श्री नारायण गुरु सम्बन्धी केरल की पहल का देश में भी अनुसरण हो

नव वर्ष की शुरुआत हो चुकी है। मुझे इसकी प्रसन्नता है कि दिसम्बर, 2012 के अंतिम दिन मैं केरल में था और एक महान योगी तथा सिध्द श्री नारायण गुरु-अस्पृश्यता और जातिवाद के विरुध्द जिनके अथक संघर्ष की महात्मा गांधी ने भी प्रशंसा की-की पुण्य स्मृति से जुड़े तीर्थस्थल शिवगिरी जाने का सौभाग्य मिला।


 


guruश्री नारायण गुरु का जन्म ऐसे समय पर हुआ जब अस्पृश्यता का अपने घृणित रुप में चलन था। ऐसी भी गलत धारणा प्रचलित थी कि कुछ लोगों की छाया भी अन्यों को अपवित्र कर देती थी। एक समान आराध्य और धर्म को मानने वाले लाखों श्रध्दालुओं में से कुछ को मंदिर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था।


 


मुझे स्मरण आता है कि तिरुअनंतपुरम से लगभग 45 किलोमीटर दूर वरकला स्थित शिवगिरी मठ में मुझे 1987 में आमंत्रित किया गया था। सन् 1932 से प्रत्येक वर्ष होने वाले तीन दिवसीय समारोह  में मुख्य अतिथि के रुप में मुझे बुलाया गया था। खराब मौसम के चलते तिरुअनंतपुरम जाने वाली विमान सेवा रद्द हो गई थी और मैं नहीं पहुंच सका। शिवगिरी, वरकला पहाड़ियों में स्थित है जहां गुरु (नारायण) के अनुयायी लाखों की संख्या में उनकी समाधि, और उनके द्वारा स्थापित शारदा (सरस्वती) मंदिर के दर्शन करने पहुंचते हैं।


 


शिवगिरी में सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करने से पूर्व श्री नारायण गुरु ने अरुविप्पुरम में शिव मंदिर स्थापित किया। अत: अब 1987 में मैं वहां नहीं पहुंच सका तो किसी तरह अगले वर्ष मैं अरुविप्पुरम की यात्रा कर सका। इसलिए इस वर्ष अपने उद्धाटन भाषण की शुरुआत मैंने पीताम्बर वस्त्र धारण किए विशाल संख्या में उपस्थित श्रध्दालुओं से इस क्षमा याचना के साथ की कि मैं इस पवित्र स्थल पर 25 वर्ष बाद पहुंचा हूं।


 


इस तीन दिवसीय आयोजन की श्री नारायण गुरु ने योजना बनाई थी और 1928 में उनकी मृत्यु से पूर्व इसे घोषित किया गया। यह प्रत्येक वर्ष 30,31 दिसम्बर और 1 जनवरी को आयोजित किया जाता है। 30 दिसम्बर को इस आयोजन की औपचारिक शुरुआत राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा की गई। दूसरे दिन के तीर्थदनम सम्मेलन, के इस वर्ष का उद्धाटन मुझे करने को कहा गया था। इसकी अध्यक्षता केंद्रीय मंत्री वायलर रवि ने की। अंतिम दिन अनेक प्रमुख विद्वानों ने श्री नारायण गुरु द्वारा प्रतिपादित आचार संहिता (Code of Ethics) के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए।


 


अपने भाषण में मैंने एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चाण्डी द्वारा की गई घोषणा कि 2013 से श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं को केरल राज्य में स्कूली पाठयक्रम में जोड़ा जाएगा, का स्वागत किया।


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वस्तुत: यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय विद्यालयों में इतिहास की पढ़ाई अधिकांशतया राजाओं, उनके वंश, उनके युध्दों और शोषण पर ही केंद्रित रहती है। हमारे विध्दानों, साधु-संतो के अविस्मरणीय योगदान से सामान्यतया बच्चों को अक्सर इस आधार पर वंचित रखा जाता है कि एक सेकुलर देश में धर्म वर्जित कर्म है। यह एक बेहूदा दृष्टिकोण है। अत: शिवगिरी में अपने भाषण में मैंने केंद्रीय मंत्री वायलर रवि से अनुरोध किया कि केरल द्वारा की गई पहल को केंद्रीय और अन्य राज्यों में भी अपनाया जाए। यदि स्वामी दयानन्द सरस्वती, श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द जैसे संतों की शिक्षाओं को पाठयक्रमों का सामान्य हिस्सा बना दिया जाए तो स्कूली पढ़ाई का स्तर बढ़ेगा।


 


प्रवासी भारतीय मंत्री श्री रवि ने कहा कि वे इस विषय को प्रधानमंत्री के ध्यान में लाएंगे।


 


