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“हे मेरे युवा मित्रो, तुम बलवान बनो - तुम्हारे लिये मेरा यही उपदेश है। गीता-पाठ करने की अपेक्षा फुटबाल खेलने से तुम स्वर्ग के कहीं अधिक निकट होगे। मैंने बड़े साहसपूर्वक ये बातें कही हैं और इनको कहना अत्यावश्यक है। इसलिए कि मैं तुमको प्यार करता हूँ। मैं जानता हूँ कि कंकड कहाँ चुभता है। मैंने कुछ अनुभव प्राप्त किया है। बलवान शरीर तथा मजबूत पुट्ठों से तुम गीता को अधिक समझ सकोगे। शरीर में ताजा रक्त रहने से तुम कृष्ण की महती प्रतिभा और महान् तेजस्विता को अच्छी तरह समझ सकोगे। जिस समय तुम्हारा शरीर तुम्हारे पैरों के बल दृढ़ भाव से खड़ा होगा, जब तुम अपने को मनुष्य समझोगे, तब तुम उपनिषद् और आत्मा की महिमा भलीभांति समझोगे।”

विवेकानन्द, व्यक्तित्व का विकास (Hindi Self-help): Vyaktitwa ka Vikas (Hindi Self-help)
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