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Neelakshi Singh
“मैंने बाहर निकलते वक्त इस पर तफसीस से सोचा। मुझे लगा कि उसमें काफी गुंजाइश थी। कुछ गुंजाइश जो हमने छोड़ी थी अपनी हरकतों से और कुछ जो-जो होना चाहिए और जो हुआ ― के बीच के गैप से उत्पन्न हुई थी। अक्सर ऐसे मौके पर मैं यही सोचकर चुप हो जाता हूं कि जब मैं अपनी फ़िल्म बनाऊँगा तब ऐसे तमाम उलझे उपेक्षित मौके को पर्याप्त वक्त दूंगा। दरअसल यही मेरी जिंदगी का प्रस्थान- बिंदु था ― वह बिंदु जहां से मैं हर मुसीबत को ठेंगा दिखा दिया करता था। यह मोड़ मुझे कभी उदास होने ही नहीं देता और यही जिंदगी के प्रति आस्था का स्रोत भी था।”
Neelakshi Singh, शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra

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