अमेरिका और पाकिस्तान के बीच विश्वास खस्ता हाल में
पिछले सप्ताह श्री एम.जे. अकबर ने मुझे अपनी पुस्तक ‘टिंडरबॉक्स‘ के अमेरिकी संस्करण की प्रति भेंट की, जो इस महीने की शुरूआत में अमेरिका में लोकर्पित की गई है।
जनवरी, 2011 में नई दिल्ली में लोकार्पित इस पुस्तक को मैंने एक शानदार पुस्तक के रूप में निरूपित किया था। उप-शीर्षक ”दि पास्ट एण्ड फ्यूचर ऑफ पाकिस्तान” वाली इस पुस्तक में चौदह अध्याय थे। अमेरिकी संस्करण में एक और जोड़ा गया है, जिसका शीर्षक है ”डार्क साइड ऑफ दि मून”। अपेक्षानुरूप यह अध्याय पाकिस्तान के जन्म से लेकर आज तक अमेरिकी-पाकिस्तान संबन्धों पर केंद्रित है।
जहां तक अमेरिकी-पाक संबन्धों का प्रश्न है, उसमें हाल ही के वर्षों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना 9/11 षडयंत्र के मुख्य सूत्रधार ओसाम बिन लादेन, जो पिछले एक दशक से वाशिंगटन की सभी गुप्तचर एजेंसियों की पहुंच से बाहर था, को यू.एस. नेवी द्वारा एबट्टाबाद में खोज निकालना है।
स्वाभाविक रूप से यह अतिरिक्त अध्याय जनरल जेम्स एबॉट के संदर्भ से शुरू होता है जिनकी 1896 में मृत्यु हुई थी और जिनके नाम पर एबट्टाबाद बना। एम.जे. अकबर ने उल्लेख किया है कि इस छावनी शहर का वर्तमान उच्चारण ”एबटाबाद” जो स्थानीय भाषा में बन गया है।
अकबर की पुस्तक सतर्कतापूर्वक जिन्ना और उनके सहयोगी लियाकत अली खान द्वारा वाशिंगटन से ऐसे सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने की पृष्ठभूमि को विस्तार से प्रस्तुत करती है जिससे अमेरिका पाकिस्तान को शस्त्र आपूर्ति करने वाला स्वाभाविक देश बने। पाकिस्तान के जन्म के एक महीने बाद एक अमेरिकी पत्रकार मार्गरेट बाऊरके-व्हाईट ने जिन्ना से पूछा ”क्या वह अमेरिका से तकनीक का अथवा वित्तीय सहायता पाने की आशा करते हैं?” जिन्ना का साफ उत्तर था ”पाकिस्तान को अमेरिका से ज्यादा अमेरिका को पाकिस्तान की ज्यादा जरूरत है। पाकिस्तान विश्व की धुरी है, जैसाकि हमारी स्थिति है - ऐसा सीमान्त जिस पर विश्व का भविष्य निर्भर करेगा।”
अकबर लिखते हैं : ”तब उन्होंने (मार्गरेट) लिखा कि जिन्ना मेरी ओर झुके, आवाज कम करके विश्वस्त बात बताने लगे। रूस यहां से ज्यादा दूर नहीं है।” इस पुस्तक के अनुसार ”यह बातचीत यह सचमुच में शीतयुध्द या एक युध्द के वास्तविक बनने से पहले (जिन्ना) का चतुर बोध था।”
अकबर की अमेरिकी संस्करण वाली पुस्तक इस बारे में कोई संदेह नहीं छोड़ती कि बिन लादेन प्रकरण में पाकिस्तानी सरकार और आईएसआई बिन लादेन के छिपने के स्थान के बारे में पूरी तरह शामिल थी।
अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन की खोज 9/11 के आतंकवादी हमले से पहले ही शुरू कर दी थी। अकबर लिखते हैं: 1998 में पूर्वी अफ्रीका में अमेरिकी दूतावासों पर अल-कायदा के हमलों के बाद से ही अमेरिका ने पाकिस्तानी और सऊदी अरब के माध्यम से बिन लादेन को हासिल करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया था।
”जितनी पुस्तकें होगी उतने ही अलग-अलग किस्से होंगे कि मई 2011 में अपनी मृत्यु के पहले एक दशक में ओसामा कैसे और कहां छुपने में सफल रहें, लेकिन यह बात साफ है: एबटाबाद में बसने से पहले वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सीमा क्षेत्र में रहे। आईएसआई के पास पूरी जानकारी थी, लेकिन उसने इसे अपने तक सीमित रखा।”
लश्कर के आठ घोषित उद्देश्यों और लश्करे तोयबा को आईएसआई का पूर्ण समर्थन और नवम्बर, 2008 में मुंबई पर हमले के बारे में इस अध्याय में काफी लिखा गया है।
