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“मानव-मन बड़ा अद्भुत होता है बेनीमाधव। जब तक वह संस्कार धारता नहीं तभी तक विकारग्रस्त रहता है और एक बार वह निश्चय कर ले तो जादू की तरह उसकी दृष्टि बदलकर कुछ और की और ही हो जाती है।”
― मानस का हंस
― मानस का हंस
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