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Neelakshi Singh
“क्या प्रेम में पहले लकीरें खींच कर खेल के नियम तय कर लेना अनिवार्य है? .....

पहले भी हम अलग-अलग ही साथ रहे होंगे। वक्त की बही में कोई सम्मिलित ठेस या साझा छलाँग हमारे खाते में दर्ज नहीं हुई होगी।
सच है यहाँ भी रंग है बहुत। फूल का ढेर सा पीला रंग है, नारंगी आकाश और नीले पानी की नदी के बीच। इतने गहरे रंगों के बीच दुबले-पतले रंग का हमारा रिश्ता ठीक खड़ा नहीं हो पा रहा। जबकि रंग आपस में लड़ते हों ऐसा भी नहीं। फिर उसका इस तरह कँपकँपा लेना मुझे अस्थिर तो करता है। जब ऐसा है तो हम उसे खड़े होने के लिए या घुटनों के बल बैठ कर डगमग कदम बढाने के लिए या कमर के बल रेंग कर ही कोई करतब दिखाने के लिए मजबूर क्यों करें? उसे उसके ही हाल पर छोड़ देना चाहिए। क्या जाने हम किन्हीं गुमनाम रंगों का जोर देख पाने के गवाह ही बन जाएँ कभी।
किसी बीतते हुए को रोक लेने और जाने देने के बीच के फर्क का कायदा बस इतना सा ही तो है।”
Neelakshi Singh, KHELA

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