तितली Quotes
तितली
by
Jaishankar Prasad384 ratings, 4.00 average rating, 15 reviews
तितली Quotes
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“को प्रभुत्व चाहिए। प्रभुत्व का नशा, ओह कितना मादक है! मैंने थोड़ी सी पी है। किन्तु मेरे घर की स्त्रियाँ तो इस एकाधिकार के वातावरण में मुझसे भी अधिक!”
― तितली
― तितली
“प्राणी, अपनी व्यक्तिगत चेतना का उदय होने पर, एक कुटुम्ब में रहने के कारण अपने को प्रतिकूल परिस्थिति में देखता है। इसलिए सम्मिलित कुटुम्ब का जीवन दुखदायी हो रहा है।”
― तितली
― तितली
“सम्मिलित कुटुम्ब की योजना की कड़ियाँ चूर-चूर हो रही हैं। वह आर्थिक संगठन अब नहीं रहा, जिसमें कुल का एक प्रमुख सबके मस्तिष्क का संचालन करता हुआ रुचि की समता का भार ठीक रखता था।”
― तितली
― तितली
“व्यक्तिगत पवित्रता को अधिक महत्त्व देने वाला वेदांत, आत्मशुद्धि का प्रचारक है। इसीलिए इसमें संघबद्ध प्रार्थनाओं की प्रधानता नहीं। तो जीवन की अतृप्ति पर विजय पाना ही भारतीय जीवन का उद्देश्य है न?”
― तितली
― तितली
“उसने एक बार अँगड़ाई लेकर करारों में गंगा की अधखुली धारा को देखा। वह धीरे-धीरे बह रही थी।”
― तितली
― तितली
“सफलता ने और भी चाट बढ़ा दी। राजकुमारी परखने लगी थी अपना—स्त्री का अवलम्ब, जिसके सबसे बड़े उपकरण हैं यौवन और सौन्दर्य।”
― तितली
― तितली
“यह सत्य है कि सब ऐसे भाग्यशाली नहीं होते कि उन्हे कोई प्यार करे, पर यह तो हो सकता है कि वह स्वयं किसी को प्यार करे, किसी के दुख-सुख में हाथ बँटाकर अपना जन्म सार्थक कर ले।”
― तितली
― तितली
“उसकी काली रजनी-सी उनींदी आँखें जैसे सदैव कोई गम्भीर स्वप्न देखती रहती हैं। लम्बा छरहरा अंग, गोरी-पतली उँगलियाँ, सहज उन्नत ललाट, कुछ खिंची हुई भौंहें और छोटा-सा पतले-पतले अधरोंवाला मुख—साधारण कृषक-बालिका से कुछ अलग अपनी सत्ता बता रहे थे। कानों के ऊपर से ही घूँघट था, जिससे लटे निकली पड़ती थीं। उसकी चौड़ी किनारे की धोती का चम्पई रंग उसके शरीर में घुला जा रहा था। वह सन्ध्या के निरभ्र गगन में विकसित होने वाली—अपने ही मधुर आलोक से तुष्ट—एक छोटी-सी तारिका थी।”
― तितली
― तितली
“निराशा और कष्ट के जीवन में भी कभी-कभी चौबे आकर हँसी की रेखा खींच देते। दोनों के हृदय में एक सहज स्निग्धता और सहानुभूति थी। दिन-दिन वही बढ़ने लगी। स्त्री का हृदय था; एक दुलार का प्रत्याशी; उसमें कोई मलिनता न थी।”
― तितली
― तितली
“नीचे एक व्यक्ति पड़ा हुआ अपना हाथ मुँह तक ले जाता है और उसे चाटकर हटा लेता है पास ही एक छोटा-सा जीव और भी निस्तब्ध पड़ा है। मैं दौड़कर अपने लोटे में दूध मोल ले आया।”
― तितली
― तितली
“रेल के गार्ड ने कहा—भुखमरों की भीड़ रेलवे-लाइन पर खड़ी है। मैं गाड़ी से उतरकर वह भीषण दृश्य देखने लगा। संसार का नग्न चित्र, जिसमें पीड़ा का, दुःख का, तांडव नृत्य था। बिना वस्त्र के सैकड़ों नर-कंकाल, इंजिन के सामने लाइन पर खड़े-खड़े और गिरे हुए, मृत्यु की आशा में टक लगाये थे। मैं रो उठा।”
― तितली
― तितली
“अन्य जाति के लोग मिट्टी या चीनी के बरतन में उत्तम स्निग्न भोजन करते हैं। हिन्दू चाँदी की थाली में भी सत्तू घोलकर पीता है।”
― तितली
― तितली
“माँ जी, मुझसे भूल हो सकती है, अपराध नहीं। तव भी, आप लोगों की स्नेह-छाया में मुझे सुख की अधिक आशा है।”
― तितली
― तितली
“क्या अब जंगल-परती में भी बैठने न दोगे? और वह तो न जाने कब से कृष्णार्पण लगी हुई बनजरिया”
― तितली
― तितली
