More on this book
Kindle Notes & Highlights
Read between
March 28 - April 9, 2023
सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे और सिंधु घाटी की सभ्यता द्रविड़ों की बौद्ध सभ्यता थी।
एकदम से आरंभिक बुद्धों के नाम हमें द्रविड़ नामों की याद कराते हैं। शायद इसलिए कि इन बुद्धों की मौजूदगी सिंधु घाटी की द्रविड़ बौद्ध सभ्यता में रही होगी।
पाँचवें बुद्ध का नाम कोण्डभ है। यह भी द्रविड़ नाम है। मगर ज्यों - ज्यों हम सिंधु घाटी सभ्यता से गौतम बुद्ध की तरफ चलते हैं, त्यों - त्यों बुद्धों के नाम प्राकृत भाषा का होते जाते हैं। मिसाल के तौर पर तिस्स, विपस्सी, वेस्सभू, कस्सप जैसे नाम प्राकृत के हैं।
आनुवांशिकी विज्ञान ने राखीगढ़ी में मिले नर - कंकालों का परीक्षण कर बता दिया कि इनमें आर्य जीन नहीं हैं तो मामला शीशे की तरह साफ हो गया कि राखीगढ़ी के निवासी आर्य नहीं थे। राखीगढ़ी द्रविड़ों की सभ्यता थी।
ऐसे भी दुनिया में आर्य नस्ल की भाषाएँ उत्तरी भारत और श्रीलंका से लेकर ईरान और आर्मेनिया होते पूरे यूरोप में फैली हुई हैं। मगर सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष सिर्फ भारतीय प्रायद्वीप में ही मिलते हैं, उसका फैलाव यूरोप तक नहीं है।
आश्चर्य कि द्रविड़ नस्ल की भाषाएँ भी सिंधु घाटी सभ्यता की तरह सिर्फ भारतीय प्रायद्वीप में ही मिलती हैं। भारतीय प्रायद्वीप को छोड़कर दुनिया के किसी कोने से द्रविड़ नस्ल की भाषाओं के बोले जाने के सबूत नहीं मिलते हैं।
एक विपस्सी बुद्ध थे। वे अंदर और बाहर की दुनिया को विशेष रूप से देखते थे। इसीलिए उनका नाम विपस्सी बुद्ध पड़ा। उन्हीं के नाम पर बौद्ध सभ्यता में विपस्सना का प्रचलन हुआ।
कहीं- कहीं खुदाई में तीन मुखों वाली बुद्ध की जो प्रतिमाएँ मिलती हैं, वे वस्तुतः गौतम बुद्ध की त्रिमुखी प्रतिमा नहीं है बल्कि वे त्रिबुद्ध की प्रतिमाएँ हैं।
ऐसे में हम कह सकते हैं कि बुद्ध की मुद्रा में बैठी हर मूर्ति गोतम बुद्ध की नहीं है।
सिंधु घाटी की सभ्यता में पीपल का बहुत महत्व था।
सिंधु घाटी के सीलों में सिर्फ पीपल छाप वाली सील पर अभिलेख नीचे लिखा मिलता है, शेष सील पर ऊपर लिखा मिलता है।
प्रीस्ट किंग की मूर्ति के शरीर पर बौद्ध शैली का वस्त्र है, जिसमें वस्त्र को बाएँ कंधे पर रखा गया है और दायाँ कंधा मुक्त है। गोतम बुद्ध भी इसी शैली में वस्त्र धारण करते थे।
मगर मुअनजोदड़ो की एल एरिया से गोतम बुद्ध जैसा वस्त्र पहने और उन्हीं की मुद्रा में बैठी हुई एक दूसरी मूर्ति मिली है। मूर्ति की कमर में चुन्नट वाला गोतम बुद्ध जैसा वस्त्र है।
प्रीस्ट किंग भी कमर में चुन्नट वाला वस्त्र पहना होगा और उसके बैठने की मुद्रा भूमि स्पर्श मुद्रा होगी। किंग प्रीस्ट की कमर के नीचे का वस्त्र, कमर के ऊपर का वस्त्र, बैठने की मुद्रा, अधखुली आँखें, नाक के अगले हिस्से पर नजर - सब कुछ बौद्ध संस्कृति से मेल खाता है।
जनता पर शासन करने वाली हुकूमत जो भी रही हो, वह बलप्रयोग में विश्वास नहीं करती थी। जीवन शांतिपूर्ण था।
सिंधु घाटी सभ्यता में तलवारें बिल्कुल नहीं मिलतीं। शिरस्त्राण और कवच जैसी रक्षात्मक चीजें सिरे से गायब हैं। बड़े पैमाने पर फौज और लस्कर का पता नहीं चलता। जेल जैसी कोई संरचना नहीं मिलती। जो चाकू और कुल्हाड़े मिले हैं, वे हथियार नहीं बल्कि औजार हैं। यहीं तो बौद्ध सभ्यता है।
गोतम बुद्ध के लगभग सौ साल पहले से भारत का राजनीतिक इतिहास आरंभ होता है।
श्रावस्ती में अनाथपिंडिक ने जो विहार बनवाए थे, गौतम बुद्ध के सर्वाधिक दिन यहीं बीते।
तथागत को ठहरने के लिए श्रावस्ती में उन्होंने राजकुमार जेत से जेतवन की जमीन पर करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ बिछाकर उसे खरीद लिए और भव्य महाविहार बनवाए।
साहित्यिक साक्ष्य बताते हैं कि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक वर्षावास कुल मिलाकर 19 वर्षावास यहीं बिताए थे। सबसे अधिक यहीं बोले भी थे। जेतवन विहार इसीलिए बौद्धों के लिए खास है।
बिंबिसार के बाद मगध की गद्दी पर अजातशत्रु ( 492- 460 ई. पू. ) बैठे। भरहुत की एक वेदिका पर " अजातशत्रु भगवतो वंदते " उत्कीर्ण मिलता है। यह उनके बौद्ध होने का प्रमाण है। अजातशत्रु ने ही सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति कराई थी।
हर्यंक वंश के बाद मगध पर शिशुनाग वंश काबिज हुआ। ये लोग भी नागवंशी थे। इसी वंश के राजा कालाशोक ने वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति कराई थी।
बौद्ध राजा जनता के सरोकारों को लेकर इतने सजग थे कि दुर्भिक्ष में जनता भोजन के बिना न मरे, इसके लिए वे पुख्ता इंतजाम करते थे।
जिन लोगों को अशोक के धम्म के बारे में कोई संशय है, उन्हें अशोक का भाब्रू लघु शिलालेख पढ़ना चाहिए, जिसमें साफ लिखा है - बुधसि धंमसि संघसि। ( चित्र - 27 )
तत्समय के मशहूर चिकित्सक जीवक थे। राजगीर में उनका चिकित्सालय था।
फिर सम्राट अशोक का जमाना आया। सम्राट अशोक ने पशु चिकित्सालय को मनुष्यों के चिकित्सालय से अलग किए। दूसरे शिलालेख में लिखवाए कि मनुष्य चिकित्सा और पशु चिकित्सा मैंने दो चिकित्साओं को अलग-अलग स्थापित किए
भारत के इतिहास में बुद्ध के बाद मीनाण्डर, मीनाण्डर के बाद कबीर और कबीर के बाद नानक का नाम आता है, जिनके मृत शरीर को भी अपनाने के लिए जनता व्याकुल थी।
किंतु भिक्खु नागसेन ने राजा मीनाण्डर से कहा था कि राजा की तरह शास्त्रार्थ करोगे तो नहीं करेंगे, विद्वान की तरह करोगे, तब करेंगे। वो बौद्ध दर्शन की ताकत थी कि मीनाण्डर ने नागसेन से राजा की भाँति नहीं बल्कि दार्शनिक की तमीज से बात की थी।
नागरी लिपि नागों की देन है।
स्तूप के शिलालेखों पर अनेक बौद्ध नाग दानदाताओं के नाम अंकित हैं। अनेक नाम के अंत में " नाक " है जैसे नदनाक, बालनाक आदि।
गुफाओं को नाग दानदाताओं ने आर्थिक मदद की, निर्माण में सहयोग किए
पाँच हजार प्रतिमाएँ तो पूरे भारत से भी किसी लोकनायक की नहीं मिलीं ...इतनी तो अकेले बुद्ध की सिर्फ ब्रजमंडल से मिल गईं।
बौद्ध धर्म के संरक्षक के रूप में हर्ष की तुलना विद्वानों ने सम्राट अशोक और कनिष्क से की है।चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्ष के काल में ही भारत आए थे। ह्वेनसांग ने साफ लिखा है कि हर्ष बौद्ध धम्म का अनुयायी थे।
प्रयाग में दो नदियों के संगम पर, आज जहाँ कुंभ मेला का आयोजन होता है, वह सातवीं सदी में बौद्धों की महादान भूमि हुआ करती थी। प्रयाग में बौद्धों की महादान भूमि का वर्णन ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तान्त में किया है।
हर्षवर्धन के बाद पाल नरेशों ने बौद्ध धम्म की पताका पूर्वी भारत में फहराए रखी। धर्मपाल ( 770 -810 ई.) एक उत्साही बौद्ध थे। उन्होंने विक्रमशिला तथा सोमपुरी में प्रसिद्ध बौद्ध विहारों की स्थापना की।
अनेक बौद्ध राजाओं का ब्राह्मणीकरण भी हुआ है, उनमें से एक नाम जयचंद्र का है। जयचंद्र गहड़वाल वंश के अंतिम शक्तिशाली शासक थे। "महाराजा जयचंद्र गद्दार नहीं, परम देशभक्त बौद्ध राजा थे" नामक पुस्तक पढ़ी। इसके लेखक शांति स्वरूप बौद्ध हैं। छापा है सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली ने।
जैसे बड़े पैमाने पर बौद्ध मूर्तियों का ब्राह्मणीकरण हुआ है, जैसे बड़े पैमाने पर बौद्ध साहित्य का ब्राह्मणीकरण हुआ है, वैसे बड़े - बड़े बौद्ध राजवंशों का भी ब्राह्मणीकरण हुआ है, मिसाल के तौर पर, सातवाहन राजवंश।
ताजिंदगी सातवाहनों ने बौद्ध विहार, चैत्यों और बौद्ध गुफाओं का निर्माण कराया। ऐसे कि बौद्ध वास्तुकला को छोड़कर उनकी कोई भी इमारत दूसरी नहीं है। इसलिए सातवाहन निश्चय ही बुद्ध के विचारों के वाहक थे। आश्चर्य नहीं कि सातवाहनों ने चैत्य प्रकार के सिक्के दक्षिण में ज़ारी किए।
ये दत्तामित्र कौन हैं? वही प्राकृत का दिमित और बैक्ट्रिया का राजा डेमेट्रियस हैं। इसी दत्तामित्र का शिलालेख गुफा सं.17 में है।
इसका प्रमाण नासिक की गुफा सं.19 से मिलता है, जिसके शिलालेख में साफ तौर पर श्रमण मिनिस्ट्री के श्रमण मिनिस्टर का उल्लेख है।
भारत के इतिहास में बतौर पहली महिला शासक प्रभावती गुप्त, रानी दिद्दा और रूद्रम्मा देवी से लेकर रजिया सुल्तान के नाम आते रहे हैं। मगर रुकिए, भारत की पहली महिला शासक नाग कन्या नागनिका थी, जिसका शासन प्रथम सदी ईसा पूर्व में था, जिसके चाँदी के सिक्के महाराष्ट्र से मिले हैं। सिक्कों के ठीक बीचों - बीच रानी नागनिका का नाम लिखा है। इसकी लिपि ब्राह्मी और भाषा प्राकृत है। ( चित्र - 31 )
नागनिका का मातृ खानदान अंगीयकुल का था और अंगीयकुल मूलतः नागवंशीय था। ये अंगीयकुल के लोग महारठी लिखते थे। यहीं महारठी आधुनिक महाराष्ट्र के महार लोग हैं। महारठियों के कुछ सिक्के उत्तरी मैसूर से मिलते हैं, जिनसे पता चलता है कि वे काफी शक्तिशाली थे।
सिरी सातकरणि की मृत्यु के बाद नागनिका ने सातवाहन साम्राज्य का बतौर शासक संचालन किया और इस प्रकार उन्हें भारत की पहली महिला शासक होने का श्रेय है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत को पहली महिला शासक देने का श्रेय बुद्धिस्ट भारत को है।
कभी-कभी जीर्णोद्धार भी इतिहास का राज खोल देता है।
उत्तर में मौर्य काल तक संस्कृत के अभिलेख नहीं मिलते हैं तो दक्षिण में भी सातवाहन काल तक संस्कृत के अभिलेख नहीं मिलते हैं।
पीतलखोरा, नासिक, भाजा, कार्ले, जुन्नार, बेदसा, कोण्डने आदि स्थानों की बौद्ध गुफाएँ, चैत्य इन्हीं सातवाहनों के नाम हैं।
फिर भी इतिहासकार हिंदू धर्म के उन्नायकों में सातवाहनों की गणना बड़े चाव से करते हैं। जबकि सातवाहनों के बनवाए एक भी मंदिर और देवी - देवता की मूर्तियाँ हमें नहीं मिलती हैं।
बताया गया है कि सातवाहन राजे बड़े - बड़े यज्ञ रचाए। आखिर जब सातवाहन राजे संस्कृत नही जानते थे तो फिर किस भाषा के मंत्र - श्लोकों से वे बड़े - बड़े यज्ञ रचाए थे?
यदि किसी नगर, स्थल, पठार, पहाड़ आदि का प्राचीन नाम आप बदल रहे होते हैं तो समझिए कि इतिहास के एक प्रकार के पुरावशेषों को आप नष्ट-भ्रष्ट कर रहे होते हैं।
बौद्ध सभ्यता और कला ने कई राजवंशों तथा राजाओं के इतिहास को गर्त में डूबने से बचा लिया है। उदाहरण के लिए, एक था इखाकु राजवंश ( इक्ष्वाकु राजवंश )।

