Mrityu/मृत्यु: Jaane Ek Mahayogi Se/जानें एक महायोगी से (Hindi Edition)
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Kindle Notes & Highlights
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अगर मृत्यु के पल को सही तरीके से संभाला जाए, अगर मृत्यु की उचित तैयारी की जाए, उचित मार्गदर्शन दिया जाए और उस पल कुछ बाहरी मदद भी मिल जाए — तब आध्यात्मिक अर्थों में, जो चीज शायद पूरे जीवनकाल में नहीं हुई, मृत्यु के पल में संभव हो सकती है।
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जन्म लेते ही सबसे पहला काम जो एक बच्चा करता है, वो है साँस लेना। और जो आखिरी काम आप अपने जीवन में करेंगे, वो होगा साँस छोड़ना।
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अगर हमारा यह सौरमंडल, जिसमें हैं, कल सुबह अचानक अदृश्य हो जाए तो इतनी बड़ी सृष्टि में इस पर किसी का ध्यान भी नहीं जाएगा। यह इतना छोटा है कि केवल एक कण मात्र है। सौरमंडल के इस कण में, पृथ्वी एक बहुत ही छोटा कण है। इस बहुत छोटे कण में, आपका शहर बहुत-बहुत छोटा-सा कण है। और इसमें मौजूद आप एक बड़े आदमी हैं। यह बड़ी भारी समस्या है।
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एक तरह से, मृत्यु एक काल्पनिक चीज है जो अज्ञानी लोगों द्वारा रची गई है। मृत्यु एक अनभिज्ञ इंसान का सृजन है, क्योंकि अगर आप जागरूक हैं तो यह बस जीवन है, और जीवन के सिवा कुछ नहीं है — जिसे हम मृत्यु कहते हैं वह तो बस अस्तित्व के एक पहलु से दूसरे पहलु की ओर जाना है।
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लोगों को लगता है कि मृत्यु एक त्रासदी है, जबकि यह नहीं है। लोगों द्वारा जीवन को अनुभव किए बिना ही पूरा जीवनकाल बिता देना एक त्रासदी है।
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अगर आप अपने शरीर और मन को सही तरह से संभालना सीख जाएँ, तो आपके जीवन का अनुभव सुखद ही होगा। लेकिन ‘मरणम’ या मृत्यु, ‘करुणम’ यानी दया है। मृत्यु करुणा है क्योंकि यह आपको मुक्त कर देती है।
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वास्तव में, मृत्यु सर्वोच्च आराम है। हालांकि, अगर आप जीवित रहते हुए ही मृत्यु के आराम को जान जाएँ, तो जीवन एक निपट सहज, सरल प्रक्रिया बन जाता है।
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मानव मन की सबसे बड़ी आपदा यह है कि वह मृत्यु विरोधी है। जिस पल आप मृत्यु को नकारते हैं, आप जीवन को भी नकार देते हैं।
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आखिरकार, आप कहीं न कहीं से तो इस धरती पर इस वातावरण में आए हैं। इसके भीतर आप चाहे जितना बड़ा स्थान हासिल कर लें, यह अभी भी एक छोटा कैदखाना ही है। लेकिन मृत्यु एक अनंत संभावना है।
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अगर आप एक ही समय में जीवन और मृत्यु को नहीं जानते, तो आप जीवन के आधे भाग को ही जानते हैं।
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अगर आप एक भरपूर जीवन जीना चाहते हैं, तो किसी विशेष उम्र पर नहीं, बल्कि हर रोज आपको अपनी नश्वर प्रकृति की ओर देखना चाहिए। जीवन के हर दिन आपको जागरूक रहने की आवश्यकता है कि आप नश्वर हैं। ऐसा नहीं है कि आप यह कहें कि मैं आज ही मरना चाहता हूँ, लेकिन अगर मैं मरूँ तो भी मैं इसकी ओर सहज भाव रखूँ।
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इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस समय आप कितने स्वस्थ हैं, कितनी अच्छी तरह से हैं, आप कल मर सकते हैं। यह एक असल संभावना है। तो जीवन में सुरक्षा जैसी कोई चीज नहीं है।
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जीवन को आपके पूरे ध्यान और कोशिशों की आवश्यकता है। मृत्यु को आपकी सहायता की जरूरत नहीं है। यह तो वैसे भी होगी और पूरी कुशलता से होगी।
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(इवॉल्यूशनरी मेमरी),
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(जेनेटिक मेमरी)
