SANKSHIPT MAHABHARAT Quotes

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SANKSHIPT MAHABHARAT (Vol#1) SANKSHIPT MAHABHARAT by Veda Vyasa
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“देखकर मुसकराने लगे। धर्मराज युधिष्ठिरने पूछा—‘माननीय! अन्य सभी तपस्वी मुझे इस”
Maharshi Ved Vyas Ji, Mahabharat (Sanshipt) Part 01, Code 0039, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
“क्रोधीसे क्रोध न करनेवाला, असहनशीलसे सहनशील, अमानवसे मानव तथा अज्ञानीसे ज्ञानी श्रेष्ठ है। जो दूसरेकी गाली सुनकर भी बदलेमें उसे गाली नहीं देता, उस क्षमाशील मनुष्यका दबा हुआ क्रोध ही गाली देनेवालेको भस्म कर सकता है और उसके पुण्यको भी ले लेता है। दूसरेके मुँहसे अपने लिये कड़वी बात सुनकर भी जो उसके प्रति कठोर या प्रिय कुछ भी नहीं कहता तथा किसीकी मार खाकर भी धैर्यके कारण बदलेमें न तो उसे मारता है और न उसकी बुराई ही चाहता है, उस महात्मासे मिलनेके लिये देवता भी सदा लालायित रहते हैं। पाप करनेवाला अपराधी अवस्थामें अपनेसे बड़ा हो या बराबर, उसके द्वारा अपमानित होकर, मार खाकर और गाली सुनकर भी उसे क्षमा ही कर देना चाहिये। ऐसा करनेवाला पुरुष परम सिद्धिको प्राप्त होगा।”
Maharshi Ved Vyas Ji, Mahabharat (Sanshipt) Part 02, Code 0511, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
“समझदार पुरुषको चाहिये कि वह कटुवचन कहने और अनादर करनेवाले अज्ञानियोंको उनके दोष बताकर समझानेका प्रयत्न न करे, न दूसरोंको बढ़ावा दे और न अपनी हिंसा करे।”
Maharshi Ved Vyas Ji, Mahabharat (Sanshipt) Part 02, Code 0511, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)