Rangbhumi Quotes

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Rangbhumi Rangbhumi by Munshi Premchand
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Rangbhumi Quotes Showing 1-10 of 10
“मरने के पीछे क्या होगा, कौन जानता है? संसार सदा इसी भांति रहा है और इसी भांति रहेगा। उसकी सुव्यवस्था न किसी से हुई है और न होगी। बड़े-बड़े ज्ञानी, बड़े-बड़े तत्त्ववेत्ता ऋषि-मुनि मर गए, और, कोई इस रहस्य का पार न पा सका। हम जीव मात्र हैं और हमारा काम केवल जीना है। देश-भक्ति, सेवा, विश्व भक्ति, परोपकार, यह ढकोसला है। अब उनके नैराश्य-व्यथित हृदय को इन्हीं विचारों से शांति मिलती है।”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“क्रोध सत्क्रोध हो जाता था, लोभ सदनुराग, मोह सदुत्साह के रूप में प्रकट होता था और अहंकार आत्माभिमान के वेष”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“जो प्राणी सम्मान से इतना फूल उठता है, वह उपेक्षा से इतना ही हताश भी हो जाएगा।”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“मगर क्रोध अत्यंत कठोर होता है। वह देखना चाहता है कि मेरा एक-एक वाक्य निशाने पर बैठता है या नहीं, वह मौन को सहन नहीं कर सकता।”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“मानव-चरित्र कितना रहस्यमय है। हम दूसरों का अहित करते हुए जरा भी नहीं झिझकते, किन्तु जब दूसरों के हाथों हमें कोई हानि पहुंचती है, तो हमारा खून खौलने लगता”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“हम ऐसे मनुष्यों पर भी, जिनसे हमारा लेशमात्र भी वैमनस्य नहीं है, कटाक्ष करने लगते हैं। कोई स्वार्थ की इच्छा न रखते हुए भी हम उनका सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं। उनका विश्वासपात्र बनने की हमें एक अनिवार्य”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“मनुष्य स्वभावतः क्रियाशील होते हैं, उनमें विवेचन-शक्ति कहां? सुभागी”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“विनयसिंह की आँखें खुल गईं। स्वर्ग का एक पुष्प अक्षय, अपार सौरभ में नहाया हुआ, हवा के मृदुल झोकों से हिलता, सामने विराज रहा था।”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“प्रभात की स्वर्ण-किरणों में नहाकर माता का स्नेह-सुन्दर गात निखर गया है और बालक भी अंचल से मुँह निकाल-निकालकर माता के स्नेह-प्लावित मुख की ओर देखता है, हुमकता है और मुस्कुराता है; पर माता बार-बार उसे अंचल से ढक लेती है कि कहीं उसे नज़र न लग जाए।”
Munshi Premchand, Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“धर्म का मुख्य स्तंभ भय है। अनिष्ट की शंका को दूर कीजिए, फिर तीर्थ-यात्रा, पूजा-पाठ, स्नान-ध्यान, रोजा-नमाज, किसी का निशान भी न रहेगा। मसजिदें खाली नजर आएँगी और मंदिर वीरान!”
Munshi Premchand, Rangbhoomi