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(कार्मिक मेमरी),
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भारतीय संस्कृति में, परंपरागत रूप से, एक व्यक्ति की कर्म स्मृति के पूरे संग्रह को संचित कर्म कहा जाता है। आप कह सकते हैं कि संचित कर्म किसी व्यक्ति द्वारा ढोए जाने वाले कर्मों का पूरा भंडार हैं। इस भंडार में से, एक खास हिस्सा किसी विशेष जीवन के लिए आवंटित किया जाता है। इसे ‘प्रारब्ध कर्म’ कहा जाता है, यह वो कर्म हैं जो उस जीवन के लिए आवंटित किए गए हैं, जिनका उस जन्म के हिसाब से ज़्यादा महत्त्व है और बाकी के ढेर से ज़्यादा अनिवार्य हैं।
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आप रोज कितने कर्म करते हैं और कितनी जागरुकता के साथ करते हैं, उसी के अनुसार आपके प्रारब्ध और संचित कर्म या तो कम होते हैं या बढ़ते हैं।
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मनुष्य को बस यह सीखने की आवश्यकता है कि वह किस तरह इस जीवन में नए कर्मों का निर्माण न करे, यही सब कुछ है।
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असल में, एक ही माँ के गर्भ में उसके एक बच्चे और दूसरे बच्चे की हलचल में ही बहुत फर्क होता है।
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ऐसा इसलिए है क्योंकि हर ‘प्राणी’ एक निश्चित ऊर्जा के स्तर के साथ आता है, जिससे उसकी सक्रियता निर्धारित होती है और यह आवंटन जन्म के साथ ही हो जाता है।
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ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी शारीरिक गतिविधि का स्तर इतना अधिक है कि उन्होंने अपनी सारी आवंटित ऊर्जा का उपयोग कर लिया होता है। अब, अगर आप उन्हें ध्यान की दीक्षा देंगे तो वे आसानी से ध्यान कर लेंगे। आप देखेंगे कि ये सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही हैं जो सो नहीं सकते या ध्यान नहीं कर सकते या एक जगह बैठ नहीं सकते, क्योंकि वे अपनी आवंटित शारीरिक ऊर्जा का उपयोग नहीं करते।
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आध्यात्मिक मार्ग पर होने के पीछे सोच यह है कि जीवन की गति को बहुत बढ़ा कर दिया जाए। हम नहीं चाहते कि स्मृति के इस भंडार को समाप्त करने के लिए आपको और दस जन्म लेने पड़ें।
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योग साधनों में इतना अधिक अनुशासन बनाए रखने का एक कारण यह है कि जब आपमें ऐसी चीजें उभरने लगें, जो सामान्य स्थिति में आपको विह्वल कर सकती हैं, तो आपको उन्हें संभालने में सक्षम होना चाहिए। अगर आपके भीतर ऐसे आयाम खुल जाएँ जिनके लिए आप तैयार नहीं हैं, तो कर्म आपको पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं।
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वे अपनी मानसिक क्षमताओं को बढ़ाना चाहते थे, जिससे कि अगर वे इस बार में कर्मों को समाप्त न कर पाए, तो भी उनके पास बहुत अधिक शारीरिक और मानसिक क्षमताएँ बाकी रहेंगी, और जब वे अगली बार आएँगे तो उन्हें एक ज़्यादा बड़ा सॉफ्टवेयर मिलेगा। इस तरह उन्हें अधिक प्रारब्ध कर्म मिलेगा। इसलिए
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समय, हर समय चलता रहता है। आप इसे न तो धीमा कर सकते हैं और न ही तेज कर सकते हैं। आप अपनी ऊर्जा को सुरक्षित रख सकते हैं, आप इसे चारों ओर बिखेर सकते हैं, और आप इसे विकसित कर सकते हैं, आप इसे असाधारण रूप से विशाल या नीरस बना सकते हैं, लेकिन समय, यह बस फिसलता रहता है।
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जिसे अपनी जानकारी पर, या जानकारी से पैदा होने वाली प्रवृत्तियों पर महारत हासिल है, उसे अपने जीवन की गुणवत्ता पर भी महारत हासिल है। वह यह तय कर सकता है कि उसकी आंतरिकता सुखद है या दुखद। जिसकी अपनी ऊर्जाओं पर महारत है, वह इस बात को तय कर सकता है कि उसकी गतिविधियों की प्रकृति कैसी होगी और वह कैसे जिएगा। उसकी अपने जीवन पर पूर्ण दक्षता होती है, लेकिन अपनी मृत्यु पर नहीं। लेकिन जिसकी समय पर महारत है, वह अपने जीवन और मृत्यु दोनों की प्रकृति तय करता है। वह यह तय कर सकता हैं कि उसे जीवित रहना है या मरना है। तो इस तरह ये तीन आयाम, जो आपके जीवन का निर्माण करते हैं, आपकी मृत्यु से जुड़े हैं।
