कामायनी Quotes

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कामायनी कामायनी by जयशंकर प्रसाद
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कामायनी Quotes Showing 1-30 of 194
“जग, जगता आँखें किये लाल, सोता ओढ़े तम-नींद-जाल;”
Jaishankar Prasad, कामायनी
“विश्व एक बंधन विहीन परिवर्तन तो है, इसकी गति में रवि-शशि-तारे ये सब जो हैं।”
Jaishankar Prasad, कामायनी
“औरों को हँसते देखो मनु–हँसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ !”
Jaishankar Prasad, कामायनी
“जिसके हृदय सदा समीप है वही दूर जाता है, और क्रोध होता उस पर ही जिससे कुछ नाता है।”
Jaishankar Prasad, कामायनी
“नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में, पीयूष-स्रोत-सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में।”
Jaishankar Prasad, कामायनी
“कालिमा धुलने लगी घुलने लगा आलोक, इसी निभृत अनंत में बसने लगा अब लोक। इस निशामुख की मनोहर सुधामय मुसक्यान, देखकर सब भूल जाएँ दु:ख के अनुमान।”
Jaishankar Prasad, कामायनी
“मैं अतृप्त आलोक-भिखारी ओ प्रकाश- बालिके ॐ बता, कब डूबेगी प्यास हमारी इन मधु-अधरों के रस में?”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“सुंदर मुख, आँखों की आशा, किंतु हुए ये किसके हैं, एक बाँकपन प्रतिपद-शशि का, भरे भाव कुछ रिस के हैं,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“इडा ढालती थी वह आसव, जिसकी बुझती प्यास नहीं, तृषित कंठ को, पी-पीकर भी जिसमें है विश्वास नहीं,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“वह सुंदर आलोक किरन सी हृदय भेदिनी दृष्टि लिये, जिधर देखती -खुल जाते हैं तम ने जो पथ बंद किये।”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“तीव्र प्रेरणा की धारा सी बही वहाँ उत्साह भरी।”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“मनु का पथ आलोकित करती विपद-नदी में बनी तरी,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“प्रणय किरण का कोमल बंधन मुक्ति बना बढता जाता, दूर, किंतु जितना प्रतिपल वह हृदय समीप हुआ जाता”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“मैं रूठूँ माँ और मना तू, कितनी अच्छी बात कही ॐ ले मैं सोता हूँ अब जाकर, बोलूँगा मैं आज नहीं,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“अरे पिता के प्रतिनिधि ॐ तूने भी सुख-दुख तो दिया घना,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“लुटरी खुली अलक, रज-धूसर बाँहे आकर लिपट गयीं,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“किन्तु न आया वह परदेसी-युग छिप गया प्रतीक्षा में,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“चिर-प्रवास में चले गये वे आने को कह कर छल से”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“प्रिय की निष्ठुर विजय हुई, पर यह तो मेरी हार नहीं”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“अरे मधुर है कष्ट पूर्ण भी जीवन की वीती घडियाँ — जब निस्संबल होकर कोई जोड रहा बिखरी कडियाँ।”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“इस पतझड की सूनी डाली और प्रतीक्षा की संध्या,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“इस अवकाश-पटी पर जितने चित्र बिगडते बनते हैं,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“विहग-बालिका सी किरनें,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“मौन वेदना विजन की,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“तामरस इंदीवर या सित शतदल”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“प्रभात का हीनकला शशि — किरन कहाँ चाँदनी रही,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“क्षितिज माल का कुंकुम मिटता मलिन कालिमा के कर से,”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“हँसती प्रसन्नता चाव भरी”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“जीवन निशीथ का अंधकार”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी
“लाली प्रकृति कपोलों में”
जयशंकर प्रसाद, कामायनी

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