इतिहास को दबाना नहीं चाहिए

मेरे पूर्व प्रकाशित ब्लॉग में से एक का शीर्षक है: 25 जून, 1975: भारत के लिए एक न भूलने वाला दिन। एक अन्य ब्लॉग का शीर्षक था: 1975 का आपातकाल नाजी शासन जैसा।


 


मेरे संस्मरणों को प्रकाशित करने वाली ‘रूपा एण्ड कम्पनी‘ ने अस्सी से अधिक मेरे ब्लॉगों को संग्रहित कर ‘एज़ आय सी इट‘ (AS I SEE IT) शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित की है।


 


इनमें से अनेक ब्लॉग जून 1975 में देश पर थोपे गए कठोर आपातकाल और 21 मास बाद जब मार्च 1977 में लोक सभा चुनाव हुए जिनमें श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार को उखाड़ फेंका गया और नई दिल्ली में श्री मोरारजीभाई देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार बनी - से सम्बन्धित हैं। स्वतंत्रता के बाद यह पहला मौका था जब केन्द्र में एक गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।


 


1975 के आपातकाल के दौरान 1,10,806 लोगों को जेलों में बंदी बना दिया गया। इनमें प्राय: सभी प्रमुख विपक्षी नेता, बड़ी संख्या में सांसद, विधायक और पत्रकार शामिल थे।


 


जेल में रहते हुए मेरे द्वारा लिखे गए अनेक पैम्फलेटों में से एक था ‘ए टेल ऑफ टू इमरजेंसीज‘ जिसे आपातकाल के विरूध्द हमारे भूमिगत पार्टी कार्यकर्ताओं ने काफी मात्रा में वितरित किया था, इसमें 1975 के श्रीमती इंदिरा गांधी के आपातकाल और 1933 में एडोल्फ हिटलर के आपातकाल का आश्चर्यजनक तुलनात्मक अध्ययन वर्णित किया गया था।


 


पिछले सप्ताह जब एक सुप्रसिध्द फिल्म निर्माता मेरे घर पर आए तो मैंने उन्हें अपनी जेल डायरी ‘ए प्रिजनर्स स्क्रेप बुक‘ (A Prisoner’s Scrap Book) के साथ साथ ब्लॉग वाली अपनी पुस्तक भेंट की। मैंने विशेष रूप से उनका ध्यान एक ब्लॉग की ओर आकृष्ट किया जिसका शीर्षक है ”अब आपातकाल पर भी फिल्म बने।”


 


फिल्म निर्माता ने इस विषय में काफी रूचि दिखाई; वह मुझसे सहमत थे कि स्वतंत्र भारत के इतिहास के इस भयावह चरण की देश के फिल्म निर्माताओं ने पूरी तरह उपेक्षा की है लेकिन इस पर जोर दिया कि यह उपेक्षा इस कारण्ा से है कि जो लोग सत्तारूढ़  हैं, वे वास्तव में इसके सही और ईमानदार चित्रण को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। यहां तक कि ब्रिटिशराज के दौरान भी देश में इतना दमन नहीं हुआ था और न ही मीडिया पर इतनी कड़ी सेंसरशिप लागू की गई थी।


 


raviगत् सप्ताह घटित एक छोटी सी घटना ने फिल्म उद्योग के इस डर की पुष्टि की। पुड्डुचेरी के 46 वर्षीय एक लघु व्यवसायी एस. रवि ने 19 अक्तूबर 2012 को एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा था कि ‘वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के बेटे कार्ति के पास राबर्ट वाड्रा से ज्यादा सम्पत्ति है।‘


 


 


karti-chidambaram-copyरवि, जो पुड्डुचेरी से ‘इण्डिया एगेंस्ट करप्शन‘ की गतिविधियों में सक्रिय हैं, को पुलिस ने इस ट्वीट के आधार पर बुलाया और उसे गिरफ्तार कर लिया। मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डेविड अन्नोसामी ने रेखांकित किया कि जो आधार पुलिस ने रवि के केस में माना है, उस आधार पर अनेक ट्वीट करने वाले गिरफ्तार किए जा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को किसी ट्वीट से शिकायत है तो निश्चित रूप से वह ट्वीट करने वाले व्यक्ति के विरूध्द मानहानि का केस दायर कर सकता है। सिर्फ न्यायालय द्वारा दोषी पाए जाने पर ही उसे गिरफ्तार किया जा सकता है।


 


टेलपीस (पश्च्यलेख)


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आपातकाल के पश्चात्, सत्ता संभालने के तुरंत बाद ही प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई ने आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार द्वारा की गई ज्यादतियों और संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों के दुरूपयोग की जांच हेतु एक जांच आयोग गठित किया।


 


आयोग की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जे.सी. शाह ने की। आयोग का काम आसान नहीं था। फिर भी, बहुत कम आयोगों ने इतना बड़ा कर्तव्य इतनी शीघ्रता से पूरा किया होगा जैसा शाह आयोग ने कर दिखाया। अगस्त 1978 तक आयोग ने अपनी तीसरी और अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।


 


शाह आयोग रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए विकीपीडिया लिखता है :


 


रिपोर्ट विशेष रुप से इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी और प्रशासनिक सेवाओं के उन अधिकारियों जिन्होंने संजय गांधी की सहायता की , के लिए हानिकारक है। इस रिपोर्ट को इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार जो 1980 में सत्ता में पुन: वापस आई, ने रद्द कर दिया। सरकार ने असाधारण कदम उठाते हुए शाह आयोग की प्रत्येक प्रकाशित रिपोर्ट को वापस लेकर उसकी प्रतियों को नष्ट कर दिया। अब यह माना जाता है कि इस रिपोर्ट की एक मात्र प्रति भी भारत में मौजूद नहीं है। आयोग की तीसरी और अंतिम रिपोर्ट ऐसा लगता है भारत से बाहर चली गई और वर्तमान में नेशनल लायब्रेरी ऑफ आस्ट्रेलिया में है।


 


era-sezianइस तथ्य की पुष्टि अन्य अनेक टिप्पणीकारों ने भी की है। मेरे वरिष्ठ संसदीय सहयोगी श्री इरा सेझियन जो डीएमके के संस्थापक श्री सी.एन. अन्नादुरई के कट्टर अनुयायी थे, इस सबसे काफी व्यथित थे और उन्होंने इन नष्ट हुए दस्तावेजों को सहेजकर निजी रूप से इन्हें प्रकाशित कर इतिहास और लोकतंत्र की उत्कृष्ट सेवा की है। मुझे इस पर गर्व है कि श्री सेझियन ने इस ताजा प्रकाशन ”शाह कमीशन रिपोर्ट : लोस्ट एण्ड रिगेन्ड” का लोकार्पण करने हेतु मुझे चेन्नई बुलाया था।


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


4 नवम्बर, 2012


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Published on November 04, 2012 18:26
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