अतिथि Quotes

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अतिथि अतिथि by Shivani
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अतिथि Quotes Showing 1-30 of 72
“नारी किसी अरण्य में ही क्यों न चली जाए, उसका अतीत एक-न-एक दिन, उसे ढूँढता, वहाँ पहुँच ही जाता है।”
Shivani, अतिथि
“अभी-अभी खजुराहो देखकर लौटी हूँ। आप उन मूर्तियों को देखकर मुग्ध हो जाएँगी । कहते हैं, जिसके हृदय में क्षणिक सुख के प्रति विरक्ति हो गई हो, वह यदि शान्त चित्त से, मन्दिर के अभ्यन्तर प्रकोष्ठ में प्रवेश करे तो उसे अविछिन्न परमानन्द की उपलब्धि होती है।”
Shivani, अतिथि
“रवीन्द्रनाथ की भविष्यवाणी कितनी सत्य होकर निखर आई थी । वर्षों की विदेशी शासन धारा सूखेगी तब अपने पीछे कितना कर्दम, कितनी गन्दगी छोड़ जाएगी—यही तो कहा था उन्होंने !”
Shivani, अतिथि
“जीवन में सब कुछ सहते-सहते वह अब पत्थर हो गई थी,”
Shivani, अतिथि
“बिना अपने मरे स्वर्ग नहीं दिखता ।”
Shivani, अतिथि
“घृणा और भय से मुक्त होने पर ही तो आत्मबल का उदय होता है ।”
Shivani, अतिथि
“वह नहीं जानता था कि प्रत्येक सांसारिक वस्तु में विधाता अदृश्य प्राइस टैग लगाकर धरे रहता है । मान-सम्मान, प्रेम, मैत्री सब कुछ पाने के लिए, पहले कुछ-न-कुछ देना पड़ता है। इस संसार में बिना पल्ले का खरचे, कुछ जुटता नहीं फिर यह तो वह देश है जहाँ श्मशान घाट में चिता की लकड़ियों का भी मोल-भाव चलता है ।”
Shivani, अतिथि
“आज तक पत्थर के अभेद्य बाँध से बाँधा गया हृदय का वेग, गलित उष्ण लावा-सा छिटककर उसे दग्ध करने लगा । उसकी दोनों आँखों से अश्रुधार उसके कपोल सिक्त करने लगी । आज तक उसे रोने के लिए भी तो एकान्त नही जुट पाया था”
Shivani, अतिथि
“यहाँ कोई भी नहीं ढूँढ़ पाएगा उसे, यह उसका अपना एकांत था, यहाँ किसी प्रकार का व्याघात, उसके मन की सहसा पाई शांति को विनष्ट नहीं कर पाएगा। दोनों आँखें बन्द कर वह अतीत की स्मृतियों से सुख के वे अमूल्य क्षण, बीन-बीनकर पलकों में दबाने लगी ।”
Shivani, अतिथि
“अब,वह जिस आनंदलोक में पहुँच गई थी वहाँ वह निःशंक थी, निर्भय ।”
Shivani, अतिथि
“जी में आ रहा था जोर-जोर से गाए, नाचे और फिर उस अलस निद्रापाश में डूब जाए, जहाँ न अतीत की स्मृतियाँ झाँक सकती थीं, न वर्तमान की चिंताएँ ।”
Shivani, अतिथि
“गृहशांति के लिए उनके हृदय में हाहाकार निरन्तर तीव्रतर होता जा रहा था ।”
Shivani, अतिथि
“आपादमस्तक अलंकृता जया को वह देखती सोचने लगी । क्या चाचा जी ने इस निर्दोष अनजान लड़की को, अपने उद्धत-उद्दंड पुत्र के सजीले पौरुष का चुग्गा बिखेरकर ही सोने के पिंजरे में सिर मारने के लिए बंदिनी बना लिया था ? सुना तो यही था कि लड़की ने स्वयं ही कार्तिक को पसंद कर, अपनी स्वीकृति दी थी। पर बेचारी का क्या दोष? क्या उसने भी यही नहीं किया था ? यही तो इस घर के सुदर्शन राजपुत्रों की खासियत थी ? विष से भरे ऐसे ही एक स्वर्णघट को उसने भी तो स्वेच्छा से तृषार्त अधरों पर सटाया या ।”
Shivani, अतिथि
“जब किसी भुतहे घर में कोई नया किराएदार आता है, तो उसे आगाह कर देना उसका कर्तव्य हो जाता है, जिसे उसी घर में कभी अशरीरी प्रेतात्माओं ने आतंकित किया हो।”
Shivani, अतिथि
“लड़की न हो गई गाय हो गई । जिस कसाई का जी चाहे, दाम चुकाए और ले जाए ।”
Shivani, अतिथि
“जब पति का हाथ एक बार पत्नी पर उठने लगता है, तो फिर रुकता नहीं । मारने की आदत पड़ जाती है”
Shivani, अतिथि
“वे जान गए कि साधक की जब तक भीतरी तथा बाहरी दृष्टि नहीं खुलती, वह साधक नहीं हो सकता ।”
Shivani, अतिथि
“लग रहा था लड़की प्राणों तक चेष्टा से ही रुलाई रोक रही है ।”
Shivani, अतिथि
“उदास-अवसन्न-बुझा मन”
Shivani, अतिथि
“कहते हैं, जिसके हृदय में क्षणिक सुख के प्रति विरक्ति हो गई हो, वह यदि शान्त चित्त से, मन्दिर के अभ्यन्तर प्रकोष्ठ में प्रवेश करे तो उसे अविछिन्न परमानन्द की उपलब्धि होती है।”
Shivani, अतिथि
“यह कैसा पाठ पढ़ा गई थी उसे वह अनपढ़ नौकरानी! नशे-पानी ने उसके मरद को जानवर बना दिया और उसने उसकी खाल भी उधेड़ दी तो क्या हुआ! “हमार मरद है ना जीजी, फिर भी बहुत प्यार करत है हमसे ।”
Shivani, अतिथि
“आनन्दी रसीले अधरों”
Shivani, अतिथि
“करौंदी, गुरवले, औंध पुष्पी, कृष्णकांता, शंखपुष्पी, भटकटारी, मदनमस्त कितनी ही वनस्पतियों के नाम”
Shivani, अतिथि
“अविरल गति से बहती क्षीण कलेवरा, बेतवा, आडिग खड़ी विंध्याचल की पर्वतमाला और उसके शिरोभाग में सघन वन।”
Shivani, अतिथि
“खेतन फूलै तोरही। वन फूलै कचनार। बिटिया फूलै सासरे। सैया करो विचार।”
Shivani, अतिथि
“मोहक हँसी”
Shivani, अतिथि
“मदालत हँसी”
Shivani, अतिथि
“अपनी ही अशिष्ट अभद्रता उसे डंक दे उठी । छि: छि: कैसे उद्धत हँसी के साथ वह उनकी बातें सुनी”
Shivani, अतिथि
“अस्सी तोला पहनकर सादी-बियाहों में गई हूँ मैं, करधनी, कानों में मगर, तिलड़ी, चंदन हार, आधा-आधा किलो के पाजेव–एक बार जड़ाऊ छपका भी बना लाए थे”
Shivani, अतिथि
“करुण हँसी चन्द्रा के हृदय में तीखी बरछी—सी धँस गई, “इस युग में हम माँ-बाप नींद की गोलियाँ नहीं खाते, हमारे बच्चों को खानी पड़ती हैं–वे सोना भूल गए हैं, हमें तो अभी भी बिना गोलियों के ही नींद आ जाती है।”
Shivani, अतिथि

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