उस दिन के अपने सम्बोधन में मैंने स्मरण किया कि स्कूल में पढ़ते समय हमें पता चला कि किसी विद्यार्थी की प्रतिभा के स्तर का आधार इस से आंका जाता था कि उसका ‘बौध्दिक स्तर‘ (इन्टेलिजेन्स क्वोशन्ट) कितना उपर या नीचे है। बाद में संयोग से एक पुस्तक ‘इ क्यू‘ यानी ‘भावात्मक स्तर‘ (इमोशनल क्वोशन्ट) पढ़ने पर मुझे लगा कि किसी के निजी व्यक्तित्व को परखने के लिए ‘बौध्दिक स्तर‘ (इन्टेलिजेंस क्वोशन्ट) महत्वपूर्ण होगा परन्तु उसका इ क्यू यानी ‘भावात्मक स्तर‘ पर भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। ‘भावात्मक स्तर‘ से तात्पर्य यह है कि कैसे एक व्यक्ति क्रोध, द्वेष इत्यादि जैसे भावों को ग्रहण करता है। उस दिन मैंने कहा कि जो केरल ने किया है और जो मैंने देशभर के शैक्षणिक संस्थानों को करने के लिए अनुरोध किया, कुछ ऐसा है जो हमारे सभी देशवासियों का ‘आध्यात्मिक स्तर‘ (स्पिरिचवल क्वोशन्ट) भी बढ़ाएगा। एस क्यू (स्पिरिचवल क्वोशन्ट) धारणा गढ़ते समय मेरे मन में किसी धर्म या पंथ का विचार नहीं था, मैं तो सिर्फ उन नीतिपरक और नैतिक मूल्यों के बारे में सोच रहा था जो एक विद्यार्थी अपने संस्थान से ग्रहण कर सकता है।


 


सन् 1902 में अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व स्वामी विवेकानन्द जी ने टिप्पणी की थी कि देश को एक ऐसी मनुष्य निर्माण मशीन की जरुरत है जो एम पूंजी के साथ मनुष्यों का निर्माण कर सके। उनके दिमाग में ऐसे मनुष्य रहे होंगे जो आइ क्यू, इ क्यू और एस क्यू सम्पन्न हों यानी वे मनुष्य जो अपवाद रुप उच्च चरित्र और असाधारण योग्यता तथा प्रतिभा सम्पन्न हो।


 


यदि हमारे शैक्षणिक संस्थान स्वामी विवेकानन्द द्वारा विचारित मनुष्य निर्माण मशीनरी को अमल में लाने में सफलता प्राप्त करते हैं तो यह देश के लिए अनुकरणीय सेवा होगी।


***


शिवगिरी की यात्रा की पूर्व संध्या पर, तिरुअनंतपुरम में ही, वर्षों से मेरे पार्टी सहयोगी और श्री वाजपेयी की सरकार में मेरे मंत्रिमण्डलीय सहयोगी श्री ओ. राजागोपालजी के सार्वजनिक जीवन में पचास वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया था। केरल यूनिवर्सिटी के खचाखच भरे सीनेट सभागार में सभी वक्ताओं ने केरल के हमारे नेता की योग्यता, प्रामाणिकता और एनडीए सरकार में केंद्रीय मंत्री के रुप में केरल के कल्याण के लिए दिए गए योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। लेकिन मैं महत्वपूर्ण समझता हूं उस दिन राजगोपालजी का अभिन्न्दन करने आने वाले नेताओं की उपस्थिति को। मंच पर समूचे राजनीतिक और सामाजिक वर्गों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।


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कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में, मैंने सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं से दलगत दायरों से ऊपर एकजुट होकर तथा ईमानदारीपूर्वक भारत को दुनिया में अग्रणी बनाने के लिए काम करने का अनुरोध किया। विपक्ष के नेता वी.एस. अच्युतानन्दन ने मुख्य भाषण देते हुए कहा कि यद्यपि राजनीति में वह और श्री राजगोपाल एक-दूसरे के विरोधी धु्रव पर हैं, परन्तु तब भी वे गहरे मित्र हैं। हालांकि, माकपा और भाजपा ने आपातकाल के विरुध्द संघर्ष की छोटी अवधि में मिलकर काम किया, और इस अवधि के दौरान वह तथा श्री राजगोपाल कारावास में एक साथ बंदी थे।


 


कार्यक्रम की अध्यक्षता गांधी स्मारक निधि के चेयरमैन पी. गोपीनाथन नायर ने की। उनके अलावा सम्बोधित करने वालों में थे स्वास्थ्य मंत्री वी. एस. शिवाकुमार, भाकपा के राज्य सचिव पानियन रविन्द्रन, कवि ओ.एन.वी. कुरुप, महापौर के. चंद्रिका, भाजपा के वरिष्ठतम सहयोगी परमेश्वरन, राज्य भाजपा के अध्यक्ष वी. मुरलीधरन, केरल कांग्रेस के नेता वी. सुरेन्द्रन पिल्लई, साइरो-मलानकरा कैथोलिक चर्च ऑक्सिलॅरी बिशप सैम्युल मार इरेनियस, स्वामी तत्वारुपानंदा और एन आई एम एस मेडीसिटी के मैंनेजिंग डायरेक्टर एम.एस. फैजल खान-भी थे।


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


4 जनवरी, 2013


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Published on January 05, 2013 07:11
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