Aarambhik Bharitya: Hamare Purvaj Kaun they? Unka Aagman Kahan se Hua Tha? (Hindi Edition)
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उसके बाद से हिन्दुस्तान बहुत-सी घुसपैठों का साक्षी रहा है। इनमें ईसापूर्व 326 में सिकन्दर की सेनाओं से लेकर ईसापूर्व 150 के आस-पास शकों या स्काइथियनों, 450 ईसा के आस-पास हूणों, 710 ईसा के आस-पास अरबों, 1526 ईसा में मुग़लों और फिर पुर्तगालियों, फ़्रांसीसियों, डचों और अँग्रेज़ों की घुसपैठ शामिल हैं,
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हड़प्पा सभ्यता के पतन और स्टेपी से हुए प्रवासियों के आगमन के बाद की सदियों में जो कुछ हुआ, उसका ज़्यादातर हिस्सा प्रासंगिक पुरातात्त्विक अँधेरे में छिपा हुआ है
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इस विभाजन के तहत, उत्तर-मध्य की भाषाओं में हिन्दी, पंजाबी, राजस्थानी, बुन्देली और पहाड़ी शामिल होंगी, जबकि दक्षिण पश्चिमी-पूर्वी भाषाओं में बाँग्ला, बिहारी, उड़िया, मराठी, और कोंकणी शामिल होंगी।
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यादव वंश (प्राचीन भारतीय-आर्य वंशावली की एक शाखा जिसकी कुख्याति यह है कि यह स्थानीय रवायतों को अपनाने की वजह से कलुशित हो गई थी) का विवरण इन लोगों को मुख्यतः विन्ध्य कॉम्प्लैक्स के दक्षिण या पूर्व में रखता है।
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कुछ (जो, अगर ग्रिर्यसन की भौगोलिक पदावली का इस्तेमाल करके कहें तो, ‘आन्तरिक समूहों’ से संबंध रखते थे) अपने सामाजिक संबंधों में (और संभवतः भाषा के इस्तेमाल के मामले में) घोर परम्परावादी थे और स्थानीय आबादियों के साथ आनुवांशिक तौर पर कम मिश्रित थे, वहीं ‘बाहरी समूहों’ से संबंध रखने वाले काफ़ी कम कट्टर थे।
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पहला भारतीय साम्राज्य, यानी मौर्यों के साम्राज्य (ईसापूर्व 322-180), का उदय भी इसी क्षेत्र में हुआ था, जो उस क्षेत्र के बाहर है, जिसे सावधानीपूर्वक आर्यवर्त के नाम से परिभाषित किया गया है।
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आर्यवर्त के अभिजात वर्ग के मन में म्लेच्छ-देशों के प्रति घृणा का जो भाव था, उसकी क्या वजह थी? ब्रोंकहर्स्ट इसे इस तरह देखते हैं :
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यह अभिप्राय तो और भी नहीं है कि जो लोग वैदिक अनुष्ठान किया करते थे, वे सब-के-सब ब्राह्मण ही थे।
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अगर हमारे स्रोतों पर विश्वास किया जा सके, तो इस साम्राज्य का कोई भी शासक ब्राह्मणों या उनके विचारों में रुचि नहीं रखता था।
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यह शुंगों, जो स्वयं ही ब्राह्मण थे, के आने के साथ ही शायद हुआ होगा, जब ब्राह्मणों ने समाज में वह जगह बनानी शुरू की होगी, जिस पर वे अपना अधिकार समझते थे।
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इस अध्ययन ने दर्शाया था कि ईसापूर्व 2200 और सन् 100 के मध्य विभिन्न भारतीय आबादियों के बीच व्यापक सम्मिश्रण हुआ था, जिसका परिणाम यह हुआ था कि लगभग सारे हिन्दुस्तानियों ने प्रथम भारतीयों, हड़प्पावासियों और स्टेपी के लोगों की वंशावली अर्जित कर ली थी, हालाँकि निश्चय ही इसके कई स्तर थे।
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यह कुछ ऐसा था मानो सन् 100 के आस-पास एक नई विचारधारा ने कामयाबी और सत्ता हासिल कर समाज पर नए सामाजिक प्रतिबन्ध और एक नई जीवन-शैली थोप दी थी।
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“ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों, और शूद्रों से निर्मित चतुर्वर्ण व्यवस्था का उल्लेख ऋग्वेद के उस एक हिस्से में ही मिलता है, जो संभवतः बाद में जोड़ा गया है।
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क्या यह संभव है कि आर्यवर्त की रूढ़ परम्पराओं, जिनमें सामाजिक पदानुक्रम का सख़्त दृष्टिकोण और ‘वर्णसंकरण’ या विभिन्न वर्गों या नस्लों के बीच मिश्रण का विरोध शामिल था आदि ने मगध की अधिक उदार, उन्मुक्त, प्रगतिशील और अनुष्ठान-विरोधी विचारधारा को पराजित कर दिया हो - वह मगध, जिसने इन रूढ़ परम्पराओं को चुनौती दी थी?
