मानस का हंस Quotes

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मानस का हंस मानस का हंस by Amritlal Nagar
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मानस का हंस Quotes Showing 1-30 of 39
“पापी लोग पुण्य शील महात्माओं के नैसर्गिक शत्रु होते ही”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“मानस रचते समय मैं जिस ललक के साथ अपने जीवन मूल्यों के पूर्ण समुच्चय स्वरूप श्रीराम की कल्पना के साथ आठों पहर तल्लीन रहता था, तुम अपने तुलसीदास में क्या रह पाते हो!”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“मानव-मन बड़ा अद्भुत होता है बेनीमाधव। जब तक वह संस्कार धारता नहीं तभी तक विकारग्रस्त रहता है और एक बार वह निश्चय कर ले तो जादू की तरह उसकी दृष्टि बदलकर कुछ और की और ही हो जाती है।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“यह दोनों ही अभिन्न-अविभाज्य हैं। रूप प्रेम है और लोभ उसे पाने का मार्ग। मार्ग न हो तो मनुष्य मंजिल तक कैसे पहुँचे?”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“दिन में एकान्त मिल नहीं पाता इसलिए रात में अपने भीतर वाले हंस को अकेला ही अनुभव कराना चाहता हूँ।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“अपनी परिस्थितियों पर विचार न करनेवाला व्यक्ति मूर्ख होता है।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“सृजनशील अहं को जो शक्तियाँ हीनता का बोध करा सकती थीं वे तुच्छ बन गईं। ऐसे ही कामादि वृत्ति रूपी असुर भी मेरे सृजनशील अहं को तुच्छ नहीं बना सकता था। मेरे कवि का साहब परम न्यायी और करुणानिधान है, फिर मैं भला लोक की रावणी व्यवस्था में क्यों घबराता? मुझे परस्पर विरोधों के बीच से चलकर अपना राममार्ग प्रशस्त बनाना था। इसके बिना मैं अपनी सृजनशीलता को जिस धरातल पर ढालना चाहता था वह ढल न पाती। मेरा कवि अपने साहब के प्रति निष्ठावान था और मेरा साहब घट-घट में रमा हुआ है इसलिए मैं मानव मन के दर्शन करने का योग ही जीवन-भर साधता रहा।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“घास के फूल जल्दी विकसित हो जाते हैं, चंपक देर से खिलता है। इतिहास मेघा को कहाँ देख पाएगा रे? मेरा तुलसी तो राम बनकर घट-घट में रमेगा…ना, ना, संकोच न करो भैया। अपने”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“वर्णाश्रम धर्म को मानता हूँ परन्तु प्रेम धर्म को वर्णाश्रम से भी ऊपर मानता हूँ।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“देवार्पित सम्पत्ति की एक कानी-कौड़ी भी व्यर्थ खर्च करने का अधिकार न्यायतः स्वयं आपको भी नहीं है, पर आपकी फिर भी सुन लेता हूँ। इसकी आज्ञा नहीं मानूँगा।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“तुम अपने मन को खाली क्यों छोड़ते हो? उसे अपने आराध्य की विभिन्न लीलाओं के चिन्तन से भरा रखो न। मैंने मिथिला में अपने विकारों को जानकी मंगल मनाकर धोया था। यह जीवरूपी सीता सुहागिन आत्मरूपी राम पर रीझ उठी है। उस रिझवार के ध्यान से मन भयमुक्त होकर विकसित हुआ। मन मैली चाँदी-सा काला था, ध्यान से मंजते-मंजते उजला हो गया।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“तुलसीदास कह रहे थे—“मैंने अभी बतलाया था न कि मैं अपने विकारों को भी राम-रंग में रंग लेता था। राम प्रसंग से जुड़ते ही विकार भी संस्कार बनने लगते हैं। किसी भी स्त्री को देखो और तुरन्त ही यह ध्यान करो कि यह जगदम्बा की दासी है।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“सतत् अभ्यास से तुम्हारी साँस-साँस में यह गूँज भर जाएगी और फिर अपने-आप ही तुम्हें अपने सारे अध्ययन और पांडित्य का खरा अर्थबोध हो जायेगा। राम कहो और राम सुनो। कहो और सुनो।