गीता-दर्शन भाग चार – Gita Darshan, Vol.4
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अशांत हों यदि, तो जान लेना कि परधर्म के पीछे चल रहे हैं। रुक जाना, पुनः सोच लेना। फिर से विचार कर लेना, रिकंसीडर कर लेना कि जो यात्रा चुनी, जो कर रहे हैं, उससे दुख और पीड़ा, अशांति बढ़ती है, तो निश्चित ही वह मार्ग मेरा नहीं है।