कांस फूल गए [Kaans Phool Gaye] Quotes
कांस फूल गए [Kaans Phool Gaye]
by
राम अवध शास्त्री [Ram Avadh Shastri ]1 rating, 4.00 average rating, 1 review
कांस फूल गए [Kaans Phool Gaye] Quotes
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“किन्तु ये सभी बातें उस ज़माने की हैं जब आम का फल अपनी अम्लता के कारण अपेक्षित था और उसका आकर गूलर से बड़ा नहीं था। विद्वानों का विश्वास है कि वैदिक काल तक वह हिमालयी क्षेत्र का झड़ियल किस्म का ठिगना सा पादप रहा। मनुष्य की जिजीविषा ने ही इसे मैदान में उतारकर सहकार द्वारा ऐसा मीठा फल बना दिया है कि लोग इसके फल के आगे इसके मनोहारी कारकों को ही भूल गए और भुला दिए इससे जुड़े मन तथा इससे जुडी भारतीय साहित्य की अजस्र रसधारा को।”
― कांस फूल गए [Kaans Phool Gaye]
― कांस फूल गए [Kaans Phool Gaye]
“जब कभी पुराने साहित्य को पढता हूँ तब मेरा आधुनिक मन भी उस काल के साहित्य, उस कल की साधना और उस काल के जीवन-दर्शन की गंध से मातल हो उठता है। तब जी करता है काश, किसी तरह उस युग का दीदार हासिल हो जाता जिसमे आम की तुलना में उसकी मंजरियों को महिमा मंडित किया गया है।”
― कांस फूल गए [Kaans Phool Gaye]
― कांस फूल गए [Kaans Phool Gaye]