लश्कर के आठ घोषित लक्ष्य हैं, इनमें : मुस्लिमों के उत्पीड़न की समाप्ति, किसी भी मुस्लिम की हत्या का बदला, मुस्लिम देशों की रक्षा, मुस्लिमों की भूमि की पुन:वापसी और अहम यह कि मुस्लिम राष्ट्रों में रहने वाले गैर-मुस्लिमों पर जजिया या चुनावी टैक्स लगाना। यह आईएसआई के अनुकूल है जो कश्मीर में लश्कर और अन्यों का उपयोग कर वह हासिल करने की उम्मीद करती है जैसा उसने अफगानिस्तान में किया। ऐसा माना जाता है कि शक्तिशाली सोवियत सेना की तुलना में भारतीय सेना हो निपटना ज्यादा आसान होगी।
आईएसआई ने इस विश्वास के साथ लश्कर पर ध्यान देना शुरू किया कि यह कश्मीर में उसके लक्ष्यों के लिए ज्यादा सुविधाजनक सिध्द होगी। लश्कर के लिए कश्मीर, राष्ट्रों के बीच एक और अन्य क्षेत्रीय युध्द नहीं है अपितु पैगम्बर मोहम्मद के समय से जारी और मूर्तिपूजकों के बीच का धार्मिक युध्द है, इसलिए, हिन्दुओं को मारने वाले के लिए विशेष रूप से जन्नत मिलने और शहीद का दर्जा मिलने का इनाम मिलेगा। इसके अलावा, एक बार कश्मीर हाथ में आ जाने पर यह आनन्दायक भारत को फिर से जीतने का केन्द्र बनेगा।”
आगे अकबर लिखते हैं:
”जब अमेरिका ने शिकागो में हेडली पर मुकदमा चलाया तो यह इसलिए नहीं था कि वह भारत की अवांछित लोगों की सूची में था। लश्कर अमेरिका का उतना ही शत्रु है जितना भारत का। अफ्पाक युध्द में पाकिस्तानी तत्वों द्वारा खेले जाने वाले दोगले खेल को अमेरिका ने बहुत पहले भांप लिया था, लेकिन उसे अपनी रणनीति को रूप देने की वृहत जरूरत के चलते पाकिस्तान से गठबंधन बनाने को बाध्य होना पड़ा। लेकिन एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के पाए जाने से विश्वासघात न केवल वाशिंगटन अपितु अमेरिकी गलियों में भी तीव्रता से महसूस किया गया।”
एम. जे. टिप्पणी करते हैं: ”कौन क्या और कब जानता है, इसके बारे में बहुत सी बातें होंगी लेकिन इस बात को स्पष्ट करने के पर्याप्त सबूत हैं कि गेरोनिमा के ऊपर वाशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच पूर्णतया अविश्वास है।”
मैं मानता हूं ‘टिंडरबॉक्स‘ पुस्तक का यह नया अध्ययन पाठकों को एबटाबाद में मई फर्स्ट ऑपरेशन के बारे में विस्तृत ब्यौरा देता है जोकि अकबर द्वारा निकाले गए निष्कर्ष से पूरी तरह मेल खाता है कि अमेरिका और पाकिस्तान में पहले का विश्वास अब खण्डित हो चुका है।
पश्च्यलेख (टेलीपीस)
मानो न मानो, लेकिन कनाडियन प्रेस के मुताबिक डा0 शकील अफ्रीकी नाम के पाकिस्तानी डॉक्टर ने ओसामा बिन लादेन को खोजने में अमेरिका की सहायता की।
डा0 अफ्रीकी को देशद्रोह के आरोप में पाकिस्तान की एक अदालत ने 33 वर्ष के कारावास की सजा दी है। इस घटना ने वाशिंगटन और इस्लामाबाद में टूटे विश्वास को और मजबूत किया है।
रिपब्लिकन सेनेटर जॉन मैक्केन और डेमोक्रेटिक सेनेटर कार्ल लेविन ने एक संयुक्त वक्तव्य में कहा: यह चौकाने वाला और निंदनीय है कि डा. अफ्रीदी जिसने बिन लादेन को ढूंढवाने हेतु अमेरिका का सहयोग दिया, उनको 33 वर्ष कारावास की सजा दी गई। अफ्रीदी ने साहसिक और देशभक्तिपूर्ण काम किया था-विश्व के सर्वाधिक वांछित आतंकवादी जिसके हाथों में अनेक निर्दोष पाकिस्तानियों के हत्या का खून लगा है।”
मैक्कन और लेविन ने अफ्रीदी को तत्काल ”क्षमा और रिहा” करने को कहा है। विदेश विभाग की प्रवक्ता विक्टोरिया नुलैण्ड ने संवाददाताओं को बताया कि अमेरिका ने पहले ही पाकिस्तानी सरकार के साथ इस मुद्दे को उठाया है और आगे भी उठाते रहेंगी।
लालकृष्ण आडवाणी
नई दिल्ली
22 जून, 2012

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