चित्रलेखा Quotes

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चित्रलेखा चित्रलेखा by Bhagwaticharan Verma
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चित्रलेखा Quotes Showing 1-19 of 19
“धर्म समाज द्वारा निर्मित है। धर्म के नीतिशास्त्र को जन्म नहीं दिया है, वरन् इसके विपरीत नीतिशास्त्र ने धर्म को जन्म दिया है। समाज को जीवित रखने के लिए समाज द्वारा निर्धारित नियमों की ही नीतिशास्त्र कहते हैं, और इस नीतिशास्त्र का आधार तक है। धर्म का आधार विश्वास है और विश्वास के बन्धन से प्रत्येक मनुष्य को बाँधकर उससे अपने नियमों का पालन कराना ही समाज के लिए हितकर है। इसीलिए ऐसी भी परिस्थितियाँ आ सकती हैं, जब धर्म के विरुद्ध चलना समाज के लिए कल्याणकारक हो जाता है और धीरे-धीरे धर्म का रूप बदल जाता है।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“मनुष्य को पहले अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। आर्य श्वेतांक, दूसरों के दोषों को देखना सरल होता है, अपने दोषों को न समझना संसार की एक प्रथा हो गई है। मनुष्य वही श्रेष्ठ है, जो अपनी कमजोरियों को जानकर उनको दूर करने का उपाय कर सके।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“प्रकाश पर लुब्ध पतंग को अन्धकार का प्रणाम है।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
tags: satire
“कुछ-कुछ समझने के कोई अर्थ नहीं होते। यदि तुम समझ सकते हो तो पूर्णतया, नहीं तो बिल्कुल ही नहीं।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“नहीं, मेरे जीवन की कोई बात गुप्त नहीं है। गुप्त वे बातें रखी जाती हैं, जो अनुचित होती हैं। गुप्त रखना भय का द्योतक है, और भयभीत होना मनुष्य के अपराधी होने का द्योतक है। मैं जो करता हूँ, उसे उचित समझता हूँ, इसलिए उसे कभी गुप्त नहीं रखता।”
Bhagwati Charan Verma, चित्रलेखा
“व्यक्तित्व की उत्कृष्टता किसी भी बात को काटने में नहीं होती, उसे सिद्ध करने में होती है; बिगाड़ने में नहीं होती, बनाने में होती है।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“संसार में पाप कुछ भी नहीं है, वह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“कुमारगिरि और चित्रलेखा दोनों ही अहंभाव से भरे हुए ममत्व के दास हैं और दोनों ही ममत्व की तुष्टि पर विश्वास करते हैं;पर दोनों के साधन भिन्न हैं और विपरीत”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“मनुष्य अनुभव प्राप्त नहीं करता, परिस्थितियाँ मनुष्य को अनुभव प्राप्त कराती हैं।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“शान्ति अकर्मण्यता का दूसरा नाम है, और अकर्मण्यता ही मुक्ति है। जिसे सारा विश्व अकर्मण्यता कहता है, वह वास्तव में अकर्मण्यता नहीं है; क्योंकि उस स्थिति में मस्तिष्क कार्य किया करता है। अकर्मण्यता के अर्थ होते हैं–जिस शून्य से उत्पन्न हुए हैं, उसी में लय हो जाना। और वही शून्य जीवन का निर्धारित लक्ष्य है।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“पाप कुछ भी नहीं है, वह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष प्रकार की मन:प्रवृत्ति लेकर उत्पन्न होता है–प्रत्येक व्यक्ति इस संसार के रंगमंच पर एक अभिनय करने आता है। अपनी मन:प्रवृत्ति से प्रेरित होकर अपने पाठ को वह दुहराता है–यही मनुष्य का जीवन है। जो कुछ मनुष्य करता है, वह उसके स्वभाव के अनुकूल होता है और स्वभाव प्राकृतिक है। मनुष्य अपना स्वामी नहीं है, वह परिस्थितियों का दास है–विवश है। कर्त्ता नहीं है, वह केवल साधन है। फिर पुण्य और पाप कैसा? “मनुष्य में ममत्व प्रधान है। प्रत्येक मनुष्य सुख चाहता है। केवल व्यक्तियों के सुख के केन्द्र भिन्न होते हैं। कुछ सुख को धन में देखते हैं, कुछ सुख को मदिरा में देखते हैं, कुछ सुख को व्यभिचार में देखते हैं, कुछ त्याग में देखते हैं–पर सुख प्रत्येक व्यक्ति चाहता है; कोई भी व्यक्ति संसार में अपनी इच्छानुसार वह काम न करेगा, जिसमें दुख मिले–यही मनुष्य की मन:प्रवृत्ति है और उसके दृष्टिकोण की विषमता है। “संसार में इसीलिए पाप की परिभाषा नहीं हो सकी–और न हो सकती है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं, जो हमें करना पड़ता है।” रत्नाम्बर उठ खड़े हुए–“यह मेरा मत है–तुम लोग इससे सहमत हो या न हो, मैं तुम्हें बाध्य नहीं करता और न कर सकता हूँ। जाओ और सुखी रहो! यह मेरा तुम्हें आशीर्वाद है।