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अभिजात वर्ग की नई भाषा और बौद्धिक विमर्श के माध्यम के रूप में संस्कृत दरअसल लैटिन के संभावित अपवाद को छोड़कर, संभवतः प्राचीन इतिहास की किसी भी भाषा के मुक़ाबले अधिक प्रभावशाली भाषा बन गई थी।
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सच्चाई यह है कि हिन्दुस्तान बहुत बड़ी संख्या में छोटी-छोटी आबादियों से मिलकर बना है।
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जब हम अपनी सांस्कृतिक घरोहर का आकलन करते हैं, तो हम अक्सर इस तथ्य को या तो भुला देते हैं या उसके महत्त्व को कम करके आँकते हैं कि तार्किकता और सन्देह आरम्भिक भारतीय चिन्तन के अभिन्न अंग हुआ करते थे।
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13910T नामक वह जीन उत्परिवर्तन (जीन म्यूटेशन), जिसकी शुरुआत कोई 7500 साल पहले यूरोप में हुई थी। यह जीन मानव-शरीर को शैशवावस्था से परे वयस्क अवस्था तक में दूध को पचाने की गुंजाइश देता है।
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इस तरह इससे यह बात अन्ततः स्पष्ट हो जाती है कि पूर्वी या दक्षिणी भारत के लोग उत्तरी और पश्चिमी भारत के लोगों की तुलना में बहुत कम दूध क्यों पीते हैं।
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ये आँकड़े बताते हैं कि कुल मिलाकर जो राज्य बड़ी तादाद में दूध का सेवन करते हैं, वे उतनी ही कम मात्र में मांस, मछली और अंडे खाते हैं, जबकि बहुत बड़ी मात्र में मांस, मछली और अंडे खाने वाले राज्य उतनी ही कम मात्र में दूध का सेवन करते हैं।
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हिन्दुस्तान में इसका नतीजा यह हुआ कि हर कोई हमारे इतिहास की शुरुआत लगभग 4500 वर्ष पहले मानने लगा,
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हम ख़ुद को एक-स्रोतीय नहीं, बल्कि बहु-स्रोतीय सभ्यता के रूप में ही सबसे अच्छी तरह से परिभाषित कर सकते हैं, जो अपनी सांस्कृतिक प्रेरणाएँ, अपनी परम्पराएँ और अपने रीति-रिवाज़ विविध क़िस्म की वंश-परम्पराओं और बाहरी आगमन के इतिहासों से प्राप्त करती है।
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(भारतीय-आर्य भाषा के अक्षर ‘ह’ और भारतीय-ईरानी भाषा के अक्षर ‘स’ के बीच आपसी अदला-बदली आम बात रही है, जिसके सुविदित उदाहरणों में ‘हिन्दु’ का ‘सिन्धु’ हो जाना और ‘सप्त सिन्धु’ का ‘हप्त हिन्दु’ हो जाना शामिल है।
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सिन्धु सभ्यता की बस्तियाँ किसी प्रवाहमान नदी-घाटी के पास नहीं, बल्कि एक परित्यक्त नदी-घाटी के पास बसी हुई थीं।
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