एक ही मेरा जिगरी यार,तेरी चाल धीमी करने वाला बाज़ार...मुखबिर एक और चोर,तेरी गली का तीखा मोड़। करवाये जो होश फ़ाखता,तेरे दर का हसीं रासता...कुचले रोज़ निगाहों के खत,बैरी तेरे घर की चौखट।
दिखता नहीं जिसे मेरा पयार,पीठ किये खड़ी तेरी दीवार...कभी दीदार कराती पर अकसर देती झिड़की,तेरे कमरे की ख़फा सी खिड़की। शखसियत को सयाह में समेटती हरजाईमदधम कमज़रफ तेरी परछाई...कुछ पल अकस कैद कर कहता के तू जाए ना...दूर टंगा आईना। जाने किसे बचाने तुगलक बने तुरक,तेरे मोहलले के बड़े-बुज़ुरग।
...और इन स...
Published on May 23, 2018 11:41