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अगर सचेतन, अवचेतन और अचेतन स्मृतियाँ चली जाएँ, अगर वे अव्यवस्थित भी हो जाएँ या शायद खत्म हो जाएँ, तो ऐसे में आनुवांशिक स्मृति प्रभावी हो जाएगी। अगर आनुवांशिक स्मृति मिट जाए, तब विकासमूलक स्मृति कार्य करेगी। तब भी, जीवन पूरी तरह समाप्त नहीं होगा क्योंकि यह अभी पूरी तरह से भंग नहीं हुआ
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आत्मा अमर है। यह अमर नहीं है, लेकिन आपके अनुभव में, अगर कोई चीज आपके शरीर से आगे भी जाती है तो आप उसे अमर कहते हैं। इसलिए, आप में रहने वाली यह दीर्घकालिक स्मृति, जो मृत्यु के माध्यम से आगे बढ़ जाएगी, जो आपके आने वाले जीवन और अनुभव की प्रकृति तय करेगी, वह शाश्वत है।
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आध्यात्मिक जीवन को एक खास तरीके से चलाने के पीछे यही सोच है कि व्यक्ति लगातार सक्रिय रहे, लेकिन यह स्वयं के बारे में नहीं हो। जिस पल यह स्वयं के बारे में होगा, कर्म बढ़ जाएंगे; उसी पल कर्म सतह पर चीजें जमा हो जाएंगी। उसकी सतह और मोटी होती चली जाएगी। जिस पल यह ‘मेरे’ बारे में होता है, तुरंत मेरी पसन्द और नापसन्द हावी हो जाती है — मैं यह कर सकता हूँ, मैं यह नहीं कर सकता; मैं इस आदमी से बात कर सकता हूँ, मैं उस आदमी से बात नहीं कर सकता; मैं इस व्यक्ति से प्रेम रखना चाहता हूँ, उस आदमी से मैं नफरत करना चाहता हूँ, इत्यादि। जिस पल यह मेरे बारे में होता है, इस तरह की चीजें मेरा स्वाभाविक हिस्सा बन ...more
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इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका मस्तिष्क कितना तेज है, या आपके पास कितना ज्ञान है, आपके जीवन का महत्त्व हमेशा आपके द्वारा इकट्ठा किए गए जीवन की मात्रा से निर्धारित होता है।
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मन के स्तर पर होने वाली हर हलचल की शरीर में एक रासायनिक प्रतिक्रिया होती है, और बदले में शरीर में होने वाला हर रासायनिक बदलाव मन के स्तर पर एक हलचल पैदा करता है। जब हम ‘मन’ कहते हैं, तो आमतौर पर लोग सोचते हैं कि यह किसी एक जगह मौजूद है। लेकिन ऐसा नहीं है। मन किसी एक जगह मौजूद नहीं है। मन की एक पूरी शारीरिक संरचना है। आपके शरीर की हर कोशिका में स्मृति और बुद्धि मौजूद है। मन का एक पूरा शरीर है जिसे हम मनोमय कोष कहते हैं, यही पूरा मानसिक शरीर है।
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भौतिक शरीर, मानसिक शरीर और ऊर्जा शरीर, ये तीनों ही प्रकृति में भौतिक हैं।
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भौतिक शरीर स्थूल ढंग से भौतिक है, मानसिक शरीर थोड़ा सूक्ष्म है, जबकि ऊर्जा शरीर और भी अधिक सूक्ष्म है लेकिन फिर भी भौतिक ही है।
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यह कोई चीज नहीं है, यह भौतिक नहीं है। यह भौतिक प्रकृति से परे है। इसका वर्णन या परिभाषा नहीं दी जा सकती। इसलिए इसके बारे में योग केवल अनुभव के संदर्भ में ही बात करता है। जब हम भौतिक से परे इस आयाम को छूते हैं, हम आनंद में डूब जाते हैं। इसलिए आनंदमय कोष को ‘आनंद शरीर’ कहा गया है।
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समान वायु आपके शरीर के तापमान को बनाए रखने का काम करती है।
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प्राण वायु, जो आपकी साँस लेने की (श्वसन) प्रक्रिया और आपकी विचार प्रक्रिया को संचालित करती है।
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जब कोशिकीय स्तर पर विसर्जन प्रणाली दक्ष होगी सिर्फ तभी आपके पास इंद्रिय बोध के लिए आवश्यक संवेदनशीलता होगी।
