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“अम्बपाली की यवनी दासी मदलेखा के निकट आई, उसकी लज्जा से झुकी हुई ठोड़ी उठाई और कहा–‘‘कैसे इतना सहती हो बहिन, जब हम सब बातें करते हैं, हंसते हैं, विनोद करते हैं, तुम मूक-बधिर-सी चुपचाप खड़ी कैसे रह सकती हो? निर्मम पाषाण-प्रतिमा सी! यही विनय तुम्हें सिखाया गया है? ओह! तुम हमारे हास्य में हंसती नहीं और हमारे विलास से प्रभावित भी नहीं होतीं?’’ रोहिणी ने आंखों में आंसू भरकर मदलेखा को छाती से लगा लिया। फिर पूछा–‘‘तुम्हारा नाम क्या है, हला?’’ मदलेखा ने घुटनों तक धरती में झुककर रोहिणी का अभिवादन किया और कहा–‘‘देवी, दासी का नाम मदलेखा है।”
― वैशाली की नगरवधू [Vaishali ki Nagarvadhu]
― वैशाली की नगरवधू [Vaishali ki Nagarvadhu]
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