जिंदगी एक फ़साना

हाड़ मांस का शरीर तो बना देते हैं रूह डालना मुशकिल होता है बदन पे चिपका देते हैं पैराहन रूह ढालना मुशकिल होता है कसक एक ही रहती है जिंदगी में वो अफसाना कैसा था कुछ ठोकरें खाई कुछ गम पिए हसीन पलों का भी अंदाजे बयां था वही सूरज गरमी में बेगाना लगता था वही सूरज सरदी में फ़साना लगता था हडडी को गला  दे तो सरदी निषठुर गरमी को सुला दे तो  मधुर राग में वो दौड़ता ही था चाहे वो खून था या पानी
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Published on August 20, 2018 00:37
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