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व्यान वायु वह है जो इन अरबों कोशिकाओं को एक साथ बुनकर एक प्राणी का रूप देती है।
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व्यान का दूसरा पहलू है कि यह आपकी गति और आपकी चलने-फिरने की क्षमता को भी संभालती है। आप देखेंगे कि जब आपकी व्यान वायु उच्च होगी तो आपकी चलने की क्षमता बहुत ही सहज हो जाएगी, भले ही आप चलने-फिरने के इतने आदी न हों।
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मृत्यु की प्रक्रिया या देहमुक्त होने की प्रक्रिया साँस बंद होने के बाद भी काफी देर तक चलती रहती है।
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अगर मृत्यु के पल में, व्यक्ति शत प्रतिशत जागरुक रह सकता है तो उसे पुनर्जन्म से नहीं गुजरना पड़ेगा। वह दूसरा शरीर धारण नहीं करेगा — वह मुक्त हो जाएगा।
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जिस प्रकार आपके भौतिक शरीर और मानसिक शरीर पर कर्म अंकित होते हैं, उसी प्रकार यह आपके ऊर्जा शरीर पर भी अंकित होते हैं। जैसे-जैसे आवंटित कर्म, या प्रारब्ध कर्म पूरे होने लगते हैं, वैसे-वैसे प्राण शरीर की भौतिक शरीर को थामे रखने की क्षमता क्षीण होने लगती है।
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आपको जीवन के हर पल में मृत्यु के लिए तैयार रहना चाहिए। आपको अपना जीवन इस तरह जीना चाहिए कि अगर आपको अगले ही पल मरना हो, तो भी आप जीवन अच्छी तरह समाप्त कर सकें। आखिरी पल में मृत्यु से निपटने का प्रयास करना सही नहीं है। इसके अतिरिक्त, आप यदि यह समझते हैं कि आप नश्वर हैं तो आप हर समय मृत्यु की ओर देखेंगे। और अगर आप हर समय उसकी ओर देखते हैं तो आप उसे पहचान जाएंगे। जब समय आएगा, तो आपको पता होगा कि कैसे अनुकूल स्थान पर बैठना और प्राण छोड़ने हैं। यही सबसे अच्छा तरीका है।
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मृत्युंजय का अर्थ हो सकता है कि आपने मृत्यु के भय को पार कर लिया। अगर आपने मृत्यु के भय को जीत लिया, तो एक तरह से, मृत्यु कोई महत्त्व नहीं रखती।
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अच्छी तरह जीने का अर्थ है कि आपने जीवन के सभी पहलुओं को समझ लिया है।
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जब कोई स्वयं को शरीर और दिमाग से परे कर लेता है, यानी वह न तो शरीर रहता है और न ही दिमाग, तो वह कालचक्र या समय के चक्र से बच जाता है। तो वह व्यक्ति समय को झांसा देकर यहीं रहता है और उसे अपने लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है।
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अधिकतर आत्मज्ञानी प्राणी, जब तक कि वे शरीर के साथ कोई तिकड़म न करें, वे उसे थामकर नहीं रख पाते। या तो उन्हें शरीर की कार्य प्रणाली का ज्ञान होना चाहिए या फिर उन्हें लगातार सचेतन कर्म पैदा करते रहना चाहिए — जैसे कोई इच्छा या कोई लालसा, जो उनके जीवन में बेतुकी लगेगी क्योंकि वह उनके बाकी व्यक्तित्व से बिलकुल मेल नहीं खाती। लोगों को लग सकता है कि वे पागल हैं, लेकिन अपने शरीर को चलाते रहने के लिए उन्हें यह सब करते रहना पड़ता है।
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यही कारण है कि अगर आप अपने कर्मों को चरण दर चरण समाप्त करना चाहते हैं तो साधना अनिवार्य है।
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लोग मुझसे पूछते हैं, ‘शरीर को कायम रखने की आपकी क्या तरकीब है?’ मेरी कोई मजबूरियाँ नहीं हैं। मेरे पैर में एक कड़ा है जो दरअसल एक बेड़ी जैसा है। यह केवल एक कड़ा नहीं है, यह एक लगाम की तरह है। इसे एक विशेष प्रकार से बनाया गया है। इसमें पारा भरा गया है और इसके साथ कुछ विशेष प्रक्रियाएं की गई हैं। यह एक जीवंत चीज है। अगर आप किसी दिन यह कड़ा मेरे पैर में न देखें, तो समझ जाइए कि अब बहुत कम समय बचा है।
Rahul
A Statement by Sadguru.
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