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Neelakshi Singh
“वह लड़का एक सादा पाठ था।
उसमें बूंद भर भी चटक अक्षर नहीं थे।
दबे और पुराने किस्म के वर्ण थे वहाँ।
'उखड़ चुके और ताजा उगे' के बीच की छपाई थी उधर।
वह ऐसा सरल भी न था कि तुकबंदी की शक्ल में उसे याद किया जा सके।
कठिन तो बिल्कुल भी नहीं कि किसी मायने पर आकर ठिठका जाए।
उसे उलट कर पढ़ें या कि सुलट कर, अक्षरों का हिसाब एक बराबर ठीक ही बैठता था।
उस पर मोड़ थे पर निशान ऐसे नहीं कि कोई अपनी हथेली की किसी रेखा का जुड़वा मान बैठे उन लकीरों को।
वह तरख भी हो सकता था पर ऐसा नहीं कि उस पर कोई स्मृति छोड़ देने को किसी का मन ही ललक जाए।
कभी-कभी वह नष्ट हुआ सा भी दिखता था। कभी इतना तुरंत जन्मा सा कि उसे डर लगता था कि कहीं कच्ची स्याही ही न लेपा जाए उससे।”
Neelakshi Singh, KHELA

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