तितली Quotes

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तितली तितली by Jaishankar Prasad
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“तितली अपनी सलज्ज कान्ति में जैसे शिशिर-कणों से लदी हुई कुन्दकली की मालिका-सी गम्भीर सौन्दर्य का सौरभ बिखेर रही थी। इन्द्रदेव उसको भी परख लेते थे।”
Jaishankar Prasad, तितली
“प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु-से सरल हृदयों की वस्तु है।”
Jaishankar Prasad, तितली
“पुरुष के भीतर अतीतकाल से संचित अधिकार का संस्कार गरज उठता है।”
Jaishankar Prasad, तितली
“को प्रभुत्व चाहिए। प्रभुत्व का नशा, ओह कितना मादक है! मैंने थोड़ी सी पी है। किन्तु मेरे घर की स्त्रियाँ तो इस एकाधिकार के वातावरण में मुझसे भी अधिक!”
Jaishankar Prasad, तितली
“प्राणी, अपनी व्यक्तिगत चेतना का उदय होने पर, एक कुटुम्ब में रहने के कारण अपने को प्रतिकूल परिस्थिति में देखता है। इसलिए सम्मिलित कुटुम्ब का जीवन दुखदायी हो रहा है।”
Jaishankar Prasad, तितली
“सम्मिलित कुटुम्ब की योजना की कड़ियाँ चूर-चूर हो रही हैं। वह आर्थिक संगठन अब नहीं रहा, जिसमें कुल का एक प्रमुख सबके मस्तिष्क का संचालन करता हुआ रुचि की समता का भार ठीक रखता था।”
Jaishankar Prasad, तितली
“दारिद्रय में रहते हुए भी, कुलीनता का अनुशासन”
Jaishankar Prasad, तितली
“व्यक्तिगत पवित्रता को अधिक महत्त्व देने वाला वेदांत, आत्मशुद्धि का प्रचारक है। इसीलिए इसमें संघबद्ध प्रार्थनाओं की प्रधानता नहीं। तो जीवन की अतृप्ति पर विजय पाना ही भारतीय जीवन का उद्देश्य है न?”
Jaishankar Prasad, तितली
“आत्मा के शत्रु आसुर भावों से युद्ध की शिक्षा है। प्राचीन ऋषियों ने बतलाया”
Jaishankar Prasad, तितली
“जहाँ स्वार्थ के अस्तित्व के लिए युद्ध होगा,”
Jaishankar Prasad, तितली
“उसने एक बार अँगड़ाई लेकर करारों में गंगा की अधखुली धारा को देखा। वह धीरे-धीरे बह रही थी।”
Jaishankar Prasad, तितली
“सफलता ने और भी चाट बढ़ा दी। राजकुमारी परखने लगी थी अपना—स्त्री का अवलम्ब, जिसके सबसे बड़े उपकरण हैं यौवन और सौन्दर्य।”
Jaishankar Prasad, तितली
“यह सत्य है कि सब ऐसे भाग्यशाली नहीं होते कि उन्हे कोई प्यार करे, पर यह तो हो सकता है कि वह स्वयं किसी को प्यार करे, किसी के दुख-सुख में हाथ बँटाकर अपना जन्म सार्थक कर ले।”
Jaishankar Prasad, तितली
“आज उसके प्रौढ़ वय में भी व्यय-विहीन पवित्र यौवन चंचल हो उठा था।”
Jaishankar Prasad, तितली
“उसकी काली रजनी-सी उनींदी आँखें जैसे सदैव कोई गम्भीर स्वप्न देखती रहती हैं। लम्बा छरहरा अंग, गोरी-पतली उँगलियाँ, सहज उन्नत ललाट, कुछ खिंची हुई भौंहें और छोटा-सा पतले-पतले अधरोंवाला मुख—साधारण कृषक-बालिका से कुछ अलग अपनी सत्ता बता रहे थे। कानों के ऊपर से ही घूँघट था, जिससे लटे निकली पड़ती थीं। उसकी चौड़ी किनारे की धोती का चम्पई रंग उसके शरीर में घुला जा रहा था। वह सन्ध्या के निरभ्र गगन में विकसित होने वाली—अपने ही मधुर आलोक से तुष्ट—एक छोटी-सी तारिका थी।”
Jaishankar Prasad, तितली
“निराशा और कष्ट के जीवन में भी कभी-कभी चौबे आकर हँसी की रेखा खींच देते। दोनों के हृदय में एक सहज स्निग्धता और सहानुभूति थी। दिन-दिन वही बढ़ने लगी। स्त्री का हृदय था; एक दुलार का प्रत्याशी; उसमें कोई मलिनता न थी।”
Jaishankar Prasad, तितली
“तुमको और अपने को समान अन्तर पर रखकर, कुछ दिन परीक्षा लेकर, तब मन से पूछूँगी।”
Jaishankar Prasad, तितली
“ईषत हँसी”
Jaishankar Prasad, तितली
“नीचे एक व्यक्ति पड़ा हुआ अपना हाथ मुँह तक ले जाता है और उसे चाटकर हटा लेता है पास ही एक छोटा-सा जीव और भी निस्तब्ध पड़ा है। मैं दौड़कर अपने लोटे में दूध मोल ले आया।”
Jaishankar Prasad, तितली
“रेल के गार्ड ने कहा—भुखमरों की भीड़ रेलवे-लाइन पर खड़ी है। मैं गाड़ी से उतरकर वह भीषण दृश्य देखने लगा। संसार का नग्न चित्र, जिसमें पीड़ा का, दुःख का, तांडव नृत्य था। बिना वस्त्र के सैकड़ों नर-कंकाल, इंजिन के सामने लाइन पर खड़े-खड़े और गिरे हुए, मृत्यु की आशा में टक लगाये थे। मैं रो उठा।”
Jaishankar Prasad, तितली
“अन्य जाति के लोग मिट्टी या चीनी के बरतन में उत्तम स्निग्न भोजन करते हैं। हिन्दू चाँदी की थाली में भी सत्तू घोलकर पीता है।”
Jaishankar Prasad, तितली
“न तो कोई सधवा का चिह्न! था केवल उज्ज्वलता का पवित्र तेज,”
Jaishankar Prasad, तितली
“गंगा की लहरियों पर मध्याह्न के सूर्य की किरणें नाच रही थीं।”
Jaishankar Prasad, तितली
“चाँदनी शैला की उषा में फीकी पड़ेगी”
Jaishankar Prasad, तितली
“क्या यों ही सात समुद्र तेरह नदी पार करके यह आई है!”
Jaishankar Prasad, तितली
“माँ जी, मुझसे भूल हो सकती है, अपराध नहीं। तव भी, आप लोगों की स्नेह-छाया में मुझे सुख की अधिक आशा है।”
Jaishankar Prasad, तितली
“तितली से उसके हृदय की बातें हो चुकी थीं। उसकी तरी छाती में भरी थी।”
Jaishankar Prasad, तितली
“क्या अब जंगल-परती में भी बैठने न दोगे? और वह तो न जाने कब से कृष्णार्पण लगी हुई बनजरिया”
Jaishankar Prasad, तितली
“दुखी के साथ दुखी की सहानुभूति होना स्वाभाविक है।”
Jaishankar Prasad, तितली
“सुख! अरे मुझे तो इनके पास जीवन का सच्चा स्वरूप मिलता है, जिसमें ठोस मेहनत, अटूट विश्वास और सन्तोष से भरी शांति हँसती-खेलती है।”
Jaishankar Prasad, तितली

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