्शा,


उसके लिए अपने आंसू व्यर्थ न करो, वह एक समस्या कारक व्यक्ति था,


शरारती लेखन को वह बड़ा आनन्द मानता था,


भगवान का शुक्रिया कि वह मर गया, एक बंदूक का बच्चा।


                                       -खुशवंत सिंह


 


रविवार 3 मार्च, 2013 को मैं सरदार खुशवंत सिंह से मिलने नई दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान सुजान सिंह पार्क (उनके दादा के नाम पर) गया। मैंने उन्हें इस पुस्तक को लिखने पर हार्दिक बधाई दी और उनका अभिनंदन किया। चाय पीते हुए उस स्थान पर एक घंटा आनन्द से गुजारा। मैं उनकी पुत्री माला से भी मिला जो साथ वाले फ्लैट में रहती हैं और उनकी अच्छे ढंग से देखभाल करती हैं।


 


टेलपीस (पश्च्यलेख)


 


book-cover-page1राष्ट्रपति जैल सिंह का उसी टेक्सन अस्पताल में ऑपरेशन हुआ जिसमें उनके पूर्ववर्ती संजीवा रेड्डी का हुआ था। जब उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया तो मुख्य सर्जन ने राष्ट्रपति से पूछा: ‘आर यू रेडी?’ (क्या आप तैयार हो)।


‘नो, ऑय एम नॉट, उन्होंने जवाब दिया ‘ऑय एम जैल सिंह।‘ (नहीं, मैं नहीं हूं। मैं जैल सिंह हूं)।


                               


पुस्तक के ”ह्यूमर इज ए लैथिल वैपन” अध्याय से


 


 


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


18 मार्च, 2013


 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on March 18, 2013 03:12
No comments have been added yet.


L.K. Advani's Blog

L.K. Advani
L.K. Advani isn't a Goodreads Author (yet), but they do have a blog, so here are some recent posts imported from their feed.
Follow L.K. Advani's blog with rss.