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आचार्य चतुरसेन
“महरी के पीछे-पीछे चोर दरवाज़े में घुसे। कमरों के बाद कमरे, दालान के बाद दालान, सेहन के बाद सेहन पार करते हुए, नौकरों, बाँदियों, लौंडियों और गुलामों की सलामें लेते हुए आखिर बेगम के खास कमरे में पहुँचे। सफेद चाँदनी का फर्श, चाँदी का तख्तपोश और कोच, छत में झाड़ और हज़ारा फानूस, चाँदी की एक पलंगड़ी, कीमती बिल्लौर की गोल मेज़ कमरे के बीचोंबीच।”
आचार्य चतुरसेन [Acharya Chatursen], धर्मपुत्र

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