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“बीजगुप्त ने हँसते हुए कहा–देवि! मनुष्य अनुभव प्राप्त नहीं करता, परिस्थितियाँ मनुष्य को अनुभव प्राप्त कराती हैं.”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“संसार में इस समय दो मत हैं. एक जीवन को हलचलमय करता है; दूसरा, जीवन को शान्ति का केन्द्र बनाना चाहता है. दोनों ओर के तर्क यथेष्ट सुन्दर हैं. यह निर्णय करना कि कौन सत्य है, बड़ा कठिन कार्य है.”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“लक्ष्यहीन पथिक?’–बीजगुप्त की विचारधारा बदल गई.–क्या कोई भी व्यक्ति लक्ष्यहीन है–अथवा लक्ष्यहीन होना व्यक्ति के लिए कभी सम्भव है? शायद ‘हाँ’–बीजगुप्त असमंजस में पड़ गया. एक दूसरा प्रश्न उसी समय उसके सामने खड़ा हो गया–‘क्या मनुष्य का कोई लक्ष्य भी है? कोई भी व्यक्ति बता सकता है कि वह क्या करने आया है, क्या करना चाहता है और क्या करेगा? नहीं, यही तो नहीं सम्भव है. मनुष्य परतन्त्र है. परिस्थितियों का दास है, लक्ष्यहीन है. एक अज्ञात शक्ति प्रत्येक व्यक्ति को चलाती है. मनुष्य की इच्छा का कोई मूल्य ही नहीं है. मनुष्य स्वावलम्बी नहीं है, वह कर्त्ता भी नहीं है, साधन–मात्र है!”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“श्वेतांक, यह याद रखना कि मनुष्य स्वतन्त्र विचारवाला प्राणी होते हुए भी परिस्थितियों का दास है. और यह परिस्थिति–चक्र क्या है, पूर्वजन्म के कर्मों के फल का विधान है. मनुष्य की विजय वहीं सम्भव है, जहाँ वह परिस्थितियों के चक्र में पड़कर उसी के साथ चक्कर न खाए, वरन् अपने कर्तव्याकर्तव्य का विचार रखते हुए उस पर विजय पावे.”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा
“मनुष्य का कर्तव्य है कमजोरियों पर विजय पाना। आज भगवान् ने मुझ पर एक सत्य प्रकट किया है। जीवन की उत्कृष्टता वासना से युद्ध करने में है, और मैं यह करने जा रहा हूँ।”
Bhagwati Charan Verma, चित्रलेखा
“हाँ, प्रकृति अपूर्ण है। प्रकृति के अपूर्ण होने के कारण ही मनुष्य ने कृत्रिमता की शरण ली है। दूर्वादल कोमल है, सुन्दर है, पर उसमें नमी है, उसमें कीड़-मकोड़े मिलेंगे। इसीलिए मनुष्य ने मखमल के गद्दे बनवाए हैं जिनमें न नमी है, और न कीड़े-मकोड़े हैं, साथ ही जो दूर्वादल से कहीं अधिक कोमल हैं। जाड़े के दिनों में प्रकृति के इन सुन्दर स्थानों की कुरूपता देखो, जहाँ कुहरा छाया रहता है, जब इतनी शीतल वायु चलती है कि शरीर काँपने लगता है। गरमी के दिनों में दोपहर के समय इतनी कड़ी लू चलती है कि शरीर झुलस जाता है। प्रकृति की इन असुविधाओं से बचने के लिए ही तो मनुष्य ने भवनों का निर्माण किया है। उन भवनों में मनुष्य उत्तरी हवा को रोककर जाड़ों में अँगीठी से इतना ताप उत्पन्न कर सकता है कि उसे जाड़ा न लगे। उन भवनों में जवासे तथा खस की टट्टियों को लगाकर मनुष्य गरमी में इतनी शीतलता उत्पन्न कर सकता है कि उसे मधुमास का-सा सुख मिले। प्रकृति मनुष्य की सुविधा नहीं देखती, इसलिए वह अपूर्ण है।”
Bhagwati Charan Verma, चित्रलेखा
“व्यक्तित्व की उत्कृष्टता किसी भी बात को काटने में नहीं होती, उसे सिद्ध करने में होती है; बिगाड़ने में नहीं होती, बनाने में होती है।”
Bhagwati Charan Verma, चित्रलेखा
“प्रत्येक व्यक्ति अपने सिद्धान्तों को निर्धारित करता है तथा उन पर विश्वास भी करता है। प्रत्येक मनुष्य अपने को ठीक मार्ग पर समझता है और उसके मतानुसार दूसरे सिद्धान्त पर विश्वास करनेवाला व्यक्ति गलत मार्ग पर है।”
Bhagwaticharan Verma, चित्रलेखा