डा. मनमोहन सिंह ने 2002 में कहा था: खुदरा में एफडीआई रोजगार को नष्ट कर देगा

अपने पिछले ब्लॉग में मैंने स्मरण कराया था कि एनडीए सरकार के समय कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्य सचेतक श्री प्रियरंजन दासमुंशी ने खुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सम्बन्धी योजना आयोग की सिफारिश का संदर्भ देते हुए वाजपेयी सरकार द्वारा ऐसा ‘राष्ट्र-विरोधी‘ काम करने की दिशा में बढ़ने की निंदा की थी।


 


वाणिज्य मंत्री के रूप में श्री अरूण शौरी ने संसद में तुरंत खड़े होकर यह दोहराया था कि सरकार ऐसे किसी भी प्रस्ताव के पक्ष में नहीं है।


 


manmohanपिछले दिनों सूरजकुंड में सम्पन्न भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में आर्थिक प्रस्ताव पर बोलते हुए मेरे सहयोगी श्री वैंकय्या नायडू ने डा0 मनमोहन सिंह द्वारा राज्य सभा में विपक्ष के नेता की हैसियत से लिखे गये एक पत्र को उदृत किया जिसमें इस तथ्य की पुष्टि की गई थी। फेडरेशन ऑफ महाराष्ट्र ट्रेडर्स ने इस संबंध में अपनी चिन्ता से उनको अवगत कराया था। 21 दिसम्बर, 2002 के अपने पत्र में डा0 मनमोहन सिंह ने कहा कि दो दिन पूर्व ही यह मामला राज्यसभा में उठा था। डा0 मनमोहन सिंह लिखते हैं कि ”वित्त मंत्री ने आश्वासन दिया कि सरकार के पास खुदरा व्यापार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आमंत्रित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है”।


 


venkaiah-jiडा0 मनमोहन सिंह को सम्बोधित फेडरेशन ऑफ महाराष्ट्र ट्रेडर्स का पत्र खुदरा में विदेशी निवेश पर और ज्यादा आलोचनात्मक है। फेडरेशन की विदेश व्यापार समिति के चेयरमैन सी.टी. संघवी द्वारा लिखे गये पत्र में कहा गया है कि:


 


”श्रीमन् आपको स्मरण होगा कि 2002-03 में देश में खुदरा व्यापार के महत्वपूर्ण विषय के सिलसिले में मुझे फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ महाराष्ट्र के एक प्रतिनिधिमण्डल के साथ राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के रुप में आप से मिलने का अवसर मिला था।


 


हमारे विस्तृत वर्णन से पहले ही आपने साफ तौर पर कहा था कि ‘हम खुदरा व्यापार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति नहीं देने देंगे।‘ आपने आगे उल्लेख किया कि ”भारत को ऐसे किस्म के सुधार की कोई जरुरत नहीं है जो रोजगार पैदा करने के बजाय रोजगार को नष्ट करें।”


 


इसी पत्र में सिंघवी लिखते हैं :


 


श्रीमन् जैसाकि हमने आपको इन बहुराष्ट्रीय रिटेल श्रृंखला स्टोर संगठनों द्वारा छोटे दुकानदारों (रिटेलों) को प्रतियोगिता में समाप्त करने हेतु (प्रेडटोरी प्राइसिंग) जैसे गलत व्यापारिक हथकण्डे अपनाने के बारे में बताया था। हमारे प्रतिनिधिमण्डल ने आपका ध्यान सूदूर पूर्वी देशों-थाईलैण्ड, मलेशिया, इण्डोनेशिया-जैसे देशों के खुदरा व्यापार पर इस विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के पड़ने वाले विपरीत प्रभाव की ओर दिलाया था जिन्होंने 1990 के दशक के अन्त में इसकी अनुमति दी थी।


 


बाद में, हमारा प्रतिनिधिमण्डल आपसे अनेक अवसरों पर मिला और इस विषय पर विभिन्न सम्बन्धित अधिकारियों को सौंपे गए हमारे विस्तृत ज्ञापनों को भी आपको सौंपा । कुल मिलाकर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से इस विषय की गंभीरता के संदर्भ में आपने 18 और 19 दिसम्बर, 2002 को राज्यसभा में यह मुद्दा उठाया और तब के वित्त मंत्री से यह आश्वासन भी लिया कि खुदरा व्यापार मेें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देने सम्बन्धी कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है। फेडरेशन को सम्बोधित आपका पत्र संदर्भ के लिए संलग्न है।


***


jaswant-singhखुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सम्बन्धी अपने फैसले के बचाव में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र को सम्बोधित करने सम्बन्धी भाषण में इस टिप्पणी कि ”पैसा पेड़ों पर नहीं उगता” पर बहुत सी दिलचस्प टिप्पणियां की जा रही हैं।


 


मेरे सहयोगी जसवंत सिंह जो एक सेवानिवृत सैन्य अधिकारी हैं, द्वारा ‘दि हिन्दू‘ (28 सितम्बर, 2012) में एक लेख लिखा गया है, जिसमें उनके अपने टैंक-चालक से हुई बातचीत का उल्लेख है। जसवंत सिंह जी का लेख मुझे काफी ज्ञानप्रद लगा। उनके चालक के साथ हुई बातचीत वाला पैराग्राफ मुझे आज के ब्लॉग के टेलपीस के लिए उपयुक्त लगा।


 


टेलपीस (पश्च्यलेख)


 


इस आश्चर्य जनक , अनावश्यक फटकार के एक दिन बाद ही अब सेवानिवृत सैनिक मेरे टैंक-चालक का फोन आया जो मेरे साथ कई वर्षों तक टैंक के साथ झुके हुए स्थान पर रातें काट चुका है। मैंने उसका नाम शायद इसलिए छुपा रखा है कि कोई अकुशल इंटेलीजेंस ब्यूरो उसे तंग न करे। अपनी ठेठ शेखावटी बोली और लहजे में बोला ”साहिब” कृपया प्रधानमंत्री को बताओ कि पैसा वास्तव में पेड़ो और पौधों पर ही उगता है; हमें सभी फल, सब्जियां और पशुओं का चारा तथा ईंधन भी एक ‘पेड़‘ से मिलता है। इसलिए उन्हें बताइए कि वह किसानों के बारे में सोचें, न कि उन ‘विदेशियों‘ के बारे में जो दो शताब्दी पूर्व एक कम्पनी के रुप में आए और हमारी जमीन ले ली। एक ‘बिस्वा‘ भी हमारे लिए नहीं छोड़ा।” मैंने उससे वायदा किया कि मैं ऐसा ही करुंगा लेकिन उसको सलाह दी कि वह ऐसे निराशाजनक विचारों से अपने  सेवानिवृत जीवन को बिगाड़े नहीं और जैसे हमारे ‘ढाबों‘ ने अमेरिका के मगरुर केटंचुरी के कर्नल को परास्त किया वैसे ही भारत इसे भी परास्त कर देगा। और इस किस्से का एक शब्द भी बनावटी नहीं है।


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


01 अक्टूबर, 2012


 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on October 02, 2012 00:26
No comments have been added yet.


L.K. Advani's Blog

L.K. Advani
L.K. Advani isn't a Goodreads Author (yet), but they do have a blog, so here are some recent posts imported from their feed.
Follow L.K. Advani's blog with rss.