प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां Quotes

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प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां by Munshi Premchand
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प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां Quotes Showing 1-8 of 8
“तुम्हें गैरों से कब फुर्सत,
हम अपने गम से कब खाली?
चलो, बस हो चुका मिलना
न तुम खाली न हम खाली ।”
Munshi Premchand, प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां
“પચાસ એક થેલીભર હોય છે, સો તો બે થેલીઓમાં પણ ન આવે.’ હ”
Prem Chand, Premchand Ki Sarvashreshta Kahaniyan Diamond Books
“खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है। जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का।”
Munshi Premchand, Premchand Ki Sarvashreshta Kahaniyan
“जब मैंने डाकखाने के सामने हजारों की भीड़ देखी, तो मुझे अपने लोगों के गधेपन पर हँसी आई। एक शहर में जब इतने आदमी हैं, तो सारे हिंदुस्‍तान में इसके हजार गुने से कम न होंगे और दुनिया में तो लाख गुने से भी ज्‍यादा हो जाएँगे। मैंने आशा का जो एक पर्वत-सा खड़ा कर रखा था, वह एकबारगी इतना छोटा हुआ कि राई बन गया और मुझे हँसी आई। जैसे कोई दानी पुरूष छटाँक भर अन्‍न हाथ में लेकर एक लाख आदमियों को न्‍यौता दे बैठे—और यहाँ हमारे घर का एक-एक आदमी समझ रहा है कि…”
Munshi Premchand, Premchand Ki Sarvashreshta Kahaniyan
“मैं अनुभव से कह सकता हूँ कि युवावस्‍था में हम जितना ज्ञान एक महीने में प्राप्‍त कर सकते हैं, उतना बाल्‍यकाल में तीन साल में भी नहीं कर सकते,”
Munshi Premchand, Premchand Ki Sarvashreshta Kahaniyan
“जानवरों में गधा सबसे बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को पहले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं तो उसे गधा कहते हैं। गधा समचुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्‍णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्‍चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्‍याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत ग़रीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है, लेकिन गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहे उस ग़रीब को मारो, चाहे जैसी ख़राब सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी। बैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो; पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक स्‍थायी विषाद स्‍थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दु:ख, हानि-लाभ किसी दशा में भी बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वह सभी उसमें पराकाष्‍ठा को पहुँच गए हैं, पर आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है। सदगुणों का इतना अनाचार कहीं नहीं देखा।”
Munshi Premchand, Premchand Ki Sarvashreshta Kahaniyan
“आप सीढ़ियों पर पाँव रखे बगैर छत की ऊँचाई तक नहीं पहुँच सकते।”
Munshi Premchand, Premchand Ki Sarvashreshta Kahaniyan
“दीपक का काम है, जलना। दीपक वही लबालब भरा होगा, जो जला न हो।”
Munshi Premchand, Premchand Ki Sarvashreshta Kahaniyan