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Neelakshi Singh
“दफ्तर में एक दूसरी लड़की थी, जो मुझसे कतरा-कतरा कर बच निकलने लगी थी। या ज्यादा माकूल बात यह कि हम आपस में कतराकर बचने का खेल खेलने लग गये थे। उस पिछली घटना के बाद बात हमसे जरा सी नहीं हुई थी। अब पहले की तरह मैं दिन-भर उनके चेहरे की बाट जोहकर उनकी हर हरकत का रिकॉर्ड नहीं रख रहा था। एक दूसरा रास्ता अपनाते हुए मैंने उनसे सटे ही दूसरे चीज की ओर प्रत्यक्ष रूप से देखते हुए दृष्टि विस्तार में उन पर नजर रखने का कौशल विकसित किया था, ताकि अपने से भी छिपाकर उन पर नजर रख सकूँ।”
Neelakshi Singh, शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra

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