Neelakshi Singh > Quotes > Quote > Neelakshi liked it

Neelakshi Singh
“..वरा कुलकर्णी मोटे-मोटे सात छंदों वाले पद्य की तरह एक कमरे में दाखिल हो रही थी। हर एक छंद में इतने गझिन ढंग से ठूँस - ठूँस कर शब्द भरे थे कि नजरों के एक शब्द से दूसरे शब्द तक जाने के बीच कोई साँस नहीं बचती थी। इसलिए उसे पढ़ते हुए अक्सर साँसें अकुलाने लगती थीं। उसे गद्य करार दिया जा सकता था पर उसका बिना पूर्णविराम, कॉमा के सात टुकड़ों में समाप्त हो जाना उसे पद्य की तरफ खींच लेता था। नहीं यह भी नहीं। उसका बिल्कुल समझ में न आना उसे कविता बना रहा था।.”
Neelakshi Singh, KHELA

No comments have been added yet.