Nirmala Quotes

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Nirmala Nirmala by Munshi Premchand
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Nirmala Quotes Showing 1-26 of 26
“Death won’t come because you called him.”
Munshi Premchand, Nirmala
“The bird hovering over a tiny seed eventually fell upon the seed. How will his life end, whether in a cage or under the butcher’s knife – who knows what will happen?”
Munshi Premchand, Nirmala
“प्राणी का कोई मूलय नही, केवल देहज का मूल्य है।”
Munshi Premchand, निर्मला
“उन दोनों में वह प्रेम था, जो धन की तृण के बराबर परवाह नहीं करता।”
Munshi Premchand, निर्मला
“जैसे कोई वृक्ष जल और प्रकाश से बढ़ता है, लेकिन पवन के प्रबल झोकों ही से सुदृढ़ होता है, उसी भांति प्रणय भी दुःख के आघातों ही से विकास पाता है। खुशी के साथ हंसनेवाले बहुतेरे मिल जाते हैं, रंज में जो साथ रोये, वहर हमारा सच्चा मित्र है। जिन प्रेमियों को साथ रोना नहीं नसीब हुआ, वे मुहब्बत के मजे क्या जानें?”
Munshi Premchand, निर्मला
“अब अच्छे घर की जररत न थी। अच्छे वर की जरूरत न थी। अभागिनी को अच्छा घर-वर कहा मिलता! अब तो किसी भाति सिर का बोझा उतारना था, किसी भाति लडकी को पार लगाना था, उसे कुएं मे झोकना था। यह रूपवती है, गुणशीला है, चतुर है, कुलीन है, तो हुआ करे, दहेज नही तो उसके सारे गुण दोष है, दहेज हो तो सारे दोष गुण है। प्राणी का कोई मूलय नही,”
Munshi Premchand, निर्मला
“दुःखी हृदय दुखती हुई आंख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।”
Munshi Premchand, निर्मला
“मिल गई। डरते थे, न जाने किस-किस के सामने हाथ फैलाना पड़े, दो-तीन महाजनों को ठीक कर रखा था। उनका अनुमान था कि हाथ रोकने पर भी बीस हजार से कम खर्च न होंगे। यह आश्वासन पाकर वे खुशी के मारे फूले न समाये। इसकी सूचना ने अज्ञान बलिका को”
Munshi Premchand, निर्मला
“धन मानव जीवन में अगर सर्वप्रधान वस्त नहीं, तो वह उसके बहुत निकट की वस्तु अवश्य है।”
Munshi Premchand, निर्मला
“जब से ब्रह्मा ने सृष्टि रची, तब से आज तक कभी बारातियों को कोई प्रसन्न नहीं रख सकता। उन्हें दोष निकालने और निन्दा करने का कोई-न-कोई अवसर मिल ही जाता है। जिसे अपने घर सूखी रोटियां भी मयस्सर नहीं वह भी बारात में जाकर तानाशाह बन बैठता है।”
Munshi Premchand, निर्मला
“केवल जन्म देने भर की अपराधिनी हूं। चाहे क्वांरी रखियेगा, चाहे विष देकर मार डालिएग, पर कुपात्र के गले न मढ़िएगा,”
Munshi Premchand, निर्मला
“जिसे रोने के लिए जीना हो, उसका मर जाना ही अच्छा।”
Munshi Premchand, निर्मला
“ऐसे सौभाग्य से मैं वैधव्य को बुर नहीं समझती। दरिद्र प्राणी उस धनी से कहीं सुखी है, जिसे उसका धन सांप बनकर काटने दौड़े। उपवास कर लेना आसान है, विषैला भोजन करन उससे कहीं मुंश्किल”
Munshi Premchand, निर्मला
“जब एक बात दिल में आ गई,तो उसे हुआ ही समझना चाहिये। अवसर और घात मिले, तो वह अवश्य ही पूरी हो। यह कहकर कोई नहीं निकल सकता कि मैंने तो हंसी की थी।”
Munshi Premchand, निर्मला
“जैसे कोई कुत्ता किसी नये गांव में जाता है।”
Munshi Premchand, निर्मला
“जब हमारे ऊपर कोई बड़ी विपत्ति आ पड़ती है, तो उससे हमें केवल दुःख ही नहीं होता, हमें दूसरों के ताने भी सहने पड़ते हैं।”
Munshi Premchand, निर्मला
“वृक्ष जल और प्रकाश से बढ़ता है, लेकिन पवन के प्रबल झोकों ही से सुदृढ़ होता है, उसी भांति प्रणय भी दुःख के आघातों ही से विकास पाता है।”
Munshi Premchand, निर्मला
“माता का हृदय प्रेम में इतना अनुरक्त रहता है कि भविष्य की चिन्त्ज्ञ और बाधाएं उसे जरा भी भयभीत नहीं करतीं।”
Munshi Premchand, निर्मला
“हिंसक पशु भी आदमी को गाफिल पाकर ही चोट करते हैं।”
Munshi Premchand, निर्मला
“प्रत्येक प्राणी को अपने हमजोलियों के साथ, हंसने-बोलने की जो एक नैसर्गिक तृष्णा होती है,”
Munshi Premchand, निर्मला
“बड़े-बड़े महान संकल्प आवेश में ही जन्म लेते हैं।”
Munshi Premchand, निर्मला
“जब कोई बात हमारी आशा के विरुद्ध होती है, तभी दुख होता है।”
Munshi Premchand, निर्मला
“युवावस्था में एकान्तवास चरित्र के लिए बहुत ही हानिकारक है।”
Munshi Premchand, निर्मला
“सांस का भरोसा ही क्या और इसी नश्वरता पर हम अभिलाषाओं के कितने विशाल भवन बनाते हैं! नहीं जानते, नीचे जानेवाली सांस ऊपर आयेगी या नहीं, पर सोचते इतनी दूर की हैं, मानो हम अमर हैं।”
Munshi Premchand, निर्मला
“खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में।”
Munshi Premchand, निर्मला
“मुफ्त की शराब तो काजी को हलाल है,”
Munshi Premchand, निर्मला