राजनीति

हिममत है तो तू बना सरकार  नहीं, तो है तुझ पर धिककार  कुबेर की पोटली खुली है  उठा धन और बन जा मककार  परवाह नहीं जनता कया बोलेगी  बोलने से पहले वो भी तोलेगी  दाम मिलना चाहिए सही  मुरगे की बांग सुनकर भी सो लेगी  दो धंधे इस दुनिया में पुराने  राजनीति भी एक वैशया है  एक देह बेचता है घर चलाने को  एक देश बेच देता है  सतता की भूख मिटाने को  बड़े बड़े शबद हैं जन सेवा  बस हम तो
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Published on May 21, 2018 20:33
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