Rangbhumi Quotes
Rangbhumi
by
Munshi Premchand538 ratings, 4.30 average rating, 42 reviews
Rangbhumi Quotes
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“मरने के पीछे क्या होगा, कौन जानता है? संसार सदा इसी भांति रहा है और इसी भांति रहेगा। उसकी सुव्यवस्था न किसी से हुई है और न होगी। बड़े-बड़े ज्ञानी, बड़े-बड़े तत्त्ववेत्ता ऋषि-मुनि मर गए, और, कोई इस रहस्य का पार न पा सका। हम जीव मात्र हैं और हमारा काम केवल जीना है। देश-भक्ति, सेवा, विश्व भक्ति, परोपकार, यह ढकोसला है। अब उनके नैराश्य-व्यथित हृदय को इन्हीं विचारों से शांति मिलती है।”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“क्रोध सत्क्रोध हो जाता था, लोभ सदनुराग, मोह सदुत्साह के रूप में प्रकट होता था और अहंकार आत्माभिमान के वेष”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“जो प्राणी सम्मान से इतना फूल उठता है, वह उपेक्षा से इतना ही हताश भी हो जाएगा।”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“मगर क्रोध अत्यंत कठोर होता है। वह देखना चाहता है कि मेरा एक-एक वाक्य निशाने पर बैठता है या नहीं, वह मौन को सहन नहीं कर सकता।”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“मानव-चरित्र कितना रहस्यमय है। हम दूसरों का अहित करते हुए जरा भी नहीं झिझकते, किन्तु जब दूसरों के हाथों हमें कोई हानि पहुंचती है, तो हमारा खून खौलने लगता”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“हम ऐसे मनुष्यों पर भी, जिनसे हमारा लेशमात्र भी वैमनस्य नहीं है, कटाक्ष करने लगते हैं। कोई स्वार्थ की इच्छा न रखते हुए भी हम उनका सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं। उनका विश्वासपात्र बनने की हमें एक अनिवार्य”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“मनुष्य स्वभावतः क्रियाशील होते हैं, उनमें विवेचन-शक्ति कहां? सुभागी”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“विनयसिंह की आँखें खुल गईं। स्वर्ग का एक पुष्प अक्षय, अपार सौरभ में नहाया हुआ, हवा के मृदुल झोकों से हिलता, सामने विराज रहा था।”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“प्रभात की स्वर्ण-किरणों में नहाकर माता का स्नेह-सुन्दर गात निखर गया है और बालक भी अंचल से मुँह निकाल-निकालकर माता के स्नेह-प्लावित मुख की ओर देखता है, हुमकता है और मुस्कुराता है; पर माता बार-बार उसे अंचल से ढक लेती है कि कहीं उसे नज़र न लग जाए।”
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
― Rangbhumi (रंगभूमि : प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास)
“धर्म का मुख्य स्तंभ भय है। अनिष्ट की शंका को दूर कीजिए, फिर तीर्थ-यात्रा, पूजा-पाठ, स्नान-ध्यान, रोजा-नमाज, किसी का निशान भी न रहेगा। मसजिदें खाली नजर आएँगी और मंदिर वीरान!”
― Rangbhoomi
― Rangbhoomi
