भाई बुरा मान गया तो !
फिल्म इल्म -डी डे :
भाई से मजाक करते हो, ये ठीक नहीं है। और दर्शकों से तो मजाक कतई नहीं करना चाहिए। काश यह समझे होते निखिल आडवाणी। वे बहुत कमाल निर्देशक रहे हैं, पर उनका कमाल यहां जरा फीका है। डी कम्पनी और मुम्बइया अंडरवर्ल्ड पर यह पहली फिल्म नहीं है।
डी कम्पनी और मुम्बइया गेंगवार पर यह पहली फिल्म नहीं है। पर आखिर तक आते आते भाई को मजाकिया बना देना निखिल के ही बस की बात थी। उनका यह दुस्साहस ही है। डी डे की कहानी का सार यह है कि डी यानी भाई को भारत लाना है और उसकी एक सिनेमाई यात्रा रची है निर्देशक ने। ऐसा सोचना यकीनन एक जोखिमभरा काम है। भाई यानी इकबाल की मुख्य भूमिका में ऋषि कपूर हैं, जो सिद्ध और प्रसिद्ध रूप से दाउऊद इब्राहिम पर आधारित है। उनका चेहरा मोहरा तो भाई जैसा ठीक बन गया है पर धीरे धीरे वे ऋषि कपूर में तब्दील होते जाते हैं, इस यात्रा में इरफान, अर्जुन रामपाल, श्रुति हसन, हुमा कुरैशी जैसे सितारे उनके साथ है। इन जाने पहचाने चेहरों के अलावा आकाश दहिया की दपस्थिति शानदार है। अंत तक आते आते तो लगता है कि मंच पर कोई भाई की मिमिक्री कर रहा है। फिल्म धीरे धीरे उन अनजान और बेजुबान नायकों की हो जाती है, जो गुप्त मिशन पर पाकिस्तान भेजे जाते हैं और सरकार उनके साथ फिर कैसा सुलूक करती है। श्रुति हसन ने कराची के देह बाजार की सेक्स वर्कर की भूमिका ठीक तरह से निभाई है। फिल्म अपनी बुनावट में डॉक्यू ड्रामा की तरह चलती है। शुरूआत जिस तरह से होती है, निखिल उसे बरकरार रख पाते तो जरूर यह फिल्म डी कम्पनी पर बनी फिल्मों में कल्ट फिल्म हो जाती। इरफान अपने काम में वैसे ही हैं, जैसे हमेशा होते हैं।
कई दिनों के बाद किसी फिल्म में गजल सुनने को मिली है। प्रेम फिल्म की अनिवार्यता नहीं है, पर आंशिकता में प्रेम को प्रकट करने में इस गजल ने ठीक काम किया है। गानों में संगीत मधुर है, शास्त्रीयता की चमक में वे बेहद अच्छे बन पड़े हैं। भव्यता विषयानुकूल है। फिल्म की गति भी ठीक है। दाऊद इब्राहिम को लेकर कई फिल्में बनी हैं, अनुराग कश्यप ब्लैक फ्राइडे बना चुके हैं, उससे यह फिल्म आगे नहीं है, और कहीं बड़े बजट के बावजूद बहुत पीछे है।
दो स्टार

डी कम्पनी और मुम्बइया गेंगवार पर यह पहली फिल्म नहीं है। पर आखिर तक आते आते भाई को मजाकिया बना देना निखिल के ही बस की बात थी। उनका यह दुस्साहस ही है। डी डे की कहानी का सार यह है कि डी यानी भाई को भारत लाना है और उसकी एक सिनेमाई यात्रा रची है निर्देशक ने। ऐसा सोचना यकीनन एक जोखिमभरा काम है। भाई यानी इकबाल की मुख्य भूमिका में ऋषि कपूर हैं, जो सिद्ध और प्रसिद्ध रूप से दाउऊद इब्राहिम पर आधारित है। उनका चेहरा मोहरा तो भाई जैसा ठीक बन गया है पर धीरे धीरे वे ऋषि कपूर में तब्दील होते जाते हैं, इस यात्रा में इरफान, अर्जुन रामपाल, श्रुति हसन, हुमा कुरैशी जैसे सितारे उनके साथ है। इन जाने पहचाने चेहरों के अलावा आकाश दहिया की दपस्थिति शानदार है। अंत तक आते आते तो लगता है कि मंच पर कोई भाई की मिमिक्री कर रहा है। फिल्म धीरे धीरे उन अनजान और बेजुबान नायकों की हो जाती है, जो गुप्त मिशन पर पाकिस्तान भेजे जाते हैं और सरकार उनके साथ फिर कैसा सुलूक करती है। श्रुति हसन ने कराची के देह बाजार की सेक्स वर्कर की भूमिका ठीक तरह से निभाई है। फिल्म अपनी बुनावट में डॉक्यू ड्रामा की तरह चलती है। शुरूआत जिस तरह से होती है, निखिल उसे बरकरार रख पाते तो जरूर यह फिल्म डी कम्पनी पर बनी फिल्मों में कल्ट फिल्म हो जाती। इरफान अपने काम में वैसे ही हैं, जैसे हमेशा होते हैं।
कई दिनों के बाद किसी फिल्म में गजल सुनने को मिली है। प्रेम फिल्म की अनिवार्यता नहीं है, पर आंशिकता में प्रेम को प्रकट करने में इस गजल ने ठीक काम किया है। गानों में संगीत मधुर है, शास्त्रीयता की चमक में वे बेहद अच्छे बन पड़े हैं। भव्यता विषयानुकूल है। फिल्म की गति भी ठीक है। दाऊद इब्राहिम को लेकर कई फिल्में बनी हैं, अनुराग कश्यप ब्लैक फ्राइडे बना चुके हैं, उससे यह फिल्म आगे नहीं है, और कहीं बड़े बजट के बावजूद बहुत पीछे है।
दो स्टार
Published on July 20, 2013 01:43
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