जिनकी मुट्ठियों में सुराख था / Jinki Muthiyon Mein Surakh Tha Quotes

Rate this book
Clear rating
जिनकी मुट्ठियों में सुराख था / Jinki Muthiyon Mein Surakh Tha जिनकी मुट्ठियों में सुराख था / Jinki Muthiyon Mein Surakh Tha by Neelakshi Singh
19 ratings, 5.00 average rating, 3 reviews
जिनकी मुट्ठियों में सुराख था / Jinki Muthiyon Mein Surakh Tha Quotes Showing 1-6 of 6
“मेरा दर्द उनकी दवा, जैसा। मैं इस दर्द को सहेजकर रख लूँगा और जब कभी अपने को प्रताड़ित करने का मौका होगा मैं उनके कहे एक-एक शब्द को याद कर इतना प्रताड़ित होऊँगा कि दर्द तक उधार लेने पड़ जाएँ।”
Neelakshi Singh, शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
“मैंने बाहर निकलते वक्त इस पर तफसीस से सोचा। मुझे लगा कि उसमें काफी गुंजाइश थी। कुछ गुंजाइश जो हमने छोड़ी थी अपनी हरकतों से और कुछ जो-जो होना चाहिए और जो हुआ ― के बीच के गैप से उत्पन्न हुई थी। अक्सर ऐसे मौके पर मैं यही सोचकर चुप हो जाता हूं कि जब मैं अपनी फ़िल्म बनाऊँगा तब ऐसे तमाम उलझे उपेक्षित मौके को पर्याप्त वक्त दूंगा। दरअसल यही मेरी जिंदगी का प्रस्थान- बिंदु था ― वह बिंदु जहां से मैं हर मुसीबत को ठेंगा दिखा दिया करता था। यह मोड़ मुझे कभी उदास होने ही नहीं देता और यही जिंदगी के प्रति आस्था का स्रोत भी था।”
Neelakshi Singh, शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
“मैं उसे लिये- लिये आगे चलता रहा।उसने भी खामोशी तोड़ने के लिए कहा होगा जरूर। वह मुझ में दुबककर बड़ी अदा से चलने लगी। साथ चलते हुए उसका माथा मेरे कान के निचले हिस्से को छू रहा था। और ठीक सामने होने पर मेरे होठों को। मैंने अपनी फिल्म के लिए नायिका की जो आड़ी - तिरछी रेखा बनाई थी,उसमें के ज्यादातर रेखांश उसके चरित्र से ही उधार (साभार) लिए थे। संभावित प्रेम को सुनते ही वह जिस तरह समर्पित हो जाती,इस बात का बतौर निर्देशक, मैं जबरदस्त कायल था।”
Neelakshi Singh, शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
“दफ्तर में एक दूसरी लड़की थी, जो मुझसे कतरा-कतरा कर बच निकलने लगी थी। या ज्यादा माकूल बात यह कि हम आपस में कतराकर बचने का खेल खेलने लग गये थे। उस पिछली घटना के बाद बात हमसे जरा सी नहीं हुई थी। अब पहले की तरह मैं दिन-भर उनके चेहरे की बाट जोहकर उनकी हर हरकत का रिकॉर्ड नहीं रख रहा था। एक दूसरा रास्ता अपनाते हुए मैंने उनसे सटे ही दूसरे चीज की ओर प्रत्यक्ष रूप से देखते हुए दृष्टि विस्तार में उन पर नजर रखने का कौशल विकसित किया था, ताकि अपने से भी छिपाकर उन पर नजर रख सकूँ।”
Neelakshi Singh, शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
“चूँकि अलौकिक शक्तियों के साथ साथ उसमें लौकिक गुण भी थे और उनके प्रभाव से कुछ भी सोचते वक्त उसके चेहरे पर मन के भाव बड़ी उन्मुक्तता से पसर आते थे और ऐसे वक्त वह कभी अपने आप को तमतमाते हुए, कभी मुस्कुराते हुए, कभी लजाते हुए, कभी इतराते हुए और कभी मुरझाते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया करती थी और चोर नजरों से उसे इधर-उधर 'किसी ने देखा तो नहीं' की टोह लेनी पड़ती थी इसलिए अंधेरे में सोचना उसने अपने लिए सर्वथा माकूल घोषित किया था।”
Neelakshi Singh, शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
“तुम अच्छी हो।'
'तुम अच्छे नहीं हो।'
'तुम फिर भी अच्छी हो।'
'तुम फिर भी अच्छे नहीं हो।'

'इससे क्या हुआ? तुम अच्छी हो।' उसने कहा।

'इससे बहुत कुछ हुआ। तुम भी अच्छे हो।' मैंने कहा।”
Neelakshi Singh, परिन्दे का इन्तज़ार-सा कुछ / Parinde Ke Intzaar-Sa Kuchh