Tumhare Baare Mein Quotes

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Tumhare Baare Mein Tumhare Baare Mein by Manav Kaul
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Tumhare Baare Mein Quotes Showing 1-19 of 19
“क्या तुमने कभी देखा है ख़ुद को पढ़ते हुए?
मैंने उस दृश्य को लिखा है तुम्हारे लिए…”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“Hapiness is as exclusive as a butterfly, and you must never pursue it. If you stay very still, it may come and settle on your hand. But only briefly. Savour those moments, for they will not come in your way very often.”— Ruskin Bond”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“सब साफ़ दिखने से कम दिखना कितना कुछ देता है! बहुत बोलने से चुप कितना कुछ कहता है!”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“मैं अब वैसा नहीं रह गया हूँ, जैसा तुमने मुझे छोड़ा था। मैं वहीं हूँ, पर उस पगडंडी पर अब डामर की सड़क बिछ गई है। आस-पास का सारा हरा स्याह हो गया है। लगातार गिरने का डर बना रहता है, सो मेरी जड़ें निकल आई हैं। पर जहाँ हम मिला करते थे, वे कुछ जगहें अब भी हरी हैं। तेज़ धूप में जब भी उन छायाओं से गुज़रता हूँ तो हिचकी आ जाती है।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“यह जीवन असल में एक ख़त है—किसी के लिए। पूरा जी लेने के बाद हम चाहते हैं कि बुढ़ापे में एक दिन हम बरामदे में किसी बरगद की छाया तले बैठे हुए चाय पी रहे हों। हल्की मुलायम धूप हो और उस दिन काँपते हाथों से हम अपना जीवन जो एक ख़त-सा किसी लिफ़ाफ़े में है, उसे खोलें और उस किसी को वह ख़त पढ़कर सुनाएँ। उसे हमारा जीवन एक काल्पनिक कहानी लगेगा और हम उस कल्पना में—किसी जंगल में चलते हुए—उस कहानी के सारे झूठ उसके साथ फिर जी लेंगे।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“मैं वह नहीं हूँ जो दिखता हूँ, मैं वह हूँ जो लिखता हूँ।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“जब भी हम मिलते लगता कि हम दोनों के लिए सब कुछ कितना नया है। हम दोनों कॉफ़ी पर बहुत देर तक अपने क़िस्से सुनते-सुनाते रहे। कुछ ही देर में हम दोनों के पास से किताबों-सी ख़ुशबू आने लगी थी।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“बहुत बोलने से चुप कितना कुछ कहता है! हम एक जगह चुनते हैं, जहाँ बैठे रहने का सुख”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“मुझे उनके घर की घंटी बजाते ही दिखना बंद हो गया था। कुछ देर में विनोद कुमार शुक्ल मेरे सामने खड़े थे। वह जाँघिया और फटी हुई बनियान में थे। मुझे लगा कि ये वह नहीं हैं। यह उनके उपन्यास का कोई पात्र है। मुझे सिर्फ़ उनके पैर दिखे और बिना देरी किए मैं नतमस्तक था। वह झेंप गए, “आप लोग बैठिए, मैं कुछ पहनकर आता हूँ।” हम भीतर बहुत ही सादे-से कमरे में जाकर बैठ गए। पूरे कमरे में सिर्फ़ एक मुक्तिबोध की तस्वीर लगी थी। मुझे याद है जब मैंने विनोद जी को फ़ोन किया था, उनकी आवाज़ सुनते ही मैं काँपने लगा था। ज़बरदस्ती के अँग्रेज़ी शब्द मुँह से निकलने लगे। कुछ देर की हड़बड़ाहट के बाद मैंने उन्हें ‘आई लव यू’ कहा और फ़ोन काट दिया था। अभी उनके कमरे में बैठे हुए, मैं अपनी”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“मुझे उनके घर की घंटी बजाते ही दिखना बंद हो गया था। कुछ देर में विनोद कुमार शुक्ल मेरे सामने खड़े थे। वह जाँघिया और फटी हुई बनियान में थे। मुझे लगा कि ये वह नहीं हैं। यह उनके उपन्यास का कोई पात्र है। मुझे सिर्फ़ उनके पैर दिखे और बिना देरी किए मैं नतमस्तक था। वह झेंप गए, “आप लोग बैठिए, मैं कुछ पहनकर आता हूँ।” हम भीतर बहुत ही सादे-से कमरे में जाकर बैठ गए। पूरे कमरे में सिर्फ़ एक मुक्तिबोध की तस्वीर लगी थी। मुझे याद है जब मैंने विनोद जी को फ़ोन किया था, उनकी आवाज़ सुनते ही मैं काँपने लगा था। ज़बरदस्ती के अँग्रेज़ी शब्द मुँह से निकलने लगे। कुछ देर की हड़बड़ाहट के बाद मैंने उन्हें ‘आई लव यू’ कहा और फ़ोन काट दिया था। अभी उनके कमरे में बैठे हुए, मैं”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“चमकने के बीच में जीता है।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“मैंने नज़र उठाई तो आसमां बड़ा मनोहर दिख रहा था, मेरे पिता के हाथ पर लिखे नाम की तरह "मनोहर”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“मैं पहाड़ों को देखता हूँ तो बार-बार सिर झुक जाता है। शर्म आती है ख़ुद पर। हमारे भीतर कितनी ज़्यादा हलचल है! कितने छिछले हैं हमारे सपने और कितना कमज़ोर है हमारा ‘मैं’! पहाड़—चुप और शांत—अपनी पूरी ख़ूबसूरती और अपने सारे रहस्यों के साथ हमारे सामने खड़े रहते हैं, पर हमारी नज़र ‘मैं’ के आगे देख ही नहीं पाती। उसे नहीं देख पाती जिसकी गोद में हमने अपना सिर टिकाया हुआ है। उसके देवदार और चीड़ हर बहती हवा के साथ हँसते होंगे हम पर। हम जैसे सदियों से सदियों तक उनके पास आते रहेंगे, पर उन्हें कभी देख ही नहीं पाएँगे—चुप, शांत, गंभीर!”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“उसके घर की पगडंडी से मिलती-जुलती कोई भी राह दिखती है तो सब कुछ ठहर जाता है। ठीक वह याद नहीं आती। याद आता है वह पानवाला जिसकी दुकान से उसके घर की खिड़की दिखती थी, वह बच्चा जो बहुत मनाने के बाद उस तक ख़त पहुँचाया करता था, वह झाड़ूवाला जिसकी शिकायत पर उसके भाई ने बहुत मारा था और याद आती है वह ख़ुशबू जो उस गली से उठती थी… जब-जब वह गुज़रा करती थी।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“वक़्त बीतते-बीतते निचोड़ता चला गया है। बाहर आँगन में जो कपड़े सूख़ रहे हैं—मेरे पुराने कपड़े—वे तुम्हारी याद का पानी छोड़ने को तैयार नहीं हैं।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“हमारे बीच बहुत-सी ख़ाली जगह थी, जिसका सुख था। ख़ाली जगह चुंबक की तरह काम करती थी। वह हर बग़ल से गुज़र रही ज़िंदगी को अपने भीतर खींच लेती।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“क्या हम इस तरह जी सकते हैं कि हमारा आज का जीना ठंड के दिनों में काम आए, जब हम लोग काँप रहे होंगे?”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“सुना है छूटी हुई चीज़ों की जड़ें उग आती हैं!”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein
“मैं अब वैसा नहीं रह गया हूँ, जैसा तुमने मुझे छोड़ा था। मैं वहीं हूँ, पर उस पगडंडी पर अब डामर की सड़क बिछ गई है।”
Manav Kaul, Tumhare Baare Mein