आरम्भ से ही सर सैयद मुसलमानों को यह सलाह देते रहे कि कांग्रेस में उनका जाना ठीक नहीं है। सन् 1887 ई. की 28 दिसम्बर को कांग्रेस का अधिवेशन मद्रास में हो रहा था और उस वर्ष उसके सभापति भी एक मुसलमान सज्जन थे। ठीक उसी दिन, लखनऊ में सर सैयद ने भाषण दिया कि मुसलमानों को राज–भक्ति के पथ पर आरूढ़ रहकर, अधिक–से–अधिक, सरकारी नौकरियाँ प्राप्त करते रहना चाहिए।