जूठन Quotes
जूठन: पहला खंड [Joothan]
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Omprakash Valmiki351 ratings, 4.53 average rating, 37 reviews
जूठन Quotes
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“बर्दाश्त कर लेने का इतना हौसला था कि आज मैं सोचता हूँ तो हैरान रह जाता हूँ। कितना कुछ छीन लिया है मुझसे इस बर्दाश्त कर लेने की आदत ने!”
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
“सदियों से चली आ रही इस प्रथा के पार्श्व में जातीय अहम की पराकाष्ठा है। समाज में जो गहरी खाई है उसे प्रथा और गहरा बनाती है। एक साजिश है हीनता के भँवर में फँसा देने की।”
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
“भारतीय समाज की क्रूर–व्यवस्था व्यक्ति की योग्यता को नकार रही थी। उनकी दृष्टि में डॉ. अम्बेडकर जन्मना महार थे। भले ही उनकी विद्वत्ता आकाश जितनी ऊँचाई पा जाए।”
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
“साहित्य में नरक की सिर्फ कल्पना है। हमारे लिए बरसात के दिन किसी नारकीय जीवन से कम न थे। हमने इसे साकार रूप में जीते–जी भोगा है। ग्राम्य जीवन की यह दारुण व्यथा हिन्दी के महाकवियों को छू भी नहीं सकी। कितनी बीभत्स सच्चाई है यह!”
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
“किसी महाकवि ने हमारे जीवन पर एक भी शब्द क्यों नहीं लिखा?”
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
“तरह–तरह के मिथक रचे गए—वीरता के, आदर्शों के। कुल मिलाकर क्या परिणाम निकले? पराजित, निराशा, निर्धनता, अज्ञानता, संकीर्णता, कूपमंडूकता, धार्मिक जड़ता, पुरोहितवाद के चंगुल में फँसा, कर्मकांड में उलझा समाज, जो टुकड़ों में बँटकर कभी यूनानियों से हारा, कभी शकों से। कभी हूणों से, कभी अफगानों से, कभी मुगलों, फ्रांसीसियों और अंग्रेजों से हारा, फिर भी अपनी वीरता और महानता के नाम पर कमजोर और असहायों को पीटते रहे। घर जलाते रहे। औरतों को अपमानित कर उनकी इज्जत से खेलते रहे। आत्मश्लाघा में डूबकर सच्चाई से मुँह मोड़ लेना, इतिहास से सबक न लेना, आखिर किस राष्ट्र के निर्माण की कल्पना है?”
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
“भारतीय समाज में ‘जाति’ एक महत्त्वपूर्ण घटक है। ‘जाति’ पैदा होते ही व्यक्ति की नियति तय कर देती है। पैदा होना व्यक्ति के अधिकार में नहीं होता। यदि होता तो मैं भंगी के घर पैदा क्यों होता? जो स्वयं को इस देश की महान सांस्कृतिक धरोहर के तथाकथित अलमबरदार कहते हैं, क्या वे अपनी मर्जी से उन घरों में पैदा हुए हैं? हाँ, इसे जस्टीफाई करने के लिए अनेक धर्मशास्त्रों का सहारा वे जरूर लेते हैं। वे धर्मशास्त्र जो समता, स्वतंत्रता की हिमायत नहीं करते, बल्कि सामन्ती प्रवृत्तियों को स्थापित करते हैं।”
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
― जूठन: पहला खंड [Joothan]