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“केवल चाहने से ही सब कुछ नहीं मिलता भगत। अपनी चाहना को पूरी करने के लिए भगवान को भी नर देह धरकर हाथ-पैर और मन-बुद्धि चलानी पड़ती है।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“कहो और सुनो।” साधु का स्वर शान्त और सधा हुआ था। तुलसीदास को ऐसा लगा कि साधु का स्वर नरहरि बाबा के स्वर से बहुत मिलता-जुलता है। वे कह रहे थे—“राम कहो, राम सुनो। तुम कुछ दिनों तक हठपूर्वक अपने पोथियों के ज्ञान को, अपनी सारी चिन्तन पद्धति को बन्द कर दो।” “क्या ज्ञान-विज्ञान झूठा है?” तुलसी ने सहसा पूछा। “नहीं, किन्तु उसका तोतारटंत प्रयोग अर्थहीन है। भ्रामक है।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“जीविका जीव से भी अधिक प्यारी होती है न।” “ठीक कहा, वही समस्या मुझे भी यहाँ घसीट लाई है। सोचा, अपनी काशी के भी इसी बहाने से दर्शन कर लूँगा।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“पंडित के लिए केवल शास्त्र ही नहीं वरन् रामरूप आत्मविश्वास भी आवश्यक होता है।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“सच है, टिकने वाला तो सियाराम रूप ही है। सच है वह नर-नारी के व्यक्त-अव्यक्त रूप का अनन्त प्रतीक है। उसी का लोभ अनन्त और अजर है।” “तो उन्हीं के प्रति अपना लोभ बढ़ाओ। मुझे घूर-घूर कर क्यों सताते हो?”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“मनुष्य का रूप, प्रकृति की शोभा सब नश्वर है। फिर ऐसे आधार पर टेका देने से लाभ ही क्या जो विश्वास का ठोसपन न लिए हुए हो?”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“सुन्दरता मेरे रूप में है या तुम्हारे लोभ में?”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“सियाराम का पुजारी अपने मानस की नारीशक्ति को भला कभी त्याग सकता है? तुम्हारे कारण मेरी लड़खड़ाती हुई रामभक्ति अंगद का पाँव बन गई।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“साहसी समीर के दुलारे रघुवीरजू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिए।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“साधु होने के लिए केवल वेश ही तो आवश्यक नहीं होता।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“साधु यदि पेटू हो जाय तो फिर उसका निभाव भला क्योंकर हो सकता है?”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“तन की अपनी कुछ चाहें होती हैं भइया। भूखा अगर परोसी हुई थाली छोड़कर जायगा तो भूख के मारे कहीं-न कहीं मुँह मारेगा ही।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“नहीं बेटा, भाग्य का चमत्कार केवल लौकिक स्तर पर ही नहीं दिखलाई देता। मेरी धारणा है कि आपके समान परम भाग्यशाली व्यक्ति जगत में कदाचित् ही कोई हो। जो सिद्धि किसी को नहीं मिलती वह आपके लिए सहज सुलभ होगी।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“केवल पार्वती अम्माँ के मुख से यह सुना-भर था कि मेरे ग्रह-नक्षत्र विचारकर, मुझे मातृ-पितृ-घाती और महा अभागा जानकर ही पिताजी ने मुझे घर से निकाला था।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“आयुष्मन्, आपकी कुण्डली मैंने भी बनाई थी। अभुक्तमूल नक्षत्र में जन्मे बालक की ग्रह-दशा पर विचार करने का लोभ भला कौन ज्योतिषी छोड़ सकता था। मैं समझता हूँ कि इस क्षेत्र के तीन-चार पण्डितों के पास आपका टेवा अवश्य मिल जाएगा।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“मेरा जन्म अभुक्तमूल नक्षत्र में हुआ था।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस
“घरैतिन मेरे जप-तप को अपने भगती-भाव से बढ़ावा देती है। हम दोनों के लिए घर-गिरिस्ती के काम भी भगवान की पूजा के समान ही हैं।”
Amritlal Nagar, मानस का हंस

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