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“हमारे पहले कदम से लेकर आखिरी कदम तक तय की गयी दूरी की लंबाई जिन्दगी के बराबर होती है । इसीलिए शायद जिन्दगी हमें भटकाती है ताकि हम अपने हिस्से भर की जिन्दगी चल पायें। ये कहानियाँ भटककर संभलने और संभलकर दुबारा भटकने के दौरान तय की गयी दूरियाँ भर हैं”
― मसाला चाय
― मसाला चाय
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