Listen Girl! Quotes

Rate this book
Clear rating
Listen Girl! Listen Girl! by कृष्णा सोबती
179 ratings, 3.82 average rating, 15 reviews
Listen Girl! Quotes Showing 1-30 of 33
“जिंदगी में कुछ नोना–नमकीन और कुछ मिश्री–मीठा । इतना ही । पछतावा कैसा ! सबकी जन्मपत्री चितकबरी ही हुआ करती है । हर्ष–शोक, लाभ–हानि, ऊँच–नीच–सब बारी–बारी अपनी झलक दिखाते हैं । ऐसा किसी के हाथ में नहीं कि फुलझड़ियाँ ही छूटती रहें । सब गर्म–सर्द समय में घुल–मिल जाते हैं । इसकी नाकाबंदी ऊपरवाले के सिवाय कोई दूसरा नहीं कर सकता । पर एक बात समझने की है । जो पोत बनाएँगे, वही सागर में उतरेंगे । श्रम करेंगे तो फल पाएँगे । यही उत्स है । जीनेवालों की प्राप्ति ।”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“किसने देखा आँख से बैकुंठ धाम ! कहीं और नहीं, जीनेवालों का तीर्थ–धाम यहीं है…यहीं”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“आमरस, टोस्ट, अंडा, पराँठा, दही, मक्खन…”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“जैसे मैंने यह ऊपर की चद्दर उतारी है, वैसे ही मेरा बदन उतार दो । मुझ पर से मेरा शरीर अलग कर दो । अब और नहीं सहा जाता”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“संग–संग जीने में कुछ रह जाता है, कुछ बह जाता है । अकेले में न कुछ रहता है और न बहता है”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“अन्तर से आवाज़ आ ही जाए तो वैसा कर लेना चाहिए”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“माँ पैदा करती है । पाल–पोसकर बड़ा करती है । फिर उसी की कुर्बानी ! माँ को टुकड़ों में बाँटकर परिवार उसे यहाँ–वहाँ फैला देता है । कारण तो यही न, समूची रहकर कहीं उठ खड़ी न हो”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“संतान माँ के हिस्से का सारा वक़्त गटक जाती है ।”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“ठंडा दो तो नीबू पानी, नहीं तो गरम–गरम चाय”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“मटन पक रहा है”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“हारलिक्स–चाकलेट कि चाय”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“हलवा–पूरी–खीर–पूए–पकौड़े”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“चाय आपकी इंतज़ार में है”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“फलों के रस”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“जूस ला दो”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“पिस्तेवाली कुल्फी”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“पाइनऐप्पल, पेस्ट्री !”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“लगता है आकाश भी बूढ़ा हो गया है ।”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“परदे उठा दो ! हवा आने दो ! जल्दी करो ! मेरा दम घुट रहा है ! चुप क्यों हो ? मेरी बात सुनो ध्यान से । मैं तितली नहीं माँग रही, अपना हव़़ माँग रही हूँ । मुझे दे दो”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“इस परिवार को मैंने घड़ी मुताबिक चलाया, पर अपना निज का कोई काम न सँवारा । लड़की, इस समय इस बात का बड़ा कष्ट है मुझे ।”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“एक बात याद रहे कि अपने से भी आज़ादी चाहिए होती है । देती हो कभी अपने को ? तुम्हारी मनमानी की बात नहीं कर रही, कुछ मनचाहा भी कर सकी हो कि नहीं ?”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“घर का स्वामी कमाई से परिवार के लिए सुविधाएँ जुटाता है । साथ ही अपनी ताव़़त कमाता–बनाता है । इसी प्रभुताई के आगे गिरवी पड़ी रहती है बच्चों की माँ ।”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“आकाश में उड़ते पाखी तो देखे हैं न तुमने ! टहनियों से फूटती हरी–हरी कोंपलें भी देखी होंगी ! बदलती रुत की हवाएँ भी महसूस की होंगी ! ओस–जड़ी घास पर नंगे पाँव तो चली हो न ! सरदियों की गुनगुनी धूप भी सेंकी होगी ! लड़की, दुनिया में क्या–से–क्या नेमतें भरी पड़ी हैं । बिछौने के सुख से अलग कई और भी सुख हैं दुनिया में”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“माँ को इसी का वरदान है । उसी के एकांत सरोवर से निथरकर आत्मा देह में प्रवेश करती है”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“आत्मा ही है । चेतन और चैतन्य । चैतन्य होता है पानी के रंग जैसा । निर्मल”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“पढ़ने और मनन करने से बुद्धि तेज़ ज़रूर होती है । पर जीकर ही उसमें अर्थ उत्पन्न होते हैं”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“अपनी समरूपा उत्पन्न करना माँ के लिए बड़ा महत्त्वकारी है । पुण्य है । बेटी के पैदा होते ही माँ सदाजीवी हो जाती है । वह कभी नहीं मरती । हो उठती है वह निरंतरा । वह आज है, कल भी रहेगी । माँ से बेटी तक । बेटी से उसकी बेटी, उसकी बेटी से भी अगली बेटी । अगली से भी अगली । वही सृष्टि का स्रोत है ।”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“बच्चा बनाना एक तरह का यज्ञ ही है री ! इन दिनों औरत पूरे ब्रह्मांड से शक्ति के कण खींचकर अपनी ऊर्जा ज्वलित कर लेती है । अपने में कुछ विशिष्ट ही जीती है । अपने अंदर का आकाश निरखती है । जीव उत्पन्न करने में उसकी गूँथ–गूँज कुदरत से मिली रहती है ।”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“जीवन छलना नहीं । इस दुनिया से चले जाना छलना है । है कोई हाड़–मांस का जीव, जो शेष हो जाने के बाद पेड़ के पके रसीले आम खा सके ? नहीं री ! कोई पंचभूती बच्चा नहीं जो ऐसा कर सके । लड़की, यह दुनिया बड़ी सुहानी है ।”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की
“धूप हिरनी नहीं कि कुलाँचे ही भरती फिरे । धूप सूरज के बस में है और धरती भी उसी पर रीझी रहती”
कृष्णा सोबती [Krishna Sobti], ऐ लड़की

« previous 1