Mahabharat Hindi Anuwad Sahit (Bhag-1), Code 0032, Sanskrit Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official) Quotes
Mahabharat Hindi Anuwad Sahit (Bhag-1), Code 0032, Sanskrit Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
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Mahabharat Hindi Anuwad Sahit (Bhag-1), Code 0032, Sanskrit Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official) Quotes
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“तपो न कल्कोऽध्ययनं न कल्कः स्वाभाविको वेदविधिर्न कल्कः । प्रसह्य वित्ताहरणं न कल्क- स्तान्येव भावोपहतानि कल्कः ।। २७५ ।। तपस्या निर्मल है, शास्त्रोंका अध्ययन भी निर्मल है, वर्णाश्रमके अनुसार स्वाभाविक वेदोक्त विधि भी निर्मल है और कष्टपूर्वक उपार्जन किया हुआ धन भी निर्मल है, किंतु वे ही सब विपरीत भावसे किये जानेपर पापमय हैं अर्थात् दूसरेके अनिष्टके लिये किया हुआ तप, शास्त्राध्ययन और वेदोक्त स्वाभाविक कर्म तथा क्लेशपूर्वक उपार्जित धन भी पापयुक्त हो जाता है। (तात्पर्य यह कि इस ग्रन्थरत्नमें भावशुद्धिपर विशेष जोर दिया गया है; इसलिये महाभारत-ग्रन्थका अध्ययन करते समय भी भाव शुद्ध रखना चाहिये) ।। २७५ ”
― Mahabharat Hindi Anuwad Sahit (Bhag-1), Code 0032, Sanskrit Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
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“कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः । संहरन्तं प्रजाः कालं कालः शमयते पुनः ।। २४८ ।। काल ही प्राणियोंकी सृष्टि करता है और काल ही समस्त प्रजाका संहार करता है। फिर प्रजाका संहार करनेवाले उस कालको महाकालस्वरूप परमात्मा ही शान्त करता है ।। २४८ ।।”
― Mahabharat Hindi Anuwad Sahit (Bhag-1), Code 0032, Sanskrit Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
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“भवितव्यं तथा तच्च नानुशोचितुमर्हसि । दैवं प्रज्ञाविशेषेण को निवर्तितुमर्हति ।। २४६ ।। होनहार ही ऐसी थी, इसके लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये। भला, इस सृष्टिमें ऐसा कौन-सा पुरुष है, जो अपनी बुद्धिकी विशेषतासे होनहार मिटा सके ।। २४६ ।। विधातृविहितं मार्गं न कश्चिदतिवर्तते । कालमूलमिदं सर्वं भावाभावौ सुखासुखे ।। २४७ ।। अपने कर्मोंका फल अवश्य ही भोगना पड़ता है—यह विधाताका विधान है। इसको कोई टाल नहीं सकता। जन्म-मृत्यु और सुख-दुःख सबका मूल कारण काल ही है ।। २४७ ।।”
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