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Neelam  Jain
“तुम्हे ज़रूर लिख भेजती
लेकिन क्या-क्या.
शब्द कहाँ पर्याप्त था.
कोई नाद, कोई संवाद
कोई भाव, कोई प्राणांश
मन में निर्झर बहता रहा.
कितना समेट लेती
और कितना उंडेल देती
इतने-कितने शब्दों में ?
कभी चेतना के उस स्तर
को काश पा जाती
कि हर बात, हर भाव
बिन कहे तुम तक पहुंचा पाती... !”
Neelam Jain, Ek